नड्डा इस वजह से नहीं बन पाए सरताज

Sunday, Dec 24, 2017 - 11:22 PM (IST)

शिमला: प्रदेश में बीजेपी को बहुमत मिलने के बाद सीएम पद के लिए दिल्ली से शिमला तक कसरत करनी पड़ी। आखिरकार रविवार दोपहर बाद सीएम कौन होगा इसका ऐलान कर दिया गया। इसके बाद मंडी जिला से विधायक जय राम ठाकुर के नाम पर सहमति बन गई। सीएम के पद के लिए इस बीच कई नामों को लेकर चर्चाएं हुई वहीं कार्यकर्ताओं की राय पर भ्भी विचार किया गया। इस रेस में केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा का दावा ज्यादा मजबूत नजर नहीं आया। धूमल ने भ्भ्भी जयराम ठाकुर को सीएम बनाने पर सहमति जताई। लेकिन इस बीच नड्डा का पलड़ा कमजोर नजर आया इसकी यह वजहें रहीं। 

सीएम तय करने में धूमल खेमे का अहम रोल 
धूमल गुट ने जेपी नड्डा को सीएम बनाने का लगातार विरोध किया। हालांकि धूमल सुजानपुर सीट से चुनाव हार गए हैं। इसका एक कारण 44 विधायकों में आधे से ज्यादा धूमल खेमे से होना वजह रही। जैसे ही जयराम का नाम बतौर सीएम घोषित हुआ जय राम ने धूमल से आशीर्वाद लिया। 

हिमाचल में कम सक्रियता
नड्डा पिछले पांच सालों से हिमाचल की राजनीति में कम सक्रिय रहे।  वर्ष 2012 के बाद उनकी सक्रियता प्रदेश की बजाय केंद्रीय सरकार में ज्यादा हो गई थी। चुनाव से कुछ समय पहले ही वे प्रदेश की राजनीति में सक्रिय हुए थे।

जातिगत समीकरण
हिमाचल में ब्राह्मण वोट बैंक 18 फीसदी है जबकि राजपूत वोट बैंक प्रदेश में 37 फीसदी हैं। इसके चलते जयराम ठाकुर और धूमल के समर्थकों की तादाद प्रदेश में बहुत ज्यादा रही। नड्डा के सीएम न बन पाने के पीछे यह भ्भी एक बड़ी वजह मानी जा रही है।

केंद्र को नड्डा की जरूरत
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव को दो साल का समय ही बाकी रह गया है। भाजपा हाईकमान ने जेपी नड्डा को केंद्र में बनाए रखना ही सही समझा। इसके पीछे मोदी को केंद्र में नड्डा की ज्यादा जरूरत होना भ्भी वजह है। भाजपा के प्रमुख रणनीतिकारों में नड्डा अहम हैं। हालांकि प्रदेश में लोकसभा की चार ही सीटें हैं लेकिन उनकी रणनीति जीत दिलाने में केंद्र को अहम महसूस हो रही है।

मंडी का सौ फीसदी देना
हिमाचल प्रदेश में मंडी जिला ने दस में से नौ सीटें बीजेपी की झोली में डाली हैं जो एक आजाद प्रत्याशी जोगिंद्रनगर से जीता है वह भ्भी भ्भाजपा समर्थित है। मंडी से नड्डा के खिलाफ विरोधी स्वर गूंजते रहे। इस विरोध में कांगड़ा जिला का भी बड़ा रोल रहा। 

समर्थन में कम विधायक
चुनाव में जितने विधायक जीते हैं उनमें नड्डा खेमा कमजोर नजर आया।  उनके पक्ष में बहुत कम विधायक हैं। बिलासपुर को छोड़कर कुछ ही विधायक नजर आए। हालांकि बिलासपुर से सुभाष ठाकुर ने उनके लिए सीट छोड़ देने की घोषणा कर रखी थी। 

नड्डा के नाम पर एकमत नहीं थे लोग
मंडी और कई जिलों में लोग जेपी नड्डा के नाम को लेकर सहमत नजर नहीं आई। सोशल मीडिया पर उनके नाम का लगातार विरोध हो रहा था। नड्डा को पैराशूट प्रत्याशी माना जा रहा था। उनके नाम पर प्रदेश में चुनाव नहीं लड़ा गया।