अब क्षेत्र में आड़ू की फसल बनी घाटे का सौदा

Monday, Sep 02, 2019 - 05:22 PM (IST)

राजगढ़: एक समय था जब राजगढ़ में भारी मात्रा में आड़ू का उत्पादन होता था और यहां का आड़ू एशिया में प्रसिद्ध था। सरकार द्वारा भी राजगढ़ को सरकारी तौर पर पीच वैली का दर्जा दिया गया था। आज भी यशवंत नगर के पास पीच वैली का एक बड़ा प्रवेश द्वार लगा है लेकिन सरकार ने कभी भी आड़ू उत्पादकों के बारे सुध नहीं ली। जिस कारण यहां के बागवानों के लिए आड़ू उत्पादन घाटे का सौदा बनता गया। परिणाम यह है कि जिस राजगढ़ क्षेत्र में 90 के दशक में लगभग 25 हजार 600 मीट्रिक टन आड़ू का उत्पादन होता था। आज यहां लगभग उत्पादन आधे से भी कम रह गया है। गौरतलब है कि आड़ू का उत्पादन हिमाचल के राजगढ़ व उत्तराखंड के नैनीताल क्षेत्र के अलावा देश के किसी अन्य भाग में नहीं होता और देश भर में आड़ू की काफी मांग है।

बिचौलिए बागवानों की कमाई डकार जाते हैं

प्रदेश में उगाए जाने वाले लगभग सभी फलों का सरकार द्वारा समर्थन मूल्य दिया जाता है और आड़ू को आज तक समर्थन मूल्य नहीं मिल पाया है। निम्न गुणवत्ता वाला आड़ू मार्कीट में नहीं बिक पाता, जिस कारण बागवानों को इस प्रकार का आड़ू फैंकना पड़ता है। यहां बागवानों को आड़ू की विपणन संबंधी भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आड़ू को बगीचों से तोडऩे के बाद चंद घंटों में मार्कीट पहुंचाना पड़ता है अन्यथा यह खराब हो जाता है लेकिन सरकार की ओर से क्षेत्र में अभी तक न तो कोल्ड स्टोर की व्यवस्था की गई है और न ही आड़ू को मार्कीट तक पहुंचाने के लिए कोल्ड वैन का कोई प्रबंध किया गया है। बिचौलिए बागवानों की कमाई डकार जाते हैं।

नहीं हुई आड़ू मूल्य में वृद्धि

इसके उत्पादन से लेकर मार्कीट तक पहुंचाने के लिए आने वाले खर्चों में साल दर साल वृद्धि होना मगर आड़ू के मूल्यों में वृद्धि नहीं होना, 90 के दशक में एक पेटी आड़ू पर बागवानों का लगभग 70 से 80 रुपए खर्च आता था और आज यही खर्च बढ़कर लगभग 150 रुपए प्रति पेटी तक पहुंच गया है। मगर आड़ू की मार्कीट 90 के दशक में भी 150 से 400 रुपए के लगभग प्रति पेटी था और आज भी लगभग इस दाम पर आड़ू बिकता है

 

Kuldeep