अंतराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा में इस बार निभाई जाएगी यह परंपरा!

Monday, Aug 21, 2017 - 12:49 AM (IST)

कुल्लू: विश्व विख्यात अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में इस बार पशु बलि होगी। न्यायालय के आदेशों पर पिछले 3 वर्षों से दशहरा उत्सव में पशु बलि नहीं हो पाई थी। कुल्लू दशहरा उत्सव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का हवाला देते हुए रघुनाथ जी के कारिंदों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट में मामले में अंतरिम राहत प्रदान कर रखी है। आगामी आदेशों तक इस पुरानी परंपरा को निभाया जा सकेगा। इन आदेशों की प्रतियां कुल्लू जिला प्रशासन और नगर परिषद कुल्लू को मिल गई हैं। वर्ष 2014 में पशु बलि पर रोक संबंधी न्यायालय के आदेशों के बाद 2014, 2015 और 2016 के दशहरा उत्सव में पशु बलि नहीं दी गई। अब उच्चतम न्यायालय ने अंतरिम राहत देते हुए पशु बलि की इजाजत दे दी है। 

दशहरा उत्सव में दी जाती हैं 7 बलियां
कुल्लू दशहरा उत्सव में 7 बलियां दिए जाने का प्रचलन है। कुल्लू के दशहरा उत्सव में रावण के पुतले को नहीं जलाया जाता। 30 सितम्बर से होने वाला यह उत्सव 7 दिन चलेगा। हर रोज इस उत्सव में 80,000 से एक लाख तक लोग जुटते हैं। कुल्लू दशहरा उत्सव में पशु बलि की इजाजत मिलने से कई लोग परंपरा के सुचारू रहने पर खुश हैं तो पशु प्रेमी इस प्रक्रिया पर नाराज भी हैं। हालांकि कुल्लू का दशहरा उत्सव अधिष्ठाता रघुनाथ जी से जुड़ा हुआ है और सदियों से चली आ रही परंपरा के सुचारू रहने से खासतौर पर कई देव कारकूनों में उच्चतम न्यायालय के आदेशों से खुशी का माहौल है।

नगर परिषद व प्रशासन रखेंगे नजर 
नगर परिषद कुल्लू के कार्यकारी अधिकारी तेज सिंह ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेशों की प्रति नगर परिषद को मिल गई है। बलि को पर्दे में करवाने के आदेश हैं और नगर परिषद व प्रशासन पूरी प्रक्रिया पर नजर रखेंगे। बलि होगी या नहीं यह तो बलि का आयोजन करने वालों पर निर्भर रहेगा लेकिन हम इसे पर्दे में ही करवाने के लिए उन लोगों को बाध्य करेंगे।

1660 से मनाया जा रहा दशहरा उत्सव 
कुल्लू के ढालपुर मैदान में 1660 से लेकर दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है। रघुनाथ जी की त्रेता युग कालीन मूर्ति को वर्ष 1649 में कुल्लू लाया गया। सबसे पहले यह मूर्ति मकराहड़ में रखी गई और फिर इसे मणिकर्ण ले जाया गया। उसके बाद 1660 में मूर्ति नग्गर में रही और फिर कुल्लू के सुल्तानपुर लाई गई। तभी से ढालपुर मैदान में दशहरा उत्सव हो रहा है। 

कुल्लू दशहरा में बलि प्रथा बहुत पुरानी : महेश्वर
रघुनाथ के छड़ीबदार एवं विधायक सदर कुल्लू महेश्वर सिंह ने कहा कि कुल्लू दशहरा में बलि प्रथा बहुत पुरानी है। दशहरा उत्सव पिछले काफी पुराने समय से कुल्लू में मनाया जा रहा है। इसको लेकर यह राहत मिली है कि बलि जहां हो उसके लिए कोई पर्दा होना चाहिए और उसकी संतुष्टि नगर परिषद करे। जो पशु प्रेमी हैं वे भी उस बंद जगह को चैक कर सकते हैं। हमने एप्लीकेशन दी थी और इस पर अब प्रशासन और नगर परिषद इसकी अस्थायी व्यवस्था करवाएंगे। 

क्या कहते हैं कुल्लू के डी.सी.
कुल्लू के डी.सी. युनूस खान ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने बलि के लिए अंतरिम राहत दी है लेकिन यह कहा है कि नगर परिषद और एनीमल वैल्फेयर बोर्ड के मैंबर उस विशेष चिन्हित जगह को विजिट करेंगे जहां बलि का आयोजन होना है। बलि के लिए अलग से स्ट्रक्चर बनाया जाएगा। बाकी जगह न्यायालय के आदेश पूर्व की भांति लागू रहेंगे लेकिन दशहरा उत्सव के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अंतरित राहत प्रदान की है। महेश्वर सिंह सुप्रीम कोर्ट गए थे और उनके आवेदन पर ही सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश जारी किए हैं।