सैंज घाटी में निभाई अनोखी देव परंपरा, ऐतिहासिक पल के सैंकड़ों लोग बने गवाह

Sunday, Jun 17, 2018 - 06:06 PM (IST)

कुल्लू: देवभूमि कुल्लू में सदियों से अद्भुत देव परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। वैसे तो देव घाटी कुल्लू में देवी-देवता के कारकून देव रथों को कंधों पर उठाकर देवी-देवताओं की परिक्रमा करवाते हैं लेकिन सैंज घाटी के कुथेऊगी नामक देव स्थल में देवता का कारकून साल में एक बार देव रथ पर चढ़कर देवता के साथ परिक्रमा करता है। देव परंपरा अनुसार जेहर देवता के गूर ने अद्भुत देव परंपरा का निवर्हन किया। सबसे पहले सैंज घाटी स्थित बनोगी क्षेत्र के आराध्य देवता पुंडरिक ऋषि अपने हारियानों सहित कुथेऊगी के समीप देव सौह दलोगी पहुंच गए। परिक्रमा आरंभ होने से पहले जेहर देवता को देव सुरा चढ़ाई गई, उसके बाद देव आदेश मिलते ही पुंडरिक ऋषि के देव रथ पर जेहर देवता के गूर को चढ़ाया गया। देव सौह दलोगी में देवता के गूर ने देव रथ पर सवार होकर 3 बार परिक्रमा की। इस अनोखी परंपरा को देखने के लिए क्षेत्र के सैंकड़ों देवलुओं का हुजूम उमड़ पड़ा। देवलुओंं की मानें तो इस परंपरा का साल में एक बार निर्वहन किया जाता है।


ऐसे शुरू हुई परंपरा
माना जाता है कि प्राचीन समय में जेहर देवता ने विकट रास्ते में देवता पुंडरिक ऋषि को कंधे पर उठाया था। कहते है कि कभी देवता पुंडरिक ऋषि का स्थान बाह्य सराज सराहण में था और सराहण के देवता शाना ऋषि सैंज के बनोगी में था लेकिन बाद में दोनों देवताओं ने अपना-अपना स्थान बदलने की सोची। इसी दौरान जब देवता पुंडरिक ऋषि अपने स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण के लिए निकले तो रास्ते में विकट भौगोलिक स्थिति के कारण सफर करने में मुश्किलें आईं, उसी समय जेहर देवता ने पुंडरिक ऋषि को अपने कंधे पर उठाया था। यही कारण है कि वर्तमान में इस परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है। इस देव परंपरा में जेहर देवता के गूर को पुंडरिक ऋषि के देव रथ में बिठाकर 3 बार परिक्रमा करवाई जाती है।


सदियों से निभाई जा रही परंपरा
देवता पुंडरिक ऋषि के कारदार लोतम राम ने बताया कि प्राचीन देव परंपरा का निवर्हन करते हुए हर साल इसी माह देव स्थल दलोगी में यह परंपरा निभाई गई। इस देव परंपरा में जेहर देवता के गूर को इसलिए देव रथ पर चढ़ाया जाता है कि प्राचीन समय में पुंडरिक ऋषि को जेहर देवता ने भी अपने कंधों पर उठाया था और इसी परंपरा को देवलू सदियों से निभा रहे हैं।

Vijay