हिमाचल की ऐसी घाटी जहां नहीं मनाई जाती दीवाली, जानिए क्या है मान्यता

Tuesday, Nov 06, 2018 - 09:37 PM (IST)

मनाली: एक ओर हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ में दशहरा और धीरा उपमंडल के अटियाला दाई गांव में दीवाली नहीं मनाने का रिवाज है तो प्रदेश में एक और गांव ऐसा भी है जहां दीवाली नहीं मनाई जाती, वहीं जिला कुल्लू की ऊझी घाटी में दीवाली की बजाय दियाली त्यौहार की धूम रहती है। यहां दीवाली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। लाहौल-स्पीति जिले सहित मनाली की ऊझी घाटी में न तो पटाखों की गूंज सुनाई देती है और न ही मिठाइयां बांटने का कोई रिवाज है। यहां दीवाली को भी माहौल सामान्य दिनों की तरह रहता है। हालांकि दीवाली के दौरान लोग घरों में अब लक्ष्मी की पूजा करने लगे हैं लेकिन पटाखों से अभी भी दूरी बनाए हुए हैं।

सतयुग से हो रहा आराध्यदेव के आदेशों का पालन
इस घाटी को मनाली की ऊझी घाटी के नाम से जाना जाता है। यह वही घाटी है जो सतयुग से अपने आराध्यदेव के आदेशों का पालन करती रही है और आज भी जनवरी महीने में लोहड़ी पर्व के दौरान ऊझी घाटी के लोग देवता के तपस्या में लीन होने के चलते 42 दिन न टी.वी. देखते हैं न ही खेत-खलिहानों का रुख करते हैं। मनाली के सोलंग, पलचान, रुआड, कोठी, कुलंग, मझाच, बरुआ, शनाग, गौशाल और मनाली गांव के ग्रामीण आज भी पटाखों से दूरी बनाए हुए हैं।

दियाली उत्सव मनाएंगे लोग
इस बार भी लोग सदियों पुरानी परंपरा को निभाते हुए दीवाली के बजाय दियाली उत्सव को मनाएंगे। दियाली उत्सव दिसम्बर महीने में सृष्टि के रचयिता मनु महाराज के प्रांगण से शुरू होगा और समस्त घाटी में मनाया जाएगा। मान्यता है कि सॢदयों में घाटी भारी बर्फबारी में दब जाती थी तो प्रेत आत्माओं से रक्षा करने को लोग देवताओं की पूजा करते थे और उत्सव मनाकर बुरी आत्माओं को घाटी से बाहर भगाते थे।

यह है इसके पीछे मान्यता
मान्यता है कि भगवान राम जब लंका पर विजयी होकर घर लौटे तो देश भर में खुशियां मनाई गईं और घी के दीये जलाए गए, उस समय लाहौल-स्पीति सहित मनाली की ऊझी घाटी बर्फ  में दबी होने के कारण यह जानकारी समय पर नहीं मिली। लोग सदियों से इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।

पोष महीने में मनाई जाती है ईको फ्रैंडली दीवाली
मनाली गांव के निवासी हेमराज ठाकुर ने कहा कि घाटी के लोग सदियों से दीवाली उत्सव को नहीं मानते हैं, क्योंकि ऊझी घाटी की स्थानीय दीवाली पोष के महीने में मनाई जाती है और इस उत्सव की यह विशेषता है कि इसे ईको फ्रैंडली रूप में मनाते हैं जिसमें पटाखे आदि प्रदूषण पैदा करने वाले किसी भी उत्पाद का कोई प्रयोग नहीं होता है। परम्परागत रूप में दीये की जगह रोशनी के लिए मशालों का प्रयोग किया जाता है। घर पर बने मीठे पकवान के रूप में गिच्चो का प्रयोग किया जाता है जोकि बजार में मिलने वाली मिलावटी मिठाइयों से हजार गुना बेहतर हैं।

Vijay