Watch Video : आदिवासी इलाके से कम नहीं चंबा का ये क्षेत्र, यहां सरकारें बदली लेकिन हालात नहीं

Sunday, Jan 21, 2018 - 06:37 PM (IST)

चंबा: चंबा मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर साच खड्ड पर जले हुए पुल की तस्वीरें विकास के नाम पर बड़ी-बड़ी दुहाई देने वालों के मुंह पर करारा तमाचा है। जले हुए पुल के अवशेष, जिससे कभी तीन पंचायतों के दर्जनों गांव के ग्रामीण गुजरते थे। मगर ये पुल तो गुमशुदा हो गया है। 70-80 के दशक में बना ये पुल आज पूरी तरह से जल कर टूट चुका है। यहां कुछ बचा है, वो सिर्फ लोहे की तारें, जिसके ऊपर किसी जमाने में अच्छा खासा पुल हुआ करता था। साच पंचायत, सिंगी पंचायत और खज्जियार पंचायत के तहत आने वाले गोठलू, पंजियारा, धवेली, बेंसका, रिखण बेई, द्वारु, लिंडी बेई, कलोता, द्रोल गांव समेत कई गांव के बाशिंदे यहां से गुजरते हैं। मगर वह खड्ड को पार कर जान जोखिम में डाल कर सफर करते हैं।

इस पुल को पूर्व मंत्री किशोरी लाल ने जनता के लिए समर्पित किया था, ताकि वो खड्ड में से गुजरने की बजाय आराम से सुरक्षित सफर कर अपनी मंजिल तक पहुंच सकें। वक्त बीतता गया और इस पुल की खस्ता हालत दिनों-दिन मुंह चिढ़ाने लगी। तभी किसी शरारती तत्व ने इस पुल को आग के हवाले कर इसके वजूद को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा दिया। 2010 के बाद से इस पुल की यही तस्वीर और खड्ड का रास्ता आज रह-रह कर पुरानी यादों को ताजा करता रहता है कि कभी यहां एक लकड़ी का शानदार पुल हुआ करता था। इस पुल की बदकिस्मती कहें या फिर जागरुकता का अभाव, यहां पुल तो नहीं रहा, मगर पैदल चलने का ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। कागजों में भले ही साच से ऊपर जीप रोड बनाने का कहीं जिक्र होता हो, लेकिन धरातल पर यहां ऐसा कुछ भी नहीं। 

दिलचस्प बात ये है कि कभी यहां से खज्जियार की ओर रास्ता बनाने का काम भी शुरू हुआ था, जिससे खज्जियार में करीब आधे घंटे से भी कम वक्त में पहुंचा जा सकता था। लेकिन आपसी खींचतान और नेताओं-अधिकारियों की मिलीभगत से रास्ते को दूसरी तरफ से बनाया गया, जहां से खज्जियार पहुंचने में करीब एक घंटा लगता है। एक तरफ गांव-गांव तक प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का लाभ पहुंच रहा है, तो दूसरी तरफ साच खड्ड पर बना ये पुल इन सबसे कोसो दूर हैं। हाल ही में यहां सड़क के निर्माण का सर्वे भी हो चुका है। दिक्कत सिर्फ है कि ये इलाका वाइल्ड लाइफ सेंचुरी एरिया में आता है, जहां अवैध पेड़ कटान तो खूब होते है। बहरहाल राजनीतिक द्वेष और पिछड़ेपन का शिकार ये पुल आज भी इंतजार कर रहा है, किसी करिश्मे का, किसी चमत्कार का।