केवल ट्रांसफर और विधानसभा में जवाब देने के मंत्री रह गए पावर मिनिस्टर

Tuesday, Jul 31, 2018 - 09:11 AM (IST)

शिमला (देवेंद्र हेटा): पावर मिनिस्टर होने के बावजूद संबंधित मंत्री को स्वतंत्र रूप से बिजली बोर्ड को चलाने की पावर नहीं दी गई है। बिजली बोर्ड की कोई भी महत्वपूर्ण फाइल ऊर्जा मंत्री के टेबल पर नहीं लाई जाती जबकि बिजली बोर्ड का प्रभार ऊर्जा मंत्री अनिल शर्मा के पास है। प्रदेश के पावर मिनिस्टर को बिजली बोर्ड से जुड़े 2 ही कामों के लिए पूछा जाता है। एक तो किसी अधिकारी व कर्मचारी की ट्रांसफर के लिए, दूसरा जब विधानसभा में कोई सदस्य सवाल करता है तो उसका ऊर्जा मंत्री को ही जवाब देना होता है। 


बिजली बोर्ड में करोड़ों की खरीद-फरोख्त, नई भर्तियों व उपभोक्ताओं की विद्युत सेवाओं इत्यादि से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले करने हो तो ऊर्जा मंत्री को नहीं पूछा जाता। प्रदेश के ऊर्जा मंत्री को भी इस बात का अफसोस है। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक ऊर्जा मंत्री प्रत्यक्ष तौर पर बोर्ड की विभिन्न गतिविधियों में हस्तक्षेप नहीं कर पा रहे हैं। बिजली बोर्ड के सारे निर्णय निदेशक मंडल (बी.ओ.डी.) में लिए जाते हैं जबकि प्रदेश सरकार के ज्यादातर बोर्डों व निगमों में चेयरमैन संबंधित विभाग के मंत्री को बनाया जाता है, ऐसे बोर्ड-निगमों में मंत्री को पूरी जानकारी रहती है मगर राज्य बिजली बोर्ड में ए.सी.एस. ऊर्जा को बिजली बोर्ड का चेयरमैन बनाया जाता रहा है। 


बिजली बोर्ड की सारी फाइलें ए.सी.एस. के टेबल से बिजली बोर्ड को वापस जाती हैं। यह देखते हुए अनिल शर्मा ऐसा मैकेनिज्म (तंत्र) चाहते हैं, जिससे वह स्वयं बिजली बोर्ड के हर काम की निगरानी कर सकें। उन्हें बोर्ड के हर निर्णय की जानकारी हो लेकिन हिमाचल के ऊर्जा मंत्री के बिजली बोर्ड में क्या घट रहा है, उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं दी जाती।


2,000 करोड़ से ज्यादा के घाटे में बिजली बोर्ड
वर्तमान में बिजली बोर्ड का घाटा 2,000 करोड़ से ज्यादा का हो गया है। हालांकि 500 करोड़ का घाटा बिजली बोर्ड को गठन के वक्त देनदारी के रूप में मिला है। ऊर्जा मंत्री को लगता है कि नियमित रूप से बिजली बोर्ड के तमाम कार्यों की समीक्षा व मॉनीटरिंग करके इस घाटे को कम किया जा सकता है। इसके लिए बोर्ड से जुड़ी प्रत्येक फाइल की जानकारी मंत्री को होना जरूरी है।
 

Ekta