देवता जमलू के मंदिर में लोगों ने जमकर दी अश्लील गालियां, जानिए क्यों

Saturday, Jan 20, 2018 - 10:17 PM (IST)

कुल्लू: हालांकि सभ्य समाज में गालियों का प्रचलन करीब-करीब बंद सा है, साथ में अश्लील गालियों के लिए तो पूरी तरह से प्रतिबंध रहता है लेकिन देव कारज में इन सभी परम्पराओं का निर्वाह किया जाता है। इसमें किसी तरह का कोई भी प्रतिबंध नहीं रहता है। महिलाओं और युवतियों की भी इसमें किसी तरह की कोई मनाही नहीं रहती है। कारण सीधा सा है कि देव समाज की परम्पराओं का निर्वाह और क्षेत्र की समृद्धि व खुशहाली के लिए ये अश्लील जुमले आवश्यक माने जाते हैं।

ढोल-नगाड़ों की थाप पर हुआ परम्परा का निर्वहन
महाराजा कोठी के शिखर पर स्थित आराध्य देवता जमलू के मंदिर व आसपास के क्षेत्र में इस तरह की परंपरा निभाई गई। देवता के कारदार देवी सिंह ने बताया कि पीज सदियाला में देवता जमलू नागाधार व देवता शीला के हारियानों द्वारा भी ढोल-नगाड़ों की थाप पर इस परम्परा का निर्वहन किया गया। उन्होंने बताया कि शुक्रवार देर रात को इस उत्सव में बड़ी संख्या में लोगों ने उपस्थिति होकर देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी लिया। 

गालियों का बुरा मानने पर देवता देते हैं दंड 
रात के समय पीज गांव के साथ लगते अन्य 4 गांवों धारा, वैंग, पीज और रायल गांव के ग्रामीणों ने रात के 12 बजे के बाद आग की मशालें लेकर एक गांव से दूसरे गांव तक गालियां देते हुए पूरे गांव की परिक्रमा की तथा एक-दूसरे को अश्लील गालियां दीं। इस पर्व के दौरान अगर कोई व्यक्ति इन गालियों का बुरा मानता है तो उसे देवता स्वयं दंड देता है।

लोगों व देवता के हारियान ने लगाया पीज गांव का 7वां चक्कर
सदियाला पर्व के दौरान सभी लोगों व देवता के हारियान द्वारा देवता के प्रांगण में 6 चक्कर लगा कर 7वां चक्कर पीज गांव का लगाया गया। इस दौरान जब ग्रामीण रायल गांव पहुंचे तो वहां से गालियां देते हुए देवता जमलू के मन्दिर जाकर जागरे का दहन किया गया। सदियाला के दौरान रात 12 बजे से शुरू होकर दूसरे दिन भी लोग एक-दूसरे को गलियां देते हुए इस परंपरा का निर्वहन करते हैं।

सदियों से चली आ रही परम्परा
पीज पंचायत प्रधान भुवनेश्वर ने बताया कि इस पीज सदयाला को 4 गांवों के लोग मेले के रूप में मनाते हैं और इस दौरान ग्रामीणों के रिश्तेदारों का भी आना-जाना रहता है। देवता के प्रांगण में पीज सदयाला मनाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है और सदियों से चली आ रही इस परम्परा को आज की युवा पीढ़ी भी निभा रही है।