नेहरू ने सिखाई थी राजनीति, ऐसा था वीरभद्र का राजनीतिक सफर

punjabkesari.in Thursday, Jul 08, 2021 - 10:52 AM (IST)

शिमला: हिमाचल प्रदेश के छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह का दुखद निधन हो गया। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से राजनीति सीखने वाले वीरभद्र सिंह प्रदेश में छह बार मुख्यमंत्री बने थे। वीरभद्र सिंह इंदिरा गांधी, मनमोहन सरकार आदि में भी केंद्र में प्रमुख भूमिकाओं में रहे। वीरभद्र सिंह अपने पिता राजा पद्म सिंह के बाद बुशहर रियासत के अगले वारिस थे। इसीलिए उनके समर्थक उन्हें ’राजा साहब’ नाम से संबोधित करते थे। हिमाचल में सबसे अधिक छह बार मुख्यमंत्री बनने का रिकाॅर्ड उन्हीं के नाम दर्ज है। 1983 से 1985 पहली बार, फिर 1985 से 1990 तक दूसरी बार, 1993 से 1998 में तीसरी बार, 1998 में कुछ दिन चैथी बार, फिर 2003 से 2007 पांचवीं बार और 2012 से 2017 छठी बार मुख्यमंत्री बने। 

उन्होंने पहली बार महासू लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था। लोकसभा के लिए वीरभद्र सिंह 1962, 1967, 1971, 1980 और 2009 में चुने गए। वर्तमान में वीरभद्र सिंह अर्की से विधायक थे। इंदिरा गांधी की सरकार में वीरभद्र सिंह दिसंबर 1976 से 1977 तक केंद्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री रहे। दूसरी बार भी वह इंदिरा सरकार में ही वर्ष 1982 से 1983 तक केंद्रीय उद्योग राज्यमंत्री रहे। 
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इसके बाद उन्होंने हिमाचल प्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल की जगह मुख्यमंत्री की कमान संभाली। उसके बाद से राज्य की राजनीति में सक्रिय हुए। फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व की केंद्र की यूपीए सरकार में वीरभद्र सिंह 28 मई 2009 से लेकर 18 जनवरी 2011 तक कैबिनेट मंत्री रहे। उनके पास पहले इस्पात मंत्रालय रहा। उसके बाद उन्हें सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय दिया गया। 

वीरभद्र सिंह परंपरागत सीट रोहड़ू से विधानसभा चुनाव लड़ते थे। अपने घर रामपुर की सीट के अनारक्षित होने के कारण वह कभी भी यहां से चुनाव नहीं लड़ पाए। पुनर्सीमांकन के चलते रोहड़ू सीट भी आरक्षित हुई तो 2012 में उन्होंने शिमला ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ा। 2017 में उन्होंने यह सीट अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह के लिए सीट छोड़ दी और खुद अर्की से चुनाव लड़े। 
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वीरभद्र सिंह अपनी आत्मकथा लिखने की कई बार बात कर चुके थे। उन्होंने पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहते हुए भी कई बार यह कहा था कि वह अपने जीवन पर एक किताब लिखना चाहते हैं। बीच में स्वास्थ्य ठीक नहीं होने और अन्य व्यस्तता के कारण वह इसके लिए वक्त नहीं दे सके। वीरभद्र अपने जीवन को हमेशा खुली किताब बताते थे। 

इंदिरा गांधी के कहने पर वे राजनीति में आए थे। वीरभद्र सिं महज 25 वर्ष उम्र में सांसद बने थे। एक बार 15 मई 2019 को शिमला के संजौली में जनसभा में वीरभद्र सिंह ने कहा था कि उनका सपना था कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) में प्रोफेसर बनें, परंतु राजनीति में आने के कारण उनका यह सपन पूरा नहीं हो सका। 
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वीरभद्र सिंह का जन्म 23 जून 1934 को शिमला जिले के रामपुर के सराहन में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा पदम सिंह था। उनकी शुरुआती पढ़ाई शिमला के बिशप कॉटन स्कूल (बीसीएस) से हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से बीए ऑनर्स की पढ़ाई की। वीरभद्र सिंह अपने राजनीतिक करियर में केवल एक ही बार चुनाव हारे। देश में आपातकाल के बाद 1977 में जब कांग्रेस का देश से सफाया हो गया था,  इसी दौरान वीरभद्र सिंह भी चुनाव हारे थे। वीरभद्र सिंह का संबंध राजघराने से है। वह बुशहर रियासत के राजा रहे। 
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बता दें कि नवंबर 1985 में वीरभद्र सिंह ने प्रतिभा सिंह से दूसरी शादी की। उनका एक बेटा और चार बेटियां हैं। हिमाचल की राजनीति और कांग्रेस को इस राज्य में स्थापित करने में सीएम वीरभद्र सिंह का अहम योगदान रहा। साल 2015 में उन पर आय से अधिक संपत्ति बनाने के आरोप लगे और सीबीआई ने उन पर केस दर्ज किया। इस मामले में उनकी पत्नी, बेटे और बेटी को भी आरोपी बनाया गया है। फिलहाल मामला कोर्ट में विचाराधीन है। वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह शिमला ग्रामीण से कांग्रेस विधायक हैं।
 


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Content Writer

prashant sharma

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