जमीन हमारी, पानी हमारा फिर भी इस्तेमाल को लेनी पड़ती है पाकिस्तान की इजाजत

Sunday, Oct 08, 2017 - 10:48 PM (IST)

केलांग: जमीन हमारी, पानी भी हमारा और फिर भी उस पर हमारा कोई हक नहीं। इस पानी को लेकर यह धारणा बना ली गई है कि इस पानी का हम किसी भी सूरत में इस्तेमाल तक नहीं कर सकते। इस पानी से न तो अपनी जमीन में सिंचाई की जा सकती, न इसे पी सकते हैं और न कोई बांध बनाकर बिजली तैयार की जा सकती। सिंधु जल संधि को आधार बनाकर भारत से यह हक छीन लिया गया है। वास्तव में पानी के इस्तेमाल का हमें पूरा हक है लेकिन इसको लेकर फाइल को आगे सरकाने से सब डर रहे हैं। सच तो यह है कि इस पानी को भारत इस्तेमाल कर सकता है और अपनी जमीन की प्यास बुझाने के साथ-साथ इस नदी पर बांध बनाकर विद्युत उत्पादन की दिशा में भी कदम आगे बढ़ा सकता है। पानी को इस्तेमाल न किए जाने की धारणा और इस पानी को छूने तक से डरने वाले भारत के लोगों व इसमें फंसे पेंच की पड़ताल पर पंजाब केसरी ने कई बिंदुओं पर इसकी तह तक जाने का प्रयास किया। 

पानी के इस्तेमाल पूरी करनी पड़ेंगी औपचारिकताएं
दरअसल हम चिनाव नदी के पानी को इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन इसके लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ेंगी। जानकारों ने इस पर बेबाकी से कहा कि इस पानी को इस्तेमाल किया जा सकता है। जरूरत है तो ऐसे लोगों की जो इस पानी को इस्तेमाल करने के लिए निवेश करने के लिए आगे आएं। यह भी एक सच है कि निवेश करने वाले आए भी लेकिन उन्हें जल संधि के रूप में एक ऐसा खौफ दिखाया गया जिससे वे बिना निवेश किए ही लौट गए। अब नए निवेशक यहां का रुख करें तो ही बात बन सकती है और लोग भी इस पानी को बेझिझक इस्तेमाल कर सकते हैं। 

कहां है चिनाव नदी
लाहौल-स्पीति में तांदी नामक स्थान पर चंद्रा और भागा नदियां मिलती हैं। तांदी में चंद्रा और भागा नदियों का संगम है। तांदी से यह नदी पांगी की ओर बहते हुए जम्मू-कश्मीर होकर पाकिस्तान में पहुंचती है। पांगी पहुंचते-पहुंचते यह नदी चिनाव बन जाती है। लाहौल-स्पीति में चंद्रा और भागा नदी के पानी के इस्तेमाल पर पाबंदियां रहीं। सिंधु जल संधि का हवाला देते हुए इन नदियों के पानी के इस्तेमाल तक की इजाजत लाहौल-स्पीति के लोगों को नहीं दी गई। इन नदियों पर बांध बनाकर विद्युत उत्पादन तो दूर की बात रही, पानी को सिंचाई के लिए भी इस्तेमाल तक करने नहीं दिया गया। 

सिंचाई के लिए भी नहीं दिया पानी
जाहलमा गांव के लोगों ने बताया कि चंद्रा और भागा नदियों के पानी को कई बार हमने सिंचाई के लिए लिफ्ट करना चाहा लेकिन प्रशासन की ओर से इस प्रक्रिया को बंद करवाया गया। सिंधु जल संधि का हवाला देकर इन नदियों के पानी के किसी भी तरह के इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई गई। कई बार कंपनियां भी आईं जो डैम बनाकर विद्युत उत्पादन की दिशा में कदम आगे बढ़ाना चाहती थीं लेकिन उन्हें भी वापस भेजा गया। जल विद्युत परियोजनाओं से लोगों को रोजगार मिल सकता था और बिजली के दम पर आर्थिकी भी सुधर जाती। 

कमीशन की मंजूरी जरूरी
जानकारों की मानें तो चिनाव नदी के पानी को इस्तेमाल किया जा सकता है। चंद्रा और भागा नदी के जल को भी भारत और लाहौल-स्पीति के लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। यदि इन नदियों पर कोई डैम बनता है तो डैम बनने के बाद पानी को आगे फिर से उसी धारा में मिलाना पड़ेगा। कितना बड़ा डैम बनेगा और इसकी क्षमता कितनी होगी इसका डाटा पाक के साथ शेयर करना पड़ेगा। सिंधु जल संधि कमीशन में भारत, पाक और वल्र्ड बैंक के 10-10 सदस्य हैं। कमीशन की मंजूरी इसके लिए जरूरी है। 

वाटर बम का खतरा बरकरार
सतलुज, ब्यास और चिनाव नदियों को लेकर भारत को पाक के साथ डाटा शेयर करना पड़ता है। ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों को लेकर चीन के साथ न कोई संधि है और न किसी तरह की कोई पाबंदी है। चीन के साथ कोई संधि न होने के कारण वाटर बम का खतरा भी बरकरार है। चीन में सतलुज और ब्रह्मपुत्र पर डैम बने हैं लेकिन वे कितने बड़े हैं और उनकी क्षमता क्या है, इसका भारत के साथ कोई डाटा शेयर नहीं होता। 

डाटा शेयरिंग से हाथ पीछे खींच रहा चीन
चिनाव, झेलम, रावी, ब्यास व सतलुज नदियां ऐसी हैं जो आगे चलकर सिंधु नदी में मिलकर पाकिस्तान से होकर अरब सागर में गिरती हैं। इन नदियों के जल के इस्तेमाल से संबंधित डाटा दोनों देश आपस में शेयर करते हैं। ये नदियां हिमाचल से होकर बह रही हैं। सतलुज और ब्रह्मपुत्र ऐसी नदियां हैं जो चीन से निकलती हैं लेकिन चीन ने अपने इलाके में इन नदियों पर बांध भी बनाए हैं और इनके पानी को अन्यत्र भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जानकार बनाते हैं कि चीन और भारत भी डाटा शेयर करने के लिए बाध्य हैं लेकिन चीन डाटा शेयर करने से हाथ पीछे खींचता रहा है। 

सिंचाई व पेयजल योजनाओं के लिए हो सकता पानी इस्तेमाल
लाहौल-स्पीति के डी.सी. देवा सिंह नेगी ने बताया कि चंद्रा-भागा नदियों के पानी को यहां के लोगों द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है। यदि बड़े स्तर पर इस पानी को इस्तेमाल करना है तो इसके लिए कुछ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कुछ औपचारिकताएं हैं, जिन्हें पूरा करना पड़ेगा। यदि छोटे स्तर पर जैसे सिंचाई या पेयजल योजना के लिए पानी चाहिए तो इसका इस्तेमाल हो सकता है। इसके लिए अधिक औपचारिकताओं की भी कोई आवश्यकता नहीं है।