बजट जारी न होने से गरीब परिवारों को नहीं मिल रहा नया घर,17466 मामले लटके

Saturday, Feb 10, 2018 - 03:21 PM (IST)

धर्मशाला : जिला के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए जिला कल्याण विभाग की गृह अनुदान योजना केवल लक्ष्य तक ही सीमित हो गई है। वर्तमान में आलम यह है कि हर वर्ष निदेशालय से जिला कल्याण अधिकारियों को गृह अनुदान के लिए पात्र परिवारों को धन आबंटन का लक्ष्य तो मिलता है लेकिन बजट न जारी होने के कारण एस.टी. वर्ग से संबंधित गरीब परिवारों के लिए घर का निर्माण करना केवल सपना बन कर रह जाता है। अगर जिला कांगड़ा की बात करें तो 2017-18 में बजट स्वीकृत न होने से एस.सी., एस.टी. व ओ.बी.सी. वर्ग के लगभग 17,466 मामले गृह अनुदान योजना के लटके हुए हैं। 

885 मामले सिलाई मशीन के वर्तमान में लटक चुके
हालांकि इनमें से सबसे ज्यादा मामले अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं। विभागीय जानकारी के अनुसार अनुसूचित जाति (एस.सी.) व अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) के लिए निदेशालय हर जिला के लिए लक्ष्य के साथ-साथ बजट का आबंटन भी कर रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से केवल एस.टी. वर्ग के लिए बजट आबंटन नहीं हो रहा है। इतना ही नहीं अनुसूचित जाति के लिए कल्याण विभाग द्वारा सिलाई मशीनें भी आबंटित की जाती हैं, लेकिन कल्याण विभाग के पास पात्र परिवारों को धन आबंटन का लक्ष्य तो दिया जाता है, लेकिन पिछले कई सालों से पूरा बजट जारी न होने के कारण गरीब परिवारों को सिलाई मशीनें उपलब्ध करवाने में विभाग नाकाम साबित हो रहा है। कल्याण विभाग के पास बजट न होने के कारण मुख्य कार्यालय में भी लगभग 885 मामले सिलाई मशीन के वर्तमान में लटक चुके हैं। बता दें कि अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए निर्देशालय हर जिला के लिए लक्ष्य के साथ-साथ बजट का आबंटन भी कर रहा है।

2017-18 के लंबित मामले
जिला कल्याण विभाग की मानें तो कार्यालय में एस.सी., एस.टी. व ओ.बी.सी. के लगभग 17,466 मामले गृह अनुदान के वर्तमान में लटके हुए हैं। इन मामलों में से अनुसूचित जाति के 7546 मामले, अनुसूचित जनजाति के 1420 मामले और अन्य पिछड़ा वर्ग के 8500 मामले विभाग के पास बजट के अभाव में स्वीकृत नहीं हो पाए हैं।  हालांकि विभाग के पास 2017-18 में गृह अनुदान योजना के तहत अनुसूचित जाति के लिए 274, अनुसूचित जनजाति के लिए 50 और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 261 परिवारों के लिए आशियाना बनाने का निर्धारित लक्ष्य रखा गया था लेकिन इनमें से 17,466 मामले अभी तक विभाग के पास बजट न होने के चलते स्वीकृत नहीं हो पाए हैं।