इस दिन से शुरू होगी जोखिम भरी यात्रा, सहूलियतों के नाम पर खोखली बातें

Wednesday, Aug 09, 2017 - 10:49 AM (IST)

चंबा: पिछले कुछ वर्षों से अमरनाथ यात्रा की भांति विश्वप्रसिद्ध मणिमहेश यात्रा भी पूरे देश में धार्मिक दृष्टि से अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाने में सफल रही है। यही वजह है हर वर्ष इस यात्रा में देश-विदेश से लोग बड़ी संख्या में आकर मणिमहेश झील में स्नान करके खुद को पुण्य का भागी मानते हैं। नि:सन्देह धार्मिक मान्यताओं में इस यात्रा को वही महत्व प्राप्त है जोकि कैलाश मानसरोवर यात्रा का है। इसलिए इस यात्रा को मणिमहेश कैलाश कहा जाता है। यह यात्रा धार्मिक दृष्टि से जितनी अधिक महत्वपूर्ण है कठिन भूगोलिक परिस्थति व समुद्र तल से बेहद अधिक ऊंचाई होने के चलते उतनी की कठिन व चुनौतीपूर्ण भी है। इस साल मणिमहेश यात्रा का आगाज 15 अगस्त को जन्माष्टमी से आरंभ होगा। यात्रा के शुरू होने पर सहूलियते तो मिलती हैं पर वह सिर्फ खोखली बातें निकलती हैं।


सहूलियतों में कोई इजाफा नहीं
हर साल स्थानीय स्तर पर आय के विभिन्न स्रोतों के अलावा सरकारी धन से विभिन्न विभागों के खाते से खर्च होने वाली करोड़ों रुपए की राशि भी दशकों बीतने के बावजूद सहूलियतों में कोई इजाफा नहीं कर पाई है। कुछ साल पहले शुरू की गई भरमौर से डल के लिए हैलीकॉप्टर की उड़ान को नई सुविधा के रूप में गिना जा सकता है लेकिन वह भी उन्हीं लोगों के लिए है जिनकी जेब में पैसा है। हवाई सेवाओं के मामले में भी महीने भर से अधिक समय तक दलाल पूरे सिस्टम पर हावी हो जाते हैं। टिकट ब्लैक होने लगती हैं और सरकार की ओर से तय किए गए हवाई उड़ानों के रेट बेमतलब हो जाते हैं। यात्रा में सुविधाओं के सृजन से लेकर तमाम बाकी प्रबंधों की जिम्मेदारी लेने वाले स्थानीय प्रशासनिक अधिकारियों के दावे धरातल की हकीकत में बुरी तरह से पिटे हुए नजर आते हैं। शौचालय, साफ-सफाई या फिर जीवन रक्षा के तमाम इंतजामों का मामला हो, प्रशासन के स्तर पर मौके पर ठोस काम के रूप में कुछ नजर नहीं आता है।


गंभीर रोगों से ग्रस्त लोग न आएं
मणिमहेश यात्रा पर ऐसे कोई लोग न आएं जोकि किसी न किसी गंभीर रोग से ग्रस्ति है। विशेषकर हृदय रोग, श्वास रोग व ऊंचाई से डरने वाले लोग इस यात्रा में बिल्कुल भी न आएं। इन बातों को नजरअंदाज करने वाले लोगों को यात्रा के दौरान गंभीर समस्या का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। ए.डी.एम. भरमौर विनय धीमान का कहना है कि गंभीर रोगों से ग्रस्त लोग अगर इस यात्रा में आते हैं तो उन्हें भारी कठिनाई पेश आएगी, ऐसे में बेहतर है कि ऐसे लोग यात्रा में न आएं।


