पूर्व सैन्य अधिकारी ने समझा सैनिकों का दर्द, कब जागेगी केंद्र सरकार : राजेंद्र राणा

Wednesday, Nov 11, 2020 - 03:52 PM (IST)

हमीरपुर (ब्यूरो): सैनिकों के पैंशन बिल पर केंद्र सरकार द्वारा लिए गए फैसले पर पूर्व सैन्य अधिकारियों द्वारा गहरी चिंता व्यक्त की जा रही है। यह बात प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा ने एक सेवानिवृत्त कर्नल द्वारा भारतीय सेना प्रमुख को लिखे पत्र का हवाला देते हुए कही है। उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में लद्दाख व चीन के साथ सटे इलाकों में सेवाएं दे रहे सैनिकों व उनके परिजनों के बारे में केंद्र सरकार को विचार करना चाहिए। जारी प्रेस विज्ञप्ति में उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त कर्नल ने भी सैनिकों की पैंशन घटाने के फैसले पर चिंता व्यक्त की है, जिससे साफ है कि सरकार का निर्णय कितना गलत है।

उन्होंने कहा कि विषय परिस्थितियों में देश की जनता की सुरक्षा के खातिर बार्डर पर दिन-रात सेवाएं दे रहे जवानों की ऐसी अनदेखी हरगिज बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी द्वारा पत्र में सैनिकों की व्यथा व्यक्त करना अपने आप में ही बहुत बड़ी बात है क्योंकि एक सैन्य अधिकारी ही सीमा पर हमारे लिए विषय परिस्थितियों में प्रहरी के रूप में सेवाएं दे रहे जवानों व उनके परिजनों की स्थिति को सही मायने में समझ सकता है।

उन्होंने कहा कि पूर्व सैन्य अधिकारी के मुताबिक वर्ष 1962 में चाइना के साथ युद्ध के बाद इस सरकार में पहली बार ऐसा हुआ है कि सेना के बजट में कटौती की गई हो। लद्दाख में चाइना के साथ चल रहे मनमुटाव के चलते इस तरह की कटौती सेना का मनोबल तोडऩे जैसा है जबकि सेना के साथ खड़े होकर उनका मनोबल बढ़ाने के बारे में कार्य करना चाहिए था लेकिन इसके विपरीत सीएसडी कैंटीन में कटौती करने व सेना के अफसरों व जवानों की अन्य सुविधाओं पