मंदिर ट्रस्ट ने गऊशाला के विस्तार के लिए शुरू किया काम

Wednesday, Jul 11, 2018 - 02:00 PM (IST)

जोल : तलमेहड़ा के सदाशिव मंदिर ध्योमेश्वर महादेव में मंदिर ट्रस्ट गौ अभ्यारण्य स्थापित किया जाएगा। इस समय यहां 40 से अधिक गऊओं पर आधारित गऊशाला संचालित की जा रही है। मंदिर ट्रस्ट ने गऊशाला के विस्तार के लिए काम शुरू कर दिया है। इसके अतिरिक्त मंदिर के विस्तारीकरण योजना के तहत आसपास के क्षेत्र में भी सौंदर्यीकरण योजना शुरू की जाएगी। मंदिर ट्रस्ट द्वारा यहां चल रहे लंगर में अब ऑटोमैटिक चपाती मशीन के साथ-साथ इसे हाईटैक भी किया जा रहा है। जिला ऊना के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक तलमेहड़ा के सदाशिव मंदिर की विशेष धार्मिक मान्यता है कि पूरा वर्ष यहां लाखों की तादाद में श्रद्धालु नमन करने और भगवान शंकर की आराधना करने के लिए पहुंचते हैं।

पांडवों के पुरोहित ने ध्यूंसर नामक पर्वत पर की थी शिव की तपस्या 
मान्यता है कि करीब 5,500 वर्ष पहले महाभारत काल में पांडवों के पुरोहित श्री धौम्य ऋषि ने तीर्थ यात्रा करते हुए इसी ध्यूंसर नामक पर्वत पर शिव की तपस्या की थी। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर दर्शन देते हुए वर मांगने को कहा था, जिस पर ऋषि ने वर मांगा कि इस पूरे क्षेत्र में आकर उनके द्वारा स्थापित किए गए ध्योमेश्वर शिव की पूजा करने वालों की मनोकामनाएं पूरी हों। मान्यताओं के मुताबिक भगवान शिव तथास्तु कह कर अंतध्र्यान हो गए थे। प्राचीन काल में स्थापित किए गए शिवङ्क्षलग को ध्यूंसर सदाशिव के नाम से जाना जाता है।

ओंकारानंद गिरि जी ने 1947 में की थी मंदिर स्थल की खोज
किंवदंतियों के मुताबिक श्री गंगा के तट पर तपस्या में लीन स्वामी ओंकारानंद गिरि को सन् 1937 में स्वप्र में भगवान शिव ने दर्शन देते हुए इस स्थल के महत्व का ज्ञान करवाया था। इसके बाद मंदिर की खोज करते हुए ओंकारानंद गिरि जी ने 1947 में सनातन उच्च विद्यालय के तत्कालीन प्रधानाचार्य शिव प्रसाद शर्मा के सहयोग से मंदिर स्थल की खोज की और यहां विधिवत पूजा-अर्चना शुरू कर दी।

पहली बार 1948 में किया था शिवरात्रि का आयोजन
मंदिर के वर्तमान पुजारी उत्तराखंड के सिद्ध राज शास्त्री के मुताबिक 1948 में पहली बार जिला के इस सबसे ऊंचे स्थल पर मौजूद पवित्र शिवलिंग के स्थान पर शिवरात्रि का आयोजन किया गया था। 1988 तक स्वामी ओंकारानंद गिरि जी इस मंदिर का संचालन करते रहे। उनके उपरांत मंदिर समिति इसके प्रबंधों का जिम्मा संभाले हुए है। यहां करीब 5,000 लोगों से अधिक क्षमता के लंगर हाल के साथ-साथ जगह-जगह श्रद्धालुओं के बैठने के लिए अच्छी व्यवस्था की गई है। 


प्रसाद के लिए मंगवाई जा रही मशीन 
इस मंदिर में अब पॉलीथीन या उससे संबंधित किसी भी चीज का प्रयोग बंद कर दिया गया है। इसकी जगह ईको-फ्रैंडली चीजों का प्रयोग किया जाएगा। प्रसाद के लिए भी एक मशीन मंगवाई जा रही है जो तिरुपति बाला जी मंदिर की तर्ज पर विशुद्ध रूप से कागज की पैकिंग में प्रसाद का वितरण करेगी।

जरूरतमंद लोगों को दी जा रही आर्थिक मदद
मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष एवं वर्तमान ट्रस्ट के प्रमुख पदाधिकारी प्रवीण शर्मा का कहना है कि ट्रस्ट न केवल श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधाएं दे रहा है बल्कि मंदिर के सौंदर्यीकरण, गऊशाला संचालन के साथ-साथ लंगर का भी संचालन कर रहा है। इस मंदिर की तरफ से जरूरतमंद लोगों के उपचार एवं दूसरी प्रकार की आर्थिक मदद भी दी जाती है। इसमें गरीबों को राशन और कन्याओं की शादी के लिए भी सहायता प्रदान की जाती है। पिछले कुछ वर्षों से मंदिर के चढ़ावे में काफी वृद्धि हुई है, इससे यहां सुविधाएं जुटाना और आसान हुआ है। 

kirti