उजड़ने व बसने की अजीब दास्तान है सुखार

punjabkesari.in Friday, Apr 30, 2021 - 11:27 AM (IST)

कांगड़ा (योगेश चौधरी) : राजा का तालाब से कुछ ही दूरी पर प्राचीन गांव बसा है सुखार। यह गांव राजस्व विभाग के अनुसार सुखार चौधरीयां के नाम से जाना जाता है। यहां पर एक महाजन परिवार रहता था। जिनके पास बहुत सी जमीन थी जिसे लोग काश्त करते थे और इस परिवार की लोग बहुत इज्जत किया करते थे। ऐसे में लोग उन्हें सम्मान स्वरूप चैधरी कहते थे। उन्हीं के नाम पर सुखार को सुखार चैधरियाँ कहा जाता है। जहां पर एक ऐतिहासिक पौड़ी वाला कुआं भी है। जो खंडहर बन चुका है। एक किवदंती के अनुसार नूरपुर का राजा जहां पर अपनी रानियों के साथ शिकार खेलने आता था। तभी उसने इस पौड़ी नुमा उक्त कुएं का निर्माण करवाया था। सुखार की एक और खासियत है कि यहां पर कुछ घरों को छोड़कर आज भी कई कुंए हैं। बुर्जुर्गों के अनुसार कभी आने जाने का साधन नहीं होने से क्षेत्र व आस पास के लोग पगडंडी नुमा रास्ते से भगवान भोले नाथ के ऐतिहासिक मन्दिर काठगढ़, मां वैष्णों के मंदिर के लिए जाते थे। ऐसे में सुखार उनका महत्वपूर्ण पड़ाव होता था। लेकिन 1545 से 50 तक जब शेरशाह सूरी का शासन रहा तो धार्मिक स्थल ज्वालाजी व नगरकोट के लिए आज के उच्चमार्ग नम्बर 21 से सड़क का निर्माण करवाया गया। अतः लोग सुखार वाले रूट को त्याग कर उस रूट से यात्रा करने लगे व सुखार का महत्व कम होने लगा।

1947 के भारत विभाजन का असर हथकरघा उद्योग पर हुआ

यहां के मेहनतकश लोगों ने अपनी मेहनत के बल पर अपनी पहचान बनाई। यहां पर मुस्लिम समुदाय के बहुत से लोग रहते थे जो कपड़ा बनाने का काम करते थे। कहते हैं कि यहां पर 100 से अधिक हथकरघा उद्योग थे और यहां का बना हुआ कपड़ा बहुत ही उच्च क्वालिटी का होता था। ढाका के बाद यहां का बना हुआ कपड़ा बहुत महीन होता था जिसकी विदेशों में बहुत मांग थी। इस हुनर के बूते सुखार फिर आबाद हुआ और विदेशों में अपनी धाक जमाई लेकिन दुर्भाग्यवश 1947 के भारत विभाजन का असर यहां के हथकरघा उद्योग पर भी हुआ और यहां कारीगर पलायन कर पाकिस्तान चले गए। आज यह गांव गनोह, गंगथ व राजा का तालाब तीनों तरफ से सब सुविधाओं से जुड़ा हुआ है और लिहाज से सम्पन्न है। शिक्षा, सेना, बागवानी व सब्जी में यहां के लोगों ने अपना लोहा मनवाया है।

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तपस्वी ने दिलाई महामारी से निजात

बुर्जुर्गों के अनुसार सुखार में कई वर्ष पहले महामारी फैलने से यहां के लोग क्षेत्र को छोड़ने लग पड़े तभी एक तपस्वी नाम के महात्मा ने यहां पर रहकर लोगों को महामारी से निजात दिलवाई। कहते हैं कि तपस्वी महात्मा सर्दी, गर्मी, वर्षा ऋतु में हमेशा एक लंगोटे में एक शीला पर भक्ति में लीन रहते थे। शिला पर बैठे उनकी एक पुरानी फोटो आज भी उस कुटिया में लगी हुई है। सुखार में सरकारी क्षेत्र में यहां पर एक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय आटर्स, कॉमर्स व साइंस तीनों विषयों में शिक्षा की अलख जगा रहा है। सुखार पंचायत के जागरूक मतदाताओं ने दूसरी बार सोनिका देवी को इस पंचायत का प्रधान चुना है जो अपनी काबलियत व दूरदर्शी सोच का परिचय देती हुई विकास के नित नए आयाम स्थापित कर रही है। सुखार पंचायत की एक और खासियत है कि यहां राजा का तालाब का जलस्तर 270 से 280 फीट तक है। वहीं सुखार में मात्र 20 फीट पर पानी निकलता है। यहां आज भी घर-घर में कुएं हैं। कहावत है कि ठंडे पानी कूप भरे, मिठ्ठे बेर बेशुमार, सौदा पत्रा गंगथाह, सुखिया लोग सुखार।

सुखार में समस्याएं

सुखार में पी.एच.सी. न होने के कारण लोगों को स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए लगभग 15 या 20 किलोमीटर दूर का रुख करना पड़ता है। वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सुखार में साइंस लैब का न होना बच्चों की पढ़ाई पर असर बुरा पड़ रहा है। यूथ क्लब के प्रधान शशि पाल का कहना है कि सुखार पंचायत में स्पोट्र्स कॉम्लेक्स खोला जाए ताकि युवाओं को नशे की गर्त से दूर रखा जाए। स्थानीय लोगों ने प्रधान सोनिका देवी के पंचायत में विकास के कार्यों की तारीफ की। प्रधान सोनिका के कार्यकाल में श्मशान घाट का निर्माण हुआ। उक्त श्मशान घाट इको फ्रेंडली है क्योंकि सामाजिक सौहार्द की मिशाल पेश करते हुए यहां एक तरफ  मुस्लिम लोगों का कब्रिस्तान बेहतरीन ढंग से बनाया गया है तो वहीं दूसरी तरफ  हिंदुओं के लिए एक आधुनिक श्मशान घाट का निर्माण किया गया है। जिला कांगड़ा में शायद यह पहली मिशाल होगी।

क्या कहती हैं प्रधान सोनिका देवी

प्रधान सोनिका देवी के अनुसार सुखार गांव व बाजार के साथ लगती खड्ड की वजह से बरसात के समय-साथ लगते खेतों में भूमि कटाव के होने से किसानों की भूमि खड्ड के पानी में बह चुकी है। प्रधान ने खड्ड का तटीयकरण व पी.एच.सी., साइंस लैब, स्पोट्र्स कॉम्प्लेक्स सुविधा की सरकार से मांग की है।


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Content Writer

prashant sharma

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