पांडवों के अज्ञातवास से जुड़े इस चमत्कारी पत्थर का रहस्य जान होगी हैरानी

Tuesday, Feb 06, 2018 - 10:27 PM (IST)

मनाली: वैज्ञानिक चाहें लाख तर्क दें लेकिन श्रद्धा और विश्वास की बात सामने आती है तो उनका विज्ञान धरा का धरा रह जाता है। हिमालय की गोद में बसे शीत मरुस्थल लाहौल-स्पीति में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है। इस बात पर क्या कोई विश्वास कर सकता है कि 80 किलोग्राम का भारी-भरकम पत्थर महज एक अंगुली से उठाया जा सकता है, नहीं न लेकिन ऐसा है। जब कभी लाहौल-स्पीति स्थित माता मृकुला के प्रांगण में आएं तो टॉस चमत्कारी पत्थर को उठाने का प्रयास अवश्य करें, हो सकता है कि आप सफल रहें परंतु यह तभी होगा अगर आप धर्म के मार्ग पर हैं आप के अंदर भक्ति भाव है। 

इस शर्त पर हाथ की मध्यम अंगुली से उठता है पत्थर
लाहौल-स्पीति के उदयपुर स्थित मृकुला माता मन्दिर के प्रांगण में आज भी महाभारत कालीन एक पांडु पत्थर है। इस पत्थर को महज 5 लोग मध्यम अंगुली से माता के जयकारे के साथ स्पर्श मात्र से उठा देते हैं परंतु शर्त श्रद्धा एवं आस्था की है अगर कोई शर्त पर खरा नहीं उतरता है तो मजाल है कि पत्थर अपनी जगह से हिल भी जाए। उपमंडल उदयपुर में स्थित माता मृकुला के दरबार में रखा पड़ाव पत्थर धर्म के मार्ग पर चलने वालों की परीक्षा लेता है। महाभारत के योद्धा व पांडु पुत्र भीम द्वारा रखा गया यह ऐतिहासिक पत्थर आज भी भक्तों को पाप व धर्म का एहसास करवा रहा है। 5 लोगों द्वारा श्रद्धापूर्वक व मां मृकुला व माता काली का जयकारा लगाने पर यह पत्थर सीधे हाथ की एक अंगुली से उठ जाता है। 

पांडु पत्थर की यह है मान्यता
मान्यता है कि पांडु पुत्र भीम जब अज्ञातवास में लाहौल के उदयपुर में आए तो उन्होंने इस पत्थर को मन्दिर के प्रांगण में रखा। भीम इस पत्थर के वजन के बराबर एक समय में भोजन ग्रहण करते थे। अज्ञातवास के दौरान माता कुंती जब पांडवों के लिए भोजन पकाती थी तो भीम अपने भाइयों के हिस्से का सारा भोजन खा जाता था। तब माता कुंती इस पत्थर के भार के बराबर भीम को भोजन देती थी।

मंदिर में ढकी रहती है मां काली की मूर्ति 
स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि उदयपुर में 8वीं सदी के दौरान माता काली का मंदिर हुआ करता था जिसकी मूर्ति आज भी मृकुला मन्दिर में है। इसे काली का खप्पर कहा जाता है तथा यह हर वक्त कपड़े से ढकी रहती है। यह मूर्ति साल में एक बार फागड़ी उत्सव पर निकाली जाती है तथा मन्दिर से पुजारी के घर तक ही लाई जाती है। 

ऐसे पड़ा मरगुल का नाम उदयपुर 
माता के कुल पुरोहित व पुजारी परिवार से बुजुर्ग हीरा दास शर्मा व रामलाल का कहना है कि आज भी मन्दिर के प्रति घाटी के लोगों की अपार आस्था है। 8वीं सदी में मां काली की स्थापना के बाद 16वीं शताब्दी में चम्बा के राजा उद्यम सिंह लाहौल आए। उस दौरान उन्होंने उदयपुर में माता मृकुला देवी की मूर्ति की स्थापना की। कहा जाता है कि पहले इस जगह का नाम मरगुल था लेकिन चम्बा के राजा उधम सिंह के आगमन के बाद इस जगह का नाम उदयपुर पड़ा।