राणा शमशेर ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर लिखी पुस्तक

Monday, Oct 19, 2020 - 06:00 PM (IST)

ऊना (सुरेन्द्र): हिमाचल प्रदेश भाषा, कला एवं सांस्कृतिक अकादमी के सदस्य तथा विख्यात शिक्षाविद् राणा शमशेर सिंह द्वारा नेताजी सुभाष चंद्र बोस पर काव्यांजलि के रूप में प्रकाशित पुस्तक की सर्वत्र सराहना हुई है। प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव तथा वर्तमान में भारत सरकार के सचिव लोकपाल बी.के. अग्रवाल, सैंट्रल यूनिवर्सिटी धर्मशाला के चांसलर डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री व प्रो. डा. एस.पी. बंसल वाइस चांसलर टैक्नीकल यूनिवर्सिटी हमीरपुर सहित कई बड़े शिक्षाविदों ने इस काव्यांजलि के रूप में प्रकाशित पुस्तक की जमकर प्रशंसा की है। यह ऐसी पहली किताब है जो नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जीवनी पर काव्य रूप में प्रकाशित हुई है। 208 पृष्ठों की इस पुस्तक में देश को आजाद करने की दिशा में नेताजी द्वारा दिए गए अमूल्य योगदान को बेहद शानदार ढंग से प्रस्तुत किया गया है। बाल्यकाल से लेकर उनके संघर्ष के जीवन के तमाम पहलुओं को काव्य रचना के जरिए दर्शाया गया है।

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि जिन श्रेष्ठ मानव मूल्यों व राष्ट्रीय चेतना को वर्तमान व भावी पीढ़ी में अंकुरित करने के लिए शिक्षाविद् राणा शमशेर सिंह ने इस काव्य की रचना की है वह बेहद ही लाभदायक सिद्ध होगी। उन्होंने इस पुस्तक का प्राकथन भी लिखा है। एक-एक संस्मरण को सराहते हुए उन्होंने कहा है कि शमशेर सिंह राणा ने पुस्तक प्रकाशन का कार्य सफलतापूर्वक किया है। बंगाल में हैजा फैलने से लेकर जाजपुर गांव में मृत्यु का ग्रास बनने वालों का मार्मिक चित्रण किया है। इसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के प्रत्येक मानवीय पहलू को दर्शाया गया है। सचिव लोकपाल वी.के. अग्रवाल ने कहा है कि भारतवर्ष के जनमानस पर अमिट छाप छोडऩे वाले नेताजी के जीवन की तमाम घटनाओं को काव्य रूप में प्रस्तुत कर वर्तमान और भावी पीढ़ी को उनके योगदान से रू-ब-रू करवाने का यह बेहद ही अनुकरणीय कार्य किया गया है।

राणा शमशेर सिंह ने कहा कि वह बचपन से ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित रहे हैं। उनके फूफा स्व. अमर सिंह जोकि जर्मनी में ही नेताजी के समक्ष आजाद हिंद फौज में शामिल हुए थे, वह नेताजी को महामानव मानते थे और उनके प्रति उनकी गहरी आस्था थी। उन्होंने कहा कि 18 अगस्त, 1945 को नेताजी की जिस विमान दुर्घटना में मृत्यु बताई गई थी, दरअसल वह विमान हादसा हुआ ही नहीं था। नेताजी ने 21 अक्तूबर, 1943 को सिंगापुर में कैथेहाल में भारत की स्वतंत्रता की घोषणा कर दी और निर्वाचित सरकार बनाई जिसके वह विदेश मंत्री, युद्ध मंत्री, प्रधानमंत्री तथा राष्ट्राध्यक्ष थे। स्वतंत्रता के इस युद्ध में उन्होंने अंग्रेजों से 1,500 वर्ग मील का क्षेत्र जीत लिया था और उन्हें चिटागांव में अपना अभियान रोकना पड़ा क्योंकि बरसात शुरू हो चुकी थी और सप्लाई लाइन कट गई थी। हथियार नहीं पहुंच पा रहे थे।

Kuldeep