5 वर्षों से 18 वर्षीय लाचार बेटे को कंधे पर उठाकर इलाज के लिए भटक रहा पिता

Sunday, May 29, 2022 - 07:57 PM (IST)

ऊना (विशाल स्याल): हर पिता का सपना होता है कि उसका बेटा बड़ा होकर बड़ा अफसर बने और पूरे परिवार का बोझ उठाए लेकिन एक ऐसा भी पिता है जोकि अपने 18 वर्षीय बच्चे को पिछले 5 वर्षों से अपने कंधे पर उठाकर उसके इलाज के लिए भटक रहा है। 49 वर्षीय पिता की तकलीफ इसलिए भी बढ़ चुकी है कि उसके पास अपने बेटे के इलाज तक के लिए रुपए नहीं हैं। न ही उसके पास आयुष्मान या हिमकेयर कार्ड है। बी.पी.एल. मुक्त पंचायत की भेड़चाल में उसका कार्ड भी काट दिया गया और वह अन्य सुविधाओं से भी वंचित हो गया। ऐसा दर्द भरा जीवन है हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले की पंचायत डोभा के गांव सायर का। इस गांव का 49 वर्षीय बृजलाल अपने बेटे मोनित को वर्ष 2017 से कंधों पर उठाकर घूम रहा है।

गांव में शादी व अन्य समारोहों में न्यौता देने का काम करने व दिहाड़ी करने वाला बृजलाल वर्ष 2017 तक ठीक जीवन जी रहा था। कम आमदनी के बावजूद अपने 3 बेटों और पत्नी के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा था। समय ने ऐसी करवट बदली कि 7वीं में पढऩे वाला उसका बेटा मोनित स्कूल से घर आते हुए ढांक से गिर गया और उसकी रीढ़ पर चोट लग गई। थोड़ा बहुत इलाज हुआ और एक दिन वह फिर से स्कूल से घर आते हुए ढांक से गिर गया और उसकी रीढ़ की हड्डी में अत्यधिक चोट पहुंची, जिसके बाद वह चलने-फिरने में पूरी तरह से लाचार हो गया। मौजूदा समय में बृजलाल का एक बेटा सोनित पढ़ाई पूरी करके पुलिस भर्ती प्रक्रिया पास कर चुका था लेकिन भर्ती ही रद्द हो गई और इस परिवार के दिन फिरते-फिरते रह गए। तीसरा बेटा अंकित अभी पंजगाई स्कूल में 8वीं कक्षा का छात्र है।

बी.पी.एल. मुक्त पंचायत की होड़ में काटा नाम
बृजलाल का परिवार पहले बी.पी.एल. की सूची में शुमार था लेकिन प्रदेश में बी.पी.एल. मुक्त पंचायत करने की होड़ में इस पंचायत को भी बी.पी.एल. मुक्त कर दिया गया और बृजलाल का नाम इस सूची से कट गया। पंचायत प्रतिनिधियों ने इसका नाम इस सूची में शामिल करने के लिए बी.डी.ओ. से आग्रह किया तो मामला अभी तक विचाराधीन चला हुआ है लेकिन अभी तक इस परिवार को बी.पी.एल. श्रेणी में शामिल नहीं किया जा सका है। कच्चे मकान में रह रहे बृजलाल के परिवार के लिए आवास योजना के तहत एक किस्त तो मिल गई लेकिन दूसरी किस्त पाने से पहले वह अपना मकान गरीबी के कारण पूरा नहीं कर पाया। अपनी थोड़ी बहुत जमा की हुई पूंजी बृजलाल ने अपने बेटे के इलाज में लगा दी और मकान अभी भी अधूरा पड़ा हुआ है।

बेटे को कंधे पर उठाकर 1 किलोमीटर का सफर कर पहुंचना पड़ता है सड़क तक
बृजलाल के मकान को रास्ता नहीं है और लगभग एक किलोमीटर तक बेटे को कंधों पर उठाकर पगडंडी पर चलते हुए बृजलाल सड़क तक पहुंचता है और फिर बस लेकर अस्पतालों के चक्कर लगाता है। बृजलाल के घर के लिए चौपहिया तो दूर दोपहिया वाहन जाने तक के लिए भी रास्ता नहीं है। ऐसे में उसकी दिक्कतें और भी अधिक बढ़ चुकी हैं।

