हिमाचल में मांसाहारी व्यंजन का शानदार विकल्प है ‘नाल बड़ी’

Sunday, Dec 19, 2021 - 10:07 PM (IST)

राजगढ़ (गोपाल): पारंपरिक खानपान गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से बेहद लाभकारी माना गया है। बात की जाए पहाड़ी व्यंजनों की तो देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी इनकी खासी डिमांड है। पहाड़ी अनाज सेहत के लिए बेहद फायदेमंद है। पहाड़ों में व्यंजन सेहतमंद होने के साथ लोक परम्पराओं को भी सहेजे हुए हैं। आम तौर पर हर क्षेत्र में खानपान व रहन-सहन की विविधता देखने को मिल जाती है। परिस्थिति व जलवायु के अनुकूल खान-पान बदल जाता है। क्षेत्र के पहाड़ी क्षेत्रों के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोगों ने पारंपरिक रीति-रिवाज और प्रथाओं को संजोए रखा है। इनमें से एक है ‘नाल बड़ी’ लगाने की प्रथा। संयुक्त रूप से बनाए जाने वाला व्यंजन खाने में तो स्वादिष्ट होता ही है, साथ ही गुणकारी भी है।

रियासत काल से होता आ रहा प्रचलन

नाल बड़ी लगाने का प्रचलन रियासत काल से होता आ रहा है। अरबी के डंडी, जिसे नाल भी कहा जाता है, को उड़द की दाल से बनाया जाता है। पुराने समय में जब मनोरंजन के साधन न के बराबर थे, उस समय लोग नाल बड़ी को संयुक्त तौर पर लगाते थे और कार्यक्रम का आयोजन होता था। खासतौर पर मेहमान नवाजी के लिए इस व्यंजन को परोसा जाता है। बुजुर्गों के अनुसार यह एक स्वादिष्ट और गुणकारी खाद्य सामग्री है, जिसे कई महीनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। गिरिपार क्षेत्र में माघी पर्व के दौरान भी इसे खूब इस्तेमाल किया जाता है। इस माह गांव में मीट की दावत आम होती है। ऐसे में शाकाहारी मेहमानों को नाल बड़ी व्यंजन के तौर पर परोसी जाती है।

आधुनिकता की दौड़ में प्रचलन हुआ कम

आधुनिकता की दौड़ में वर्तमान में नाल बड़ी का प्रचलन कम हुआ है। जिले में कुछ क्षेत्र ही ऐसे बचे हैं, जहां इसे मनाने और लगाने का क्रम आज भी जारी है। क्षेत्र में आज भी नाल बडिय़ां लगाई जाती हैं। बुजुर्गों के अनुसार पुराने समय में यह कार्यक्रम बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। आज इसकी जगह मोबाइल, टीवी और अन्य मनोरंजन के साधनों ने ले ली है। जानकारों का मानना है सर्दियों के मौसम में पूरे गांव में हर घर में बारी-बारी से इसका आयोजन किया जाता था। शाम के समय गांव की सारी महिलाएं एकत्रित होकर इन्हें लगाती थीं। इस दौरान पौराणिक पारंपरिक गीत व स्वांग किए जाते थे। दावत के अनुसार लोगों को उबली हुई मक्की व शक्कर के साथ कोलथी व गेहूं का मूड़ा खाने को दिया जाता था। वर्तमान में मक्की, गेहूं व कोलथी का मूड़ा नहीं बनाया जाता है। अब इसके स्थान पर काले चने व अन्य सामग्री लोगों में बांटी जाती है। इसके अलावा चाय-पान की व्यवस्था की जाती है। 

ऐसे बनाई जाती है नाल बड़ी 

गांव में अरबी को बड़े शौक से खाया जाता है। इसे अन्य व्यंजन बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। इनमें से एक है नाल बड़ी। इसमें अरबी की डंडी का इस्तेमाल किया जाता है। उड़द, चना सहित अन्य दालों को पीसा जाता है। फिर इसे आटे की तरह गूंथा जाता है। इसके बाद अरबी की डंडियों में इस गूंथे हुए मिक्सचर की बारीक परत लगाई जाती है। फिर 2 डंडियों को बांधकर रस्सी पर सूखने के लिए टांग दिया जाता है। दूसरे दिन सूखने के बाद इन्हें छोटे-छोटे गोल टुकड़ों में काटकर सुखाया जाता है। करीब एक सप्ताह तक अच्छी तरह सुखाने के बाद इन्हें सुरक्षित रख दिया जाता है।

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Content Writer

Vijay