आज जहां है टांडा मेडिकल कॉलेज, वहां द्वितीय विश्वयुद्ध में था गोरखा रेजिमैंट का बसेरा

punjabkesari.in Saturday, Dec 05, 2020 - 11:45 AM (IST)

कांगड़ा (कालड़ा) : सदरपुर गांव जहां आज प्रदेश का दूसरा बड़ा डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा है। इस गांव का इतिहास बताते हुए वयोवृद्ध सेवानिवृत्त अधिशाषी अभियंता पीडी सैनी (87) ने बताया कि जब वह 5-6 साल के थे तो 1939 के पहले यहां बड़े-बड़े वृक्ष हुआ करते थे। उन्होंने बताया कि यह जगह पशुओं की चरागाह हुआ करती थी। सैनी ने बताया कि 1940 से 1945 तक यहां द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लकड़ी की बेरके बनाकर यहां पर गोरखा रेजिमैंट के मिल्ट्री कैंप की स्थापना की गई। इसमें अंग्रेज सेना अधिकारी व हिंदोस्तान के सेना अधिकारी तथा फौजी तैनात किए गए। उन्होंने बताया कि जहां आज मेडिकल कॉलेज का होस्टल है वहां पर अंग्रेजों ने नहाने के लिए स्वीमिंग पूल बनाया था, जिसमें पानी बनेर खड्ड का कूहल के माध्यम से आता था। इसमें अंग्रेजों के बच्चे व उनकी पत्नियां तैरना सीखती थीं। 

उन्होंने बताया कि 1944-45 में उनके गांव सदरपुर में हुसैन वक्श, मुस्तफा मुस्लमान छात्रों के साथ प्रताप सिंह, जगदीश चंद, किशोरी लाल उनके साथ रजियाणा स्कूल में पढ़ते थे। इनमें प्रताप सिंह केशधारी सिख थे और आगे की शिक्षा लेने के लिए उन्हें कांगड़ा जीएवी स्कूल जाना पड़ता था। उन्होंने बताया कि उन्हें जीएवी स्कूल पैदल जाना पड़ता था और वह इन स्वीमिंग पूलों के पास से होकर गुजरते थे। उन्होंने बताया कि दुर्भाग्य से इस देश का 1947 में बंटवारा हो गया और उनके दोस्त व सहपाठी हुसैन बख्श व मुस्तफा अपने वालदायन दीनू व गुस्तफा के साथ योल होते हुए पाकिस्तान चले गए। उन्होंने बताया कि बंटवारे से पहले हिन्दू, मुस्लमानों व सिक्खों में बहुत प्यार था। उन्होंने बताया कि जब 1945 के बाद आजादी की लहर तेज होने लगी तो गोरखा रेजिमैंट वहां से पूरी तरह से चली गई। इसके बाद इन बैरकों को पंजाब सरकार के हवाले कर दिया गया और 1945 से 1949 तक यहां एक चौकीदार रहा। 

उन्होंने बताया कि उन दिनों टीबी रोग की बीमारी बड़ी गंभीर थी और उसके लिए एक दानवीर रायबहादुर जोधामल जोकि होशियारपुर के थे ने यहां पर अपने पैसों से टीबी अस्पताल बनाया। इस अस्पताल को बनाने में 3 साल लगे और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने यहां हैलिकाप्टर में आकर इसे लोगों को समर्पित किया। उस समय सदरपुर वासियों ने पहली बार हैलिकाप्टर देखा था। उस समय इस रोग के प्रसिद्ध बंगाल से एक डॉक्टर आए जो काफी लोकप्रिय हुए। यह डॉक्टर लोगों की आधी बीमारी हौंसला देकर दूर कर देते थे। इसके बाद 1994-95 में यहां मेडिकल कॉलेज बनाने की चर्चा शुरू हुई। सैनी ने बताया कि इस योजना के लिए खुले दिल से स्थानीय लोगों ने सराहा और सरकार को हर प्रकार की सहायता देने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि एक ऐसा समय भी आया जब मेडिकल कॉलेज के लिए मेडिकल काऊंसिल ने मान्यता देने से आनाकानी की और इस कॉलेज का भविष्य दांव पर लग गया। हालांकि इसके बाद सरकार के प्रयासों से इसको मान्यता मिली और यह प्रदेश का एक अच्छा मेडिकल संस्थान बन गया।
 


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prashant sharma

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