वैज्ञानिकों के लिए पहेली बनी ध्यानमुद्रा में बैठी 565 साल पुरानी ममी

Thursday, Nov 02, 2017 - 01:55 AM (IST)

उदयपुर: देश-विदेश के वैज्ञानिकों के लिए लाहौल-स्पीति के गियू गांव में रहस्य बनी बौद्ध भिक्षु की ममी के बाल और नाखुन बढऩे का क्रम रुक गया है। अपने आप में अजूबा कही जाने वाली इस ममी को वैज्ञानिकों ने हालांकि 565 साल पुरानी बताया है लेकिन सैंकड़ों सालों तक भू-गर्भ में दफन यह बौद्ध भिक्षु जीवित कैसे बैठा रहा, इस रहस्य से वैज्ञानिक भी अभी तक पर्दा नहीं उठा सके हंै। जीवित अवस्था में भू-गर्भ से निकाली गई इस मानव देह को पूरे विश्व में दुर्लभ ममी बताया गया है क्योंकि ध्यानमुद्रा में बैठी ऐसी ममी दुनिया भर में केवल गियु में ही मिली है।

पैरामिलिटरी फोर्स को मिली की खुदाई के दौरान 
लाहौल-स्पीति में हिंदोस्तान-तिब्बत सीमा के जीरो प्वाइंट पर स्थित गियू गांव के लोगों का कहना है कि पैरामिलिटरी फोर्सिज द्वारा कुछ साल पहले गांव के पास एक बंकर की खुदाई का कार्य किया जा रहा था तब खुदाई करने वाले औजार के प्रहार से भू-गर्भ से खून की धारा बह निकली। घटना से आतंकित सेना के जवानों ने सावधानी से बंकर की खुदाई का कार्य जारी रखा। इस दौरान सेना को यह सुरक्षित मानव देह भू-गर्भ में मिली। खुदाई करने वाले औजार की चोट लगने से इस ममी के सिर से खून बह निकला। बाहर निकालते ही इस ममी का मुंह टेढ़ा हो गया तथा मुंह से लाल रंग का तरल भी निकलता देखा गया। ममी के सिर पर गैंती की चोट का सुराख आज भी देखा जा सकता है। 

गांव वालों ने पहचानने से किया इंकार
कौतुहल पैदा करने वाली इस घटना के बाद वयोवृद्ध गांववासियों से सेना द्वारा इस मानव देह की शिनाख्त भी करवाई गई लेकिन उन्होंने इसे पहचानने से इन्कार कर दिया। उनका कहना था कि यहां कोई भी आदमी समाधि पर नहीं बैठा था और न ही उन्होंने जीवन में यह आदमी गांव में देखा है। घटना के दौरान इस मानव के हाथ में माला थी तथा भू-गर्भ में वह ध्यानमुद्रा में बैठा था। अब इसी अवस्था में ममी को एक मंदिर के अंदर स्थापित कर दिया गया है। 

शीशे के आवरण के अंदर है संरक्षित 
देश के आखिरी छोर पर स्थित गियू के पूर्व प्रधान अशोक कुमार ने बताया कि गांव के लोग बारी-बारी अब ममी की पूजा-अर्चना के लिए जा रहे हैं। ममी के लिए गांव के ऊपर पहाड़ी पर सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम के तहत एक वातानुकूलित मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर में शीशे के आवरणों के अंदर इस ममी को संरक्षित किया गया है। उनका कहना है कि देश-विदेश के वैज्ञानिक इस ममी के रहस्य से अभी पर्दा नहीं उठा सके हैं। 

वैज्ञानिकों के लिए भी अबूझ पहेली 
आर्कोलोजी ऑफ  इंडिया के वैज्ञानिकों ने विशेष परीक्षणों के बाद ममी को हालांकि 565 साल पुराना बताया है लेकिन सैंकड़ों सालों तक यह मानव भू-गर्भ में जीवित कैसे रहा, यह तथ्य वैज्ञानिकों के लिए भी अबूझ पहेली बन गया है। क्योंकि सवाल पैदा हुए हैं कि खून तो केवल जिन्दा शरीर से ही निकल सकता है और जिस समय यह ममी भू-गर्भ से निकाली गई थी तो उससे खून निकलता देखा गया था। हालांकि इस मानव का पूरा शरीर सूख चुका था तथा चमड़ी हड्डियों से चिपक गई थी। मांस के इस मानव शरीर में लेश मात्र भी अंश नहीं बचे थे। 

मानव देह से निकलता देखा गया खून 
सूख कर पिंजर बन चुकी इस मानव देह से केवल खून निकलता देखा गया था। कुछ समय तक आश्चर्यजनक रूप से इस ममी के नाखुन और बाल भी बढ़ते रहे हैं लेकिन अब यह सिलसिला एकाएक थम गया है। उनका कहना है कि इस साल भी ममी को देखने के लिए हजारों पर्यटक गियू गांव में पहुंचे लेकिन एक भी पर्यटक गांव में नहीं रुक सका। गांव में पर्यटकों के ठहरने की कोई व्यवस्था नहीं है। दूरसंचार सेवाएं तो इस क्षेत्र तक पहुंच नहीं पाई हैं। यह सब सुरक्षा कारणों से असंभव हुआ है।