बेटे को उपचार के लिए बस में ले जाना पड़ रहा
बृजलाल अपने बेटे को लेकर इलाज के लिए बिलासपुर अस्पताल, आई.जी.एम.सी. शिमला और पी.जी.आई. चंडीगढ़ तक दौड़ा। सभी जगहों पर उसको अपने बेटे को कंधों पर उठाकर ले जाना पड़ा। इतने रुपए नहीं थे कि व्हीलचेयर खरीद सके या एम्बुलैंस कर सके। सरकारी बसों में अपने बेटे को ले जाकर बृजलाल इलाज के लिए अभी भी सफर कर रहा है। पी.जी.आई. के चिकित्सकों ने ऑप्रेशन सुझाया है और बेटे को एक बैल्ट लगाने को कहा है लेकिन बृजलाल के पास इतने भी रुपए नहीं हैं कि वह लगभग 20,000 रुपए की बैल्ट अपने बेटे को लगवा सके।

सहारा योजना के तहत नहीं लगी पैंशन
स्वास्थ्य विभाग द्वारा मोनित को 42 फीसदी विकलांग घोषित किया गया है और उसे 600 रुपए मासिक पैंशन लगाई गई है। उसको अभी तक सहारा योजना के तहत पैंशन नहीं मिल पाई है और न ही अन्य कोई आर्थिक मदद अभी तक मिली है, जबकि मोनित अभी तक ऑन बैड है।

हैल्पिंग हैंड्स संस्था ने की आर्थिक मदद
मन में मोनित के ठीक होने की आस लेकर चंद रुपए के सहारे बृजलाल शनिवार को मां ज्वालाजी में शीश नवाने अपने बेटे को कंधे पर लादकर पहुंचा, जहां माथा टेकने के बाद वह भोटा पहुंचा और यहां से चंडीगढ़ जाने के लिए निकल पड़ा लेकिन उसके बेटे की तबीयत खराब हो गई और उसे बड़सर अस्पताल में दाखिल करवाया। यहां से रविवार को छुट्टी होने पर बस में पिता-पुत्र आई.एस.बी.टी. पहुंचे, जहां उन्होंने मदद के लिए इंडियन हैल्पिंग हैंड्स संस्था से संपर्क किया और संस्था के चेयरमैन प्रिंस ठाकुर ने बस स्टैंड पहुंचकर उनकी मदद की। उन्हें बैल्ट का पूरा खर्च देने के साथ-साथ एम्बुलैंस करके चंडीगढ़ भेजा। इस दौरान बस स्टैंड में सभी चालकों-परिचालकों व सवारियों ने उसकी रुपए से मदद की और लगभग 6,000 रुपए इकट्ठे करके बृजलाल को दिए। इंडियन हैल्पिंग हैंड्स संस्था ने 5,000 रुपए देकर आगामी खर्च वहन करने का वायदा करते हुए दोनों को चंडीगढ़ के लिए रवाना किया।

डोभा पंचायत प्रधान रीता देवी ने कहा कि बृजलाल का परिवार बेहद तंगहाली में है। निर्धन परिवार पर संकट छाया हुआ है। बी.पी.एल. में शामिल करने के लिए बी.डी.ओ. सदर से आग्रह किया गया है लेकिन अभी तक इस पर कोई फैसला नहीं हुआ है।

बी.डी.ओ. बिलासपुर सदर विनय कुमार ने कहा कि इस संबंध में जिला पंचायत अधिकारी को सभी तथ्य खंगालने के बाद एस.डी.एम. के समक्ष मामला पेश करने का आग्रह किया गया था, ताकि जितने भी लोग बी.पी.एल. श्रेणी से बाहर हुए हैं वे बहाल हो सकें और बाद में मैरिट के आधार पर पंचायत उन्हें इस श्रेणी में रखे।


जिला पंचायत अधिकारी बिलासपुर  शशि बाला ने कहा कि जांच पड़ताल के बाद मामला एस.डी.एम. बिलासपुर के सुपुर्द किया गया है। आगामी कार्रवाई एस.डी.एम. ही करने में सक्षम हैं।

एस.डी.एम. बिलासपुर रामेश्वर दास ने कहा कि अभी हाल ही में ज्वाइन किया है। बी.पी.एल. मुक्त में जो न्यायपूर्ण होगा, वह किया जाएगा। बृजलाल का मामला अभी तक मेरे समक्ष नहीं पहुंचा है। इस परिवार की हर स्तर पर पूरी मदद की जाएगी।

Content Writer

Kuldeep