पारंपरिक फसलों का अस्तित्व खतरे में, पढ़ें पूरी खबर

Sunday, Feb 11, 2018 - 12:42 PM (IST)

चम्बा : जिला में पारंपरिक फसलों का अस्तित्व खतरे में है, वहीं जिन फसलों की अलग-अलग किस्में लोगों को खूब भाती थीं, आज उन फसलों को किसान बीजने से परहेज कर रहे हैं क्योंकि आधुनिकता के दौर ने इन फसलों की अहमियत को गौण कर दिया है। यह मुद्दा चम्बा जनमत निर्माण अभियान के दौरान चाय पर चर्चा के दौरान लोगों ने उठाया।

कोदरा, फूलण, सियूल के सेवन से नहीं होता बी.पी., शूगर
काकू, राजदीप और विवेक ने कहा कि कोदरा, फूलण व सियूल ऐसी चीजें हैं जिनका सेवन करने से बी.पी. व शूगर बिल्कुल नहीं होता है। यदि किसी को इस तरह की बीमारी है तो वे लोग कोदरा और फूलण को खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल कर इन बीमारियों पर नियंत्रण पा सकते हैं। लाल चावल और लाल आलू भी सेहत के लिए काफी फायदेमंद माने जाते हैं। अभी भी जिन एरिया में लाल चावल और लाल आलू की फसल होती है वहां पर एडवांस में लोग किसानों के पास पैसे देकर जाते हैं। सबसे बड़़ी बात तो यह है कि भ्रेस, सियूल व चैणी तो अब ढूंढने से भी नहीं मिल रही। पांगी की ठागी, हैजल नट, चिलगोजा और भरमौर के राजमाह, चिलगोजा व भटियात की बासमती, चुराह और साल घाटी की स्वादिष्ट मक्की का अलग ही नजारा है परंतु अब इन पारंपरिक फसलों की गुणवत्ता की अहमियत आधुनिकता की चकाचौंध में गौण होती जा रही है लेकिन जनता नहीं जानती कि जिन पारंपरिक फसलों को उगाने से परहेज किया जा रहे हैं, वे सभी फसलें लोगों की सेहत के लिए कितनी फायदेमंद हैं।

पारंपरिक फसलों को बचाने के लिए उद्योग लगाने चाहिएं 
राजेश कुमार, संदीप और मनजीत ने कहा कि जिला में पैदा होने वाली पारंपरिक फसलों से उत्पाद बनाने के लिए जिला में उद्योग लगने चाहिएं ताकि इन पारंपरिक फसलों के अस्तित्व को बचाया जा सके। जनमत निर्माण अभियान से जुड़े मनुज शर्मा ने भी पारंपरिक फसलों के अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे पर ङ्क्षचता जाहिर की और कहा कि इन फसलों से क्वालिटी युक्त उत्पाद तैयार करने के लिए यदि जिला में उद्योग लगें तो इन सभी फसलों के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।

लोगों द्वारा सेवन न करने से किसान लगाने में कर रहे परहेज 
रमन कुमार, मनोज ठाकुर व नारायण ने कहा कि 2 दशक पूर्व ही पारंपरिक फसलों के अस्तित्व पर खतरा पैदा हुआ है। इससे पहले सब कुछ अच्छा चल रहा था। लोग बी.पी., शूगर और हार्ट अटैक से 2 दशक पूर्व इसलिए बचे रहे क्योंकि लोग पारंपरिक फसलों कोदरा, भ्रेस व फूलण का इस्तेमाल करते थे लेकिन अब लोग इनका सेवन नहीं करते हैं तो किसान भी अब इन्हें लगाने में परहेज करने लगे हैं।