हिमाचलः गुड़िया दुष्कर्म-हत्या मामले में दोषी को मृत्यु पर्यंत आजीवन कारावास की सजा

Friday, Jun 18, 2021 - 10:23 PM (IST)

शिमला, 18 जून (भाषा) चर्चित गुड़िया दुष्कर्म-हत्या के मामले में अदालत ने शुक्रवार को दोषी को मृत्यु होने तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई। चार साल पहले हुए इस अपराध के बाद पूरे हिमाचल में रोष व्याप्त हो गया था।
शिमला की एक अदालत ने इस मामले में लकड़हारे अनिल कुमार उर्फ नीलू (28) पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। विशेष न्यायाधीश राजीव भारद्वाज ने दोषी की मौजूदगी में यह आदेश सुनाया।

अदालत ने इससे पहले 28 अप्रैल को 16 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में अनिल को दोषी ठहराया था।
गौरतलब है कि चार जुलाई, 2017 को स्कूल से घर जा रही छात्रा की शिमला के कोटखाई में जंगल के इलाके में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई थी।
विशेष न्यायाधीश भारद्वाज ने 28 अप्रैल को अनिल कुमार को बलात्कार और हत्या से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत दोषी ठहराया था।

फैसले से नाखुश गुड़िया की मां ने मामले की दोबारा जांच की मांग की। उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि अपराध किसी एक व्यक्ति ने नहीं किया है। उन्होंने मांग की कि मामले की दोबारा जांच की जाए और सभी दोषियों को फांसी दी जाए।

निर्दोष होने का दावा करते हुए, दोषी ने अदालत के बाहर संवाददाताओं से कहा कि वह उच्च न्यायालय में आदेश को चुनौती देगा।

इस बीच कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह और माकपा विधायक राकेश सिंघा ने भी सीबीआई जांच पर सवाल उठाते हुए दावा किया कि असली अपराधी अब भी खुलेआम घूम रहे हैं।

हालांकि केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि मामला बहुत चुनौतीपूर्ण था क्योंकि कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था और यह अपराध घने जंगल में हुआ था। सीबीआई ने कहा कि अन्य सबूतों के साथ, डीएनए के माध्यम से अपराध में आरोपी की संलिप्तता स्थापित की गई थी।

इस मामले में कई नाटकीय मोड़ आए, जिसमें अपराध करने के संदेह में एक व्यक्ति की हिरासत में मौत और इस संबंध में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की गिरफ्तारी शामिल है।
सीबीआई ने तब मामले की कमान संभाली और तीन साल पहले अनिल कुमार को गिरफ्तार किया।

न्यायाधीश ने कहा कि सीबीआई द्वारा पेश किए गए सबूतों के 14 महत्वपूर्ण बिंदुओं में से 12 दोषी के खिलाफ गए। उन्होंने कहा कि उनमें से सबसे महत्वपूर्ण था, उसके डीएनए का अपराध स्थल पर मिले नमूनों से मिलान करना।

इस बीच शिमला (ग्रामीण) से कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि उनके पिता और तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने गुड़िया को न्याय दिलाने के लिए सीबीआई को जांच सौंपी थी, लेकिन एक गरीब लकड़हारे को गलत जांच के कारण मामले में फंसा दिया गया था। कांग्रेस विधायक ने कहा कि कोटखाई पुलिस सीबीआई से बेहतर जांच करती। उन्होंने कहा कि असली अपराधी अभी भी फरार हैं जबकि लकड़हारे को झूठा फंसाया गया है।

माकपा के एकमात्र विधायक राकेश सिंघा ने पत्रकारों से कहा कि मामले की दोबारा जांच होनी चाहिए। आम आदमी भी जानता है कि अपराध किसी एक व्यक्ति ने नहीं बल्कि एक गिरोह ने किया है और अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं।

किशोरी के लापता होने के दो दिन बाद उसका शव जंगल में मिला था। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बलात्कार और हत्या की बात सामने आई थी। कुछ दिनों बाद, राज्य पुलिस ने महानिरीक्षक जेड जहूर जैदी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का गठन किया।

पुलिस ने 13 जुलाई को छह लोगों को गिरफ्तार किया था। उनमें से एक सूरज की 19 जुलाई को पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी।

जनता के आक्रोश के बीच हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने मामला सीबीआई को सौंप दिया, जिसने हिरासत में मौत के आरोप में आईजीपी सहित नौ पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार किया। सूरज के साथ गिरफ्तार किए गए पांच लोगों के खिलाफ कार्रवाई सबूतों के अभाव में रद्द कर दी गई।

पुलिस अधिकारियों के खिलाफ हिरासत में मौत के मामले को बाद में चंडीगढ़ स्थानांतरित कर दिया गया, जहां इस पर सुनवाई हुई।



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