आजादी के बाद पहली बार देवभूमि के ‘इस’ क्षेत्र में पहुंच रहा कोई मुख्यमंत्री

Wednesday, Dec 07, 2016 - 07:08 PM (IST)

कुल्लू: प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का शुक्रवार को शांघड़ दौरा बेहद खास रहने वाला है। आजादी के बाद पहली बार कोई मुख्यमंत्री यहां पहुंच रहा है। इससे भी खास बात यह है कि सैंकड़ों वर्षों के बाद बुशैहर राजपरिवार से कोई सदस्य यहां पहुंच रहा है और उसे वही खास गद्दी (पत्थरों का थड़ा) बैठने को दी जाएगी जहां बताया जाता है कि बुशहर राजघराने से कभी देवता शंगचूल महादेव के दर्शन को स्वयं तत्कालीन राजा भाद्र सिंह आए थे। इसके बाद आज तक न तो कोई मुख्यमंत्री यहां आया और न कोई राजा। 

हालांकि कुल्लू राजपरिवार से महेश्वर सिंह व उनके छोटे भाई कर्ण सिंह यहां कई बार आ चुके हैं लेकिन बुशहर राजघराने का इस स्थल से बेहद गहरा नाता बताया जा रहा है। इस समय इस राजघराने से प्रदेश के मुख्यमंत्री ही प्रतिनिधित्व करते हैं लिहाजा यह पहला मौका है कि कोई सूबे क ा मुख्यमंत्री और संयोग से बुशैहर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले वीरभद्र सिंह यहां पहली बार पहुंच रहे हैं। मुख्यमंत्री के यहां आने का कारण धार्मिक आयोजन है जहां वे देवता शंगचूल महादेव की नवनिर्मित कोठी की प्रतिष्ठा समारोह में भाग लेंगे। उनके इस दौरे को लेकर जहां प्रशासन तैयारियों में जुटा है, वहीं देव समाज भी इस ऐतिहासिक मौके को हमेशा के लिए यादगार बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोडऩा चाहता। बंजार ब्लाक कांग्रेस के अध्यक्ष सुरेंद्र शर्मा ने कहा कि इस दौरे को खास बनाया जा रहा है जिसकी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है। 

देवता के नाम है 565 बीघा का मैदान 
खास बात यह है कि यहां देवता के नाम 565 बीघा का मैदान (प्रदेश का सबसे बड़ा देव स्थल) है जिसे देवता शंगचूल महादेव की शक्ति परखने के बाद तत्कालीन राजा भाद्र सिंह ने दिया है। देवता के कारकून गिरधारी लाल व लीलाधर के अनुसार देवता किनौर जिला की कामरू घाटी से यहां आया था और जब वहां के राजा भाद्र सिंह को इसका पता चला तो वे यहां चले आए। देवता ने यहां मैदान में ही उन्हें सांप के रूप में दर्शन दिए तो राजा डर गया। देवता के हारियानों ने बताया कि यह देवता हैं तो राजा ने शक्ति परखने की मंशा से कहा कि ऐसा है तो ये मेरे सामने की गायब हो जाएं तो विशालकाय सांप वहीं गोबर के उपले में ही पलभर में गायब हो गया जिस पर राजा ने खुश होकर 565 बीघा का मैदान देवता को दे दिया जहां आजकल पशुओं के चारे के लिए करीब 128 बीघा जमीन खाली है, 100 बीघा पुजारियों व इतनी ही बजंत्रियों को दे दी। इसके अलावा मैदान के बीच में ही यादगार के तौर पर एक  खाली थड़ा रखा जिसे राजा का थड़ा नाम दिया गया और वह आज भी वैसा ही है जिस पर आजतक राजा भाद्र सिंह के बाद कोई नहीं बैठा। इस बार इस इतिहास को दोहराया जा रहा है।   

आग लगने से तबाह हो गई थी देवता की कोठी 
बता दें कि 6 अप्रैल, 2015 को अचानक आग लगने से देवता की कोठी तबाह हो गई थी। इस आग लगने की घटना में 3 मकान जल गए थे और देवता के स्वर्ण रथ को बड़ी मुश्किल से बचा लिया गया था। देवदार की लकड़ी से बनी यह आलीशान कोठी पूरे प्रदेश में सबसे अलग थी। इसके बाद लोगों ने स्वयं ही इसका निर्माण शुरू किया और जब मुख्यमंत्री को इसका पता चला तो उन्होंने 40 लाख रुपए देने की घोषणा की। अब करीब 60 लाख रुपए की राशि से रिकार्ड समय में कोठी बनकर तैयार हुई है। जिसमें लोगों ने काफी ज्यादा श्रमदान किया है। देवता के कारकूनों ने फिर से उसी स्वरूप में कोठी तैयार की है, जिसकी शुक्रवार को प्रतिष्ठा होगी।