त्वरित टिप्पणी : नाम नहीं सिस्टम बदलें सीएम

Saturday, Oct 20, 2018 - 05:05 PM (IST)

 शिमला (संकुश): इलाहाबाद को प्रयागराज किए जाने से एकबार फिर देश में शहरों के नाम बदलने पर बहस छिड़ गई है। दुर्भाग्य से इस बार यह बहस हिमाचल पहुंच गई है। सरकार के एक बड़े मंत्री ने शिमला को श्यामला किये जाने पर "विचारणीय है" कहकर यह तान पहाड़ में भी छेड़ दी। दो दिन बाद मंत्री जी के सुर में मुख्यमंत्री जी ने सुर मिला दिया। मंत्री महोदय ने जहां विचारणीय शब्द का इस्तेमाल किया था वहीं सीएम साहब ने तो कुछ नाम भी गिनवा दिए जो अंग्रेजों ने रखे हैं। हालांकि जनता से राय लेने के नाम पर उन्होंने भी बचाव की गुंजाईश रख ली,लेकिन तीर तो कमान से छूट चुका था। और अब आलम यह है कि इसपर हिमाचल में सियासत शुरू हो गयी है। नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने कहा है कि  सीएम काम नहीं क्र पा रहे इसलिए ऐसी बातों से ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है, सीएम काम करके दिखाएं नाम बदलने की सियासत न करें। उन्होंने इशारों ही इशारों में यहां तक कह दिया कि जयराम ठाकुर खुद कुछ फैसला करने के बजाए खटटर, योगी आदि की नकल कर रहे हैं।

अब इसपर सीएम के लोग भी पलटवार करेंगे। हमारा मानना है कि  यह सारी कवायद फिजूल है। कोई दो राय नहीं कि हिमाचल के अधिकांश शहर बर्तानवी काल के नाम और इतिहास लिए हुए हैं।  शिमला हो डलहौजी या कोई अन्य शहर  कई जगहों पर उस दौर की छाप  है और उसे ही हम टूरिज्म के तौर पर आगे भी बढ़ा रहे हैं। तो क्या अब टूरिज्म पालिसी जो पहले ही कई साल बाद मुश्किल से बदली है उसे फिर से  बदला जायेगा? क्या शिमला को श्यामला कह देने से दुनिया शिमला को भूल जाएगी ?  इससे पहले भी  बीजेपी और बाद की सरकारों ने ऐसे उद्धम  किये थे। कांग्रेस ने  स्नोडन अस्पताल का नाम इंदिरागांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल यानी आईजीएमसी रख दिया।

 

बीजेपी ने रिपन अस्पताल को दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल बना दिया और इसी तरह लेडी रीडिंग कमला नेहरू अस्पताल हो गया। लेकिन हकीकत यही है कि आईजीएमसी का छोटा नाम तो लोग लेने लगे हैं लेकिन पूरा नाम पूछने पर अभी भी अधिकांश लोग  स्नोडन ही कहते हैं। इसी तरह रिपन  को डीडीयू तो कह देते हैं लेकिन पूरा नाम पूछने पर रिपन  ही कहते हैं। लेडी रीडिंग को भी कमला नेहरू अस्पताल आम आदमी नहीं बोलता, उसे भी केएनएच  ही पुकारा जाता है। IGMC, DDU ,KNH  ये सब अंग्रेजी ही तो है और इनका नाम बदला है व्यवस्था आज भी वही है।  मरीजों का कितना ख्याल यहां रखा जाता है इसकी खबरें अक्सर सामने आती रहती हैं। इसी तरह अटल एम्बुलेंस अब राष्ट्रीय एम्बुलेंस हो गयी है जबकि मूल नाम 108 से ही जानी जाती है और 108 का क्या हाल है यह सर्वविदित है।  मरीजों को अपना तेल डालकर सुविधजा लेनी पड़ती है।

कहने का तात्पर्य यही है कि नाम  बदलने से कुछ नहीं होता जब तक व्यवस्था नहीं बदले। बीजेपी ने राशन व्यवस्था को अटल राशन कहा, तो कांग्रेस ने नाम बदल दिया। लेकिन राशन की समस्या जस की तस है।दशकों से कभी उपभोक्ताओं को एकमुश्त राशन की सभी चीज़ें नहीं मिलीं। कभी दाल नहीं तो कभी चीनी कम। यही हाल अटल वर्दी या राजीव गांधी वर्दी का हुआ। जब कोई फर्क नाम बदलने से पड़ा ही नहीं तो फिर इस कवायद का लाभ क्या हुआ। शांता कुमार ने भी शिमला में मुख्यमंत्री आवास का नाम ओक ओवर से बदलकर शैल कुञ्ज कर दिया था।वो गए तो शैल कुंज फिर से ओक ओवर हो गया, तो क्या जयराम जी अब उसे जय कुटीर या कुछ और नाम देंगे???

वास्तव में ये नाम जनता के जहन में रचे बसे हुए हैं। उन्हें फाइलों में बदलकर कुछ नहीं होने वाला। जनता ने सरकारें बदली हैं हर बार खासकर 1985 के बाद तो कोई सरकार  रिपीट ही नहीं हुई। ऐसा इसलिए नहीं हुआ कि जनता को नाम पसंद नहीं होता सरकार का और वो बदल देती है। सरकारें इसलिए बदली जाती हैं क्योंकि जनता को उनके काम पसंद नहीं आते। यह सरकार बीजेपी की पहली ऐसी सरकार है जो अपने दम पर अकूत बहुमत लेकर आई है। मंडी जैसे बड़े जिला में तो कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला विधानसभा चुनाव में,जबकि वहाँ से तीन-तीन काबीना मंत्री, दो मुख्य संसदीय सचिव सरकार में थे। कांग्रेस के सिर्फ 11 में से सिर्फ तीन मंत्री जीतकर वापस आये। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जनता को सरकार का काम पसंद नहीं आया। बीजेपी ने भी चुनाव से पहले प्रदेश और हर विधानसभा क्षेत्र के लिए विजन डाक्यूमेंट जारी किया था। उसपर कितना काम हुआ यही आगे की राह  तय करेगा। नाम का क्या है। नाम तो गुम जाएगा, काम ही पहचान है,गर कर सको।  
 

kirti