अचानक एक्शन में आई वीरभद्र सरकार

Monday, May 01, 2017 - 09:56 AM (IST)

शिमला: नगर निगम चुनाव के लिए राज्य की वीरभद्र सरकार अचानक एक्शन में आ गई है। आरक्षण रोस्टर जारी कर सरकार ने यह जतलाने का प्रयास किया है कि वह चुनाव के प्रति कितनी सजग और संजीदा है। रोस्टर पर पहले ‘रार’ छिड़ती रही। इसके संभावित तौर तरीकों पर सवाल भी उठे, पर अब सरकार ने सवाल उठाने वालों को करारा जवाब दे दिया है। रोस्टर आबादी आधारित फार्मूले पर लागू किया गया है। पहले ड्रा पद्धति को अपनाए जाने की चर्चाएं थीं। इन सब चर्चाओं पर विराम लग गया है। इसके लिए सरकार ने नगर निगम धर्मशाला के फार्मूले को नहीं अपनाया। हालांकि शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा इसके पक्ष में थे, लेकिन सरकार ने विवाद खड़ा होने की कोई गुंजाइश ही नहीं छोड़ी है। पूरी पारदर्शिता के साथ रोस्टर की अधिसूचना जारी की।


वोटर लिस्ट पर खड़ा हुआ बड़ा विवाद 
अमूमन चुनाव की तारीख पहले घोषित होती थी और रोस्टर बाद में लागू होता था। अबकी बार इससेउल्टा हुआ। जिस तरह से सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे थे, उससे बचने का इससे बड़ा कोई दूसरा तरीका नहीं हो सकता था। उम्मीद यही की जा रही है कि राज्य निर्वाचन आयोग जल्द ही चुनाव की घोषणा कर देगी। इसके लिए वोटर बनाने की प्रक्रिया पूरी होने का इंतजार किया जा रहा है। यह 2-3 दिन में पूरी तरह से तैयार हो पाएगी, इसकी संभावनाएं कम हैं। इसकी वजह यह है कि इसमें काफी खामियां रह गई हैं। इन्हें दूर करने के प्रयास भी हुए, पर ये नाकाफी ही साबित हुए हैं। इससे पहले नगर निगम में परिसीमन पर सवाल उठे थे। पुनर्सीमांकन ने एक तरह से सियासी रेखाएं खींच दीं थीं। इसके बाद वोटर लिस्ट पर बड़ा विवाद खड़ा हो गया। विपक्षी दल भाजपा ने वोटर लिस्ट से गायब नामों का मामला राज्य निर्वाचन आयोग तक उठाया था। वामपंथी इसे कोर्ट तक ले गए।


वोट बनाने को लेकर निर्देश
कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया, साथ ही वोट बनाने को लेकर निर्देश भी दिए। इन निर्देशों के अनुसार प्रशासन ने मतदाताओं के दावे और आपत्तियों के लिए और वक्त दिया है। ये पहली मई तक दर्ज किए जा सकेंगे। इसके लिए 5 और केंद्र भी स्थापित किए गए हैं। चुनाव को लेकर सरकार के पास एक विकल्प यह भी है कि वह निगम के मौजूदा कार्यकाल को 6 महीने के लिए और बढ़ा सकती है। यह कार्यकाल 5 जून को पूरा हो रहा है। इससे पहले नए का गठन करना होगा। यह सरकार पर निर्भर करेगा कि वह कार्यकाल बढ़ाती है या नहीं। इस बारे में सरकार राज्य निर्वाचन आयोग के साथ भी सलाह-मशविरा कर सकती है। लेकिन जिस तरीके से रोस्टर की अधिसूचना जारी हुई है, उससे संकेत तो यही लग रहे हैं कि चुनाव जल्द होंगे। 


सी.एम. ने टिप्पणी से इरादे किए स्पष्ट
चुनाव पार्टी सिंबल पर नहीं होंगे, ऐसे संकेत मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने दिए हैं। पहले इन्होंने ही कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक में पार्टी सिंबल पर चुनाव करवाने की बात कही थी। अब उन्होंने इस पर ताजा बयान दिया है। इसमें कहा गया है कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने मोदी की शिमला रैली से भाजपा के पक्ष में चल रही लहर को निराधार करार दिया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि एम.सी. या फिर विधानसभा के चुनाव एक जलसे से नहीं जीते जा सकते हैं। सी.एम. ने इस टिप्पणी के माध्यम से अपने इरादे साफ कर दिए हैं लेकिन लगता नहीं कि चुनाव पार्टी सिंबल पर होंगे भी। इसके लिए सरकार धर्मशाला पैट्रन को अपना सकती है। अगर ऐसा हुआ तो फिर पार्षद पद के उम्मीदवार पार्टी के समर्थित माने जाएंगे। पार्टियां पर्दे के पीछे से कार्य करेंगी। पार्टियां अपने समर्थक खड़े करेंगी। इसके लिए अधिकृत समर्थित प्रत्याशियों की सूची भी जारी करेंगी लेकिन उस सूरत में एक ही पार्टी से कई-कई समर्थित प्रत्याशी खड़े हो सकते हैं। उससे पार्टियों में बागियों की तादाद भी बढऩे के आसार पैदा होंगे। चुनाव के बाद पार्षदों के खरीद फरोख्त की आशंकाएं बढ़ेंगी। सत्ताधारी दल पर कई तरह के हथकंडे अपनाए जाने के आरोप लग सकते हैं। ऐसा पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में होता रहा है। 


कांग्रेस ने थपथपाई सरकार की पीठ
कांग्रेस ने रोस्टर जारी करने के लिए सरकार की पीठ थपथपाई है। कांग्रेस का कहना है कि सरकार ने पूरी तरह से पारदर्शिता के साथ कार्य किया है। पार्टी का मानना है कि सरकार चाहती तो पूर्व की तरह ड्रा सिस्टम से आरक्षण तय करती। कांग्रेस के प्रदेश महासचिव नरेश चौहान का कहना है कि बेशक इससे कांग्रेस के ही सिटिंग पार्षदों पर गाज गिरी है, फिर भी यह लोकतंत्र के हक में है। इससे पारदर्शिता बढ़ी है। उन्होंने बताया कि सरकार पार्टी सिंबल पर चुनाव नहीं करवाएगी, ऐसी खबरें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के हवाले के प्रकाशित हुई हैं। उनका कहना है कि धर्मशाला में भी पार्टी सिंबल पर चुनाव नहीं हुए थे। वहां भी कांग्रेस जीती। मेयर और डिप्टी मेयर पद पर कांग्रेस विचारधारा से जुड़े पार्षद काबिज हुए। कोई खरीद-फरोख्त नहीं हुई। वो पैट्रन पहले ही अधिसूचित है। उसके लिए सरकार को अलग से अधिसूचना भी निकालने की जरूरत नहीं रहेगी। हां यह बात सही है कि वोटर को वोट बनाने का मौका मिलना चाहिए। इस बारे में सरकार चाहे तो वोटर लिस्ट में सुधार करने के लिए कुछ महीनों का और वक्त दे सकती है। इस कार्य के लिए सरकार निगम का कार्यकाल बढ़ा सकती है। यह फैसला भी सरकार को करना है। कांग्रेस पार्टी को इस पर भी आपत्ति नहीं है।


कांग्रेस सरकार के फैसले की ‘अपनों’ पर ही गिरी गाज
कांग्रेस सरकार ने आबादी आधारित रोस्टर लागू करने की गाज ‘अपनों ‘पर ही गिरी है। पार्टी के 5 मौजूदा पार्षद दोबारा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। अगर ड्रा सिस्टम से रोस्टर लागू करवाया जाता तो शायद उनकी लॉटरी निकलती। इसी कारण वे कैबिनेट मंत्री सुधीर शर्मा पर भी लगातार धर्मशाला पैटर्न लागू करने का दबाव डाल रहे थे। उनका दबाव काम नहीं आया। सरकार ने एक झटके से इन कांग्रेस नेताओं के दोबारा चुनाव लडऩे के अरमानों पर पानी फेर दिया है। गेहूं के साथ घुन भी पिसा जाता है। यह कहावत भाजपा के कुछ पार्षदों पर भी लागू हुई है। वे भी फिर से चुनाव लडऩे का सपना देख रहे थे। इनका सपना भी चकनाचूर हो गया है। अब इन नेताओं को दूसरों को चुनाव लडऩे का मौका देना ही होगा। उनके पास इसके अलावा दूसरा विकल्प नहीं रह गया है। चंद ही ऐसे हैं जो दूसरे वार्डों में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। रोस्टर जारी होने से चुनावी तस्वीर पूरी तरह से साफ हो गई है। कौन वार्ड किसने के लिए आरक्षित या अनारक्षित हो गया है, यह बात सार्वजनिक हो गई है। इससे पूरी तरह से पर्दा हट गया है। अब बस चुनाव शैड्यूल घोषित होने भर का इंतजार है। अब वार्डों में नए सिरे से सियासी समीकरण बनेंगे। पहले सब कुछ हवाहवाई था। अब सब कुछ धरातल पर आ गया है।