Una: आखिर कैसे होगी खाद्य पदार्थों की जांच, प्रदेश में महज एक लैब, रिपोर्ट आने में लग रहे महीनों
punjabkesari.in Monday, Oct 13, 2025 - 07:38 PM (IST)
ऊना (सुरेन्द्र शर्मा): प्रदेश में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की जांच कैसे होगी, जब न तो पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर है और न ही जांच करने के लिए उचित लैब और स्टाफ मौजूद है। पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में अधिकतर खाद्य प्रोडक्ट के लिए दूसरे राज्यों पर अधिक निर्भरता है। खासकर दैनिक उपभोग की वस्तुएं जिनमें दूध, घी, पनीर, खोया, मावा और ब्रैड सहित कई अन्य प्रोडक्ट हैं। क्या जो खाद्य पदार्थ बाजार में बिक रहे हैं उनकी क्वालिटी सही है? क्या मिठाइयां उन मापदंडों पर आधारित हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक न हों। बदलते परिवेश में जिस प्रकार से बीमारियां बढ़ रही हैं, अस्पतालों में मरीजों का तांता लग रहा है, उस हिसाब से यह जांच का विषय है कि जो हम ग्रहण कर रहे हैं क्या वह गुणवत्ता पर आधारित है या नहीं।
पूरे राज्य में खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांचने के लिए सोलन जिला की कंडाघाट स्थित एक लैब मौजूद है। जब किसी फैस्टीवल सीजन या अधिक सैम्पल भरे जाने की स्थिति में सैम्पल लैब में जाते हैं, तो इनकी रिपोर्ट को महीनों इंतजार करना पड़ता है। यूं तो प्रावधान है कि किसी भी भेजे गए सैम्पल की रिपोर्ट 14 दिन के भीतर भेजी जाए, लेकिन एक्ट में प्रावधान किया गया है कि अत्यधिक सैम्पल आने या अन्य कारणों से रिपोर्ट में विलम्ब किया जा सकता है। इसी कारण सैम्पल भरे जाने और उसे लैब में भेजे जाने के कई दिनों बाद रिपोर्ट वापस आती है। तब तक उस खाद्य पदार्थ का अधिकतर हिस्सा या खेप बिक चुकी होती है। मान लीजिए सैम्पल फेल है, तो उस प्रोडक्ट को लोग खा चुके होते हैं। यह सिस्टम की काफी बड़ी खामी है।
हालात यहां से समझे जा सकते हैं कि फूड सेफ्टी विंग को हर जिला में खाद्य पदार्थों की जांच के लिए एक-एक वैन दी गई है। इसका बाकायदा काफी प्रचार भी किया गया। लांचिंग हुई लेकिन अधिकतर जिलों में यह फूड सेफ्टी विंग की क्वालिटी जांच करने वाली वैनें सफेद हाथी बनी हुई हैं। इन गाड़ियों को चलाने के लिए न ड्राइवर हैं, न लैब अटैंडेंट हैं और न ही एनालिस्ट हैं, जो खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता का अवलोकन कर पाएं। स्टाफ न होने की वजह से लाखों रुपए की ये गाड़ियां खड़ी हैं और इसका उपयोग नहीं हो पा रहा है।
पनीर के साथ कई मिल्क प्रोडक्ट सवालों के घेरे में
बाजार में बिकने वाला पनीर और उसके साथ-साथ कई मिल्क प्रोडक्ट सवालों के घेरे में हैं। कई बार सस्ते दामों पर पनीर बाजार में ऐसा पहुंचता है, जो लागत से भी कम मूल्य का होता है। ऐसे में इसकी क्वालिटी संदेह के घेरे में रहती है। पूरे राज्य में पनीर की जितनी डिमांड है उतना उत्पादन शायद नहीं है। यही कारण है कि पड़ोसी राज्यों पर निर्भरता है और यहीं से दिक्कतें शुरू होती हैं। देसी घी और पनीर की बड़ी खेप रातोंरात पंजाब, हरियाणा से हिमाचल पहुंचती है। जांच करने के लिए ऐसी न तो टीमें हैं और न ही व्यवस्था है कि बाहर से आ रहे ऐसे प्रोडक्ट के सैम्पल भरे जाएं और कुछ समय के भीतर ही इसकी रिपोर्ट सामने आए।
ऊना से कंडाघाट भेजे 20 सैंपल
फूड सेफ्टी विंग हर जिले में मौजूद हैं और वह अपने स्तर पर खाद्य पदार्थों की जांच कर सैम्पल कंडाघाट भेज रहा है। ऊना में भी सोमवार को उपमंडल अम्ब और नैहरियां में जांच की गई तो बिना ढकी और खुले में रखी गई 10 किलो मिठाइयों को नष्ट कर दिया गया। इसके साथ 20 सैम्पल भरे गए हैं, जिन्हें जांच के लिए लैब भेजा गया है।
असिस्टैंट कमीश्नर फूड सेफ्टी विंग जगदीश धीमान का कहना है कि लगातार सैम्पल लिए जा रहे हैं। उन्हें जांच के लिए कंडाघाट स्थित लैब में भेजा जा रहा है। निश्चित रूप से सैम्पल अधिक भरे जा रहे हैं और उन्हें जांच के लिए प्रदेश की एकमात्र लैब कंडाघाट भेजा जा रहा है। लैब में अधिक सैम्पल आने की वजह से रिपोर्ट देरी से आती है, जो मोबाइल वैन खाद्य प्रोड्क्टस की जांच के लिए हर जिले को मिली हैं उनमें स्टाफ की कमी है और इसी वजह से उन्हें नहीं चलाया जा रहा है। लैब अटैंडेंट, ड्राइवर और एनालिस्ट की मांग की गई है।