व्यवस्था पर खर्चे लाखों नजर नहीं आ रहे
मणिमहेश यात्रा में जिंदगी का बड़ा जोखिम सिर्फ भरमौर तक पहुंचने में ही नहीं है और न ही सरकारी विभागों के स्तर पर यात्रा में सुविधाएं उपलब्ध करवाने में तथाकथित बेमानी ही यहां तक है। इसके बाद यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव भरमाणी माता की बात करें तो गाड़ी शुरूआत में ही झटके खाने लगती है। एकदम खड़ी चढ़ाई और ऊपर से गड्ढों वाले इस रोड पर एक बार गाड़ी ने मोशन तोड़ दिया तो समझो फिर न आगे के रहे और न ही पीछे के। इस रोड पर हर वर्ष स्थानीय ठेकेदारों को लो.नि.वि. टारिंग व इसके व्यवस्थीकरण के लिए लाखों रुपए का देता है लेकिन मौके पर आज भी कुछ नजर नहीं आ रहा है। इस रोड पर भी अगर आपको जाना है तो सरकार का भरोसा न करें बल्कि भगवान भरोसे ही रहें। घराडू में बने हुए वन विभाग के रैस्ट हाऊस तक सड़क की हालत ऐसी है कि कीचड़ भरे नाले की हालत इस सड़क से अच्छी होती है। सभी कहते हैं कि सड़क बर्फबारी के दिनों में टूट जाती है लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि टूटे तो तब जब यह कायदे से बने। बनती ही नहीं है। विभाग के अधिकारी ठेकेदार व कुछ राजनीतिक लोग इस सड़क की मुरम्मत के नाम पर हर वर्ष जनता की आंखों में धूल झोंकते हैं। 


यह है हवाई यात्रा की हकीकत
इस यात्रा में कुछ वर्ष पहले हवाई यात्रा सुविधा जोड़ी गई। निजी कंपनी को ठेका दिया जाता है। उसके ही हैलीकॉप्टर उड़ते हैं। इस बार हालांकि ए.डी.एम. विनय कुमार कहते हैं कि उन्होंने कुछ कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ाकर यात्रा की लागत को कम किया है। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस बार करीब एक हजार रुपए का फर्क पड़ा है और जिन्होंने डल तक हवाई यात्रा से जाना है उन्हें इस बार कम पैसा खर्च करना पड़ेगा। सूत्रों ने यहां बताया कि हवाई यात्रा का सरकारी रेटों का तो दिखावा है, असल में कंपनियां अपने एजैंटों व दलालों के माध्यम से इस धंधे में पर्दे के पीछे कुछ और ही खेल खेलती हैं। लोगों की ज्यादा डिमांड को देखते हुए दलाल यहां तय दामों से दोगुने और तीगुने रेटों पर लोगों से हवाई यात्रा के बदले में पैसे ऐंठते हैं।


पार्किंग का सच भी देख लें
भरमौर में प्रशासन की ओर से पार्किंग की सुविधा के लिए ठेके दिए जाते हैं लेकिन लेकिन यह सिर्फ उगाही का ही सीधा सपाट धंधा है। सूत्रों ने यहां बताया कि पार्किंग के जरिए भी यहां स्थानीय प्रभावशाली लोग कथित तौर पर लूट-खसूट करते हैं। तय दरों से हटकर पार्किंग के लिए पैसा वसूला जाता है। सूत्रों ने यहां बताया कि अभी तक पिछली बार की नीलामी का पैसा भी कुछ ठेकेदारों ने प्रशासन को नहीं लौटाया है। ये प्रभावशाली ठेकेदार ऐसे हैं जिनका कोई अधिकारी कार्रवाई के नाम पर बाल भी बांका नहीं कर सकता है।


जनता का सवाल
भरमौर निवासी रिटायर्ड सहायक आबकारी एवं कराधान आयुक्त मोती राम शर्मा कहते हैं कि यह दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि पिछले 15 वर्षों से इस सड़क की हालत नहीं सुधरी है। यहां पर अब तक कई लोगों की जान जा चुकी है। कुल 65  किलो मीटर सड़क पर जैसे यमराज लोगों की जिंदगी लीलने को खड़े हैं। हाल ही में कुछ दिन पहले ढकोग के पास भी एक दम्पति पर चट्टानें गिरने से उनकी मौत हो गई थी। शर्मा का कहना है कि ऐसा नहीं कि सरकार से इस महत्वपूर्ण सड़क की दशा सुधारने के लिए पैसा नहीं आया होगा लेकिन सवाल यह है कि वह खर्च हुआ तो किन हालात में और कहां पर? क्या इसके खर्च करने में राजनीतिज्ञों व अधिकारियों ने सार्वजानिक हित को सामने रखा या फिर व्यक्तिगत और कुछ चहेतों के हित को।


