देवदार के पेड़ों में वास करती हैं जोगणियां

Monday, Mar 12, 2018 - 11:58 AM (IST)

काईस: देवभूमि कुल्लू के कण-कण में देवी-देवताओं का वास है। देव घाटी में कई जगहों पर पत्थरों को देवताओं के रूप में पूजा जाता है तो कहीं पर देवदार व अन्य पेड़ों को देवी-देवताओं के रूप में पूजते हैं। इस आस्था पर विश्वास रखने वाले लोग सदियों से पत्थरों और पेड़-पौधों को पूजते आए हैं। प्राकृतिक विपदा आने पर देवलू देव स्थलों में जाकर विपदा टालने के लिए देवी-देवताओं का पूजन करते हैं। वह कुल्लू के पहाड़ों में बसने वाली देव कन्याओं को स्थानीय भाषा में जोगणियां कहा जाता है। देवलुओं की मानें तो जोगणियां जहां पहाड़ों में निवास करती हैं वहीं देवदार व अन्य औषधीय प्रजाति के पेड़-पौधों में भी रहती हैं। 


ऊझी घाटी स्थित रायसन से सटे सजूणी के समीप एक ऐसा देव वन है जहां देवलू विपदा आने पर देव कन्याओं का पूजन करते हैं। रीड़ी गीड़ी नामक स्थान पर सदियों पुराना देवदार का ऐसा विशालकाय वृक्ष है, जिसमें अनेक पेड़ उगे हैं। देवभूमि कुल्लू में ऐसे दुर्लभ देवदार के पेड़ कम संख्या में हैं। इस पर विश्वास न करने वाले इस पेड़ को देखकर हैरत में पड़ जाते हैं। मान्यता है कि इस देवदार के पेड़ में 60 देव कन्याओं का वास है। देवलुओं की मानें तो जब भी हारियान इलाकों में ओलावृष्टि पड़ती है तो उसे रोकने के लिए नवरात्रों में पूजन किया जाता है, जिससे क्षेत्र में ओलावृष्टि नहीं होने से फसलों को नुक्सान नहीं पहुंचता है।


देवदार के पेड़ों को काट नहीं सकते वनकाटू 
सजुणी के समीप रीड़ी गीड़ी नामक स्थान पर देव वन को काटना मना है, वहीं देवदार के पेड़ों में वास करने वाली देव कन्याओं वाले पेड़ों को क्षति पहुंचाना तो दूर की बात है। देवलू बताते हैं कि एक बार देव आस्था पर विश्वास न करने वाले लोगों ने पेड़ों को काटने का प्रयास किया था लेकिन काटने में असफल हुए। देव कन्याओं ने क्रोध में आकर भयंकर देवदंड दिया। तब से लेकर आज तक किसी ने भी देव वन काटने का साहस नहीं किया।


देवता के मुख्य कारकूनों के अलावा इस पेड़ को कोई छू भी नहीं सकता
क्षेत्र के देवलू अच्छी फसल के लिए जोगणियों का पूजन करते हैं। देवदार के पेड़ों में वास करते वाली जोगणियों को यहां लोग फुंगणी माता भी कहते हैं। इस देव स्थल में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस देव पेड़ को देवता के मुख्य कारकूनों के अलावा और कोई भी नहीं छू सकता है। देवता के कारकून भी पूजन के दौरान ही स्पर्श कर सकते हैं।