बर्फबारी होते ही यहां छा जाएगा अंधेरा, चौंकिए मत मगर यह सच है !

Saturday, Dec 03, 2016 - 12:21 PM (IST)

उदयपुर: भारी हिमपात के बाद शेष दुनिया से अलग-थलग रहने वाले जनजातीय जिला लाहौल के बिजली उपभोक्ता अंधेरे में रहें या फिर चिरागों से घरों को रोशन करें, इससे राज्य सरकार की सेहत को कोई खास असर नहीं पड़ता, क्योंकि रोहतांग दर्रा बंद हो जाने के बाद लाहौल-स्पीति में बिजली का संकट हर बार गहराता रहा है। नतीजतन समस्या का कोई स्थायी समाधान न निकल पाने के कारण लाहौल के बिजली उपभोक्ताओं में इस बार भी असमंजस की स्थिति पनपने लगी है। 


सर्दियों के दौरान बिजली की समस्या से परेशान बिजली उपभोक्ताओं ने राज्य सरकार के समक्ष व्यथा सुनाते हुए थिरोट हाइडल प्रोजैक्ट के निजीकरण की मांग तक उठा डाली है। उनका मानना है कि निजीकरण के बाद थिरोट हाइड्रल प्रोजैक्ट की तकनीकी खामियां दूर होंगी और लाहौल में बिजली की समस्या सदा के लिए हल हो जाएगी लेकिन राज्य सरकार ने उनकी एक नहीं सुनी है, अब थिरोट हाइड्रल प्रोजैक्ट में बिजली का उत्पादन न्यूनतम स्तर तक आ पहुंचा है, ऐसे में बर्फबारी से 33 ग्रिड की तारें रोहतांग दर्रे पर धराशाई हो जाती हैं तो लाहौल को अंधेरे में डूबने से कोई नहीं रोक सकता है। बिजली के सताए लाहौल के लोगों ने मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह से उदयपुर में हाल ही में मांग की है कि थिरोट हाइड्रल प्रोजैक्ट को निजी हाथों में सौंप दिया जाए।


तकनीकी खामियों की बजह से यह प्रोजैक्ट हमेशा ही लाहौल का अंधेरा दूर करने में नाकाम रहा है। प्रोजैक्ट निजी हाथों में जाएगा, उसके बाद यह धड़ल्ले से बिजली भी उगलेगा। इस संदर्भ में लाहौल की कई पंचायतों द्वारा पारित किए गए प्रस्तावों की प्रतिलिपियां भी मुख्यमंत्री को सौंपी गई हैं। इतना ही नहीं पंचायतों के सैंकड़ों लोगों के हस्ताक्षर किए दस्तावेज भी इसके साथ मुख्यमंत्री को दिए गए हैं लेकिन राज्य सरकार की ओर से इस दिशा में न तो कोई साकारात्मक निर्देश राज्य विद्युत परिषद को आए हैं, और न ही बिजली के सताए उपभोक्ताओं की समस्या का निराकरण हुआ है। उधर, थिरोट हाइड्रल प्रोजैक्ट में बिजली का उत्पादन भी निम्न बिंदु पर आ गया है। 


प्रोजैक्ट में हालांकि 3 टरबाइनों से प्रतिघंटा 4.5 मैगावाट बिजली पैदा करने की क्षमता है लेकिन वर्तमान समय में प्रतिघंटा महज 1.5 मैगावाट बिजली पैदा करना भी राज्य विद्युत परिषद के लिए मुश्किल हो गया है। प्रोजैक्ट में इसके लिए 1.5 मैगावाट क्षमता वाली 3 टरबाइनें स्थापित की गई हैं। जिनमें एक टरबाइन कई महीनों से खराब पड़ी है। आलम यह है कि इस समय एक घंटे में 1.5 मैगावाट बिजली बन रही है, यानी 3 टरबाइनों वाले इस प्रोजैक्ट के बिजलीघर में इस समय में केवल एक टरबाइन से बिजली पैदा की जा रही है बाकि 2 बंद हैं। अगर 2 चल रही होती तो 3 मैगावाट प्रति घंटा बिजली तैयार की जा सकती थी। इन परिस्थितियों में अब जैसे ही बर्फबारी होगी और लाहौल को कुल्लू-मनाली से की जा रही बिजली आपूर्ति के 33 ग्रिड की तारें रोहतांग में बिछ जाएंगी, तब बिजली के बिना कैसे जगमगा सकेंगे। 


बर्फीले रेगिस्तान के घर, इसी उधेड़बुन में लाहौल के बिजली उपभोक्ता भी फंसे हुए हैं। उपभोक्ताओं ने बताया कि बर्फबारी के बाद सर्दियों में बिजली के बिना हालात इतने बदतर हो जाते हैं कि स्कूली बच्चे भी चिरागों की रोशनी में पढ़ाई करते हैं। बिजली के गुल रहने का ऐसा मंजर उनके लिए उस समय और भी असहनीय हो जाता है, जब अंधेरे में जीने वाले लोग संचार माध्यमों के ठप्प हो जाने पर शेष दुनिया से भी अलग-थलग पड़ जाते हैं।