बड़ा सवाल यह भी
भरमौर के अधिकारी इस बार भरमाणी माता मंदिर के लिए सर्कुलर रोड बनाए जाने की बात कहकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं लेकिन इस नए रोड की हालत अभी गाड़ियों के आने-जाने के लायक नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि जब पहले से ही इस मंदिर के लिए बनाए गए रोड की हालत विभाग व प्रशासन सुधार नहीं पाया और यहां पर अकसर यात्रा के दौरान वाहन लुढ़कते हैं तथा कई लोगों की अब तक मौत हो चुकी है तो इस तथाकथित नए रोड का भला क्या भरोसा? भरमाणी माता मंदिर में सिर्फ शौचालयों के ढांचे दिख रहे हैं। रबर की पाइपों से पानी की व्यवस्था के ढांचे खड़े किए गए हैं। दो-एक  शौचालयों से भला लाखों की भीड़ को कैसे सुविधा मिलेगी यह सवाल प्रशासन की जुबान सिल देता है। जो शौचालय यहां बनाए गए हैं, उन पर भी सिर्फ  पैसे खपाने का काम किया गया है। यह भी काम नहीं कर रहे हैं।


यहां खतरा बनी हैं चट्टानें
धरवाला के आगे त्रिलोचन महादेव मंदिर, गैहरा के आगे बत्ती हट्टी तक तक चट्टानें सड़क के ठीक ऊपर लटकी पड़ी हैं जो इस बरसात में कभी भी कहर बरपा सकती हैं लेकिन इन्हें काटकर हटाने के लिए आज तक लो.नि.वि. के पास वो खास तरह का बजट शायद मिल ही नहीं पाया है। लूणा से आगे बत्ती हट्टी तक लूणा से 100 मीटर की दूरी पर एक पहाड़ के नीचे से वाहन गुजरने को मजबूर हैं। इस पहाड़ से परमानैंट मिट्टी व पानी गिर रहे हैं। यह कभी भी दरक सकता है और एक बड़ा जान-माल का नुक्सान यहां हो सकता है लेकिन इसे गिराने की कोई व्यवस्था नहीं हो पाई है।


ए.डी.एम. की नजर में यह है समाधान
ए.डी.एम. भरमौर विनय कुमार कहते हैं कि उनके ध्यान में यह है लेकिन इसका समाधान यही है कि इस पहाड़ के पीछे से आने वाले समय में पुल बनाकर सड़क को आगे जाकर लूणा से जोड़ा जाए। वरना इस पहाड़ को काटना मुश्किल है क्योंकि इसके ऊपर भी पहाड़ पर एक और सड़क है। अगर इसे काटा गया तो उसके भी दरकने के हालात पैदा हो सकते हैं। खड़ामुख से भरमौर को जोड़ने वाले खड़ामुख पुल पर भी वाहनों का बोझ बढ़ रहा है। इसके दोनों सिरों की स्थिति भी लगातार बिगड़ रही है और अचानक यह भी कभी भी किसी हिस्से से दरारों की जद्द में आ सकता है।


डल से हड़सर तक कोई इंतजाम नहीं
मणिमहेश यात्रा पर पैनी नजर रखने वाले कुछ लोगों ने यहां बताया कि हड़सर से लेकर डल झील तक दवाइयों व ऑक्सीजन आदि का प्रबंध सिर्फ खानापूर्ति के लिए होता है। जिस तरह का प्रबंध प्रशासन के कागजों में होता है, मौके पर ऐसा कुछ नहीं दिखता है। जिन लोगों या अधिकारियों को इस सब की जिम्मेदारी दी होती है, वे सब सिर्फ औपचारिकताओं तक ही सीमित रहते हैं। लोगों ने यहां बताया कि प्रशासन के पास किसी भी बड़ी आपदा से निपटने के लिए डल से लेकर हड़सर तक कोई भी प्रभावशाली इंतजाम नहीं हैं। मतलब किसी आपदा में न तो जिंदा लोगों को निकाला जा सकता है और न ही किसी भी प्रकार की अनहोनी के बाद मरने वालों को। प्रशासन की ओर से इतने बड़े आयोजन को देखते हुए एन.डी.आर.एफ. जैसे आपदा प्रबंधन करने वाले संगठन से भी इस मामले में अब तक कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया है और न ही त्वरित कार्रवाई के लिए कोई इंतजाम किए गए हैं। सिर्फ कुछ पर्वतारोहियों व पुलिस के कुछ जवानों के कंधों पर ही यह जिम्मेदारी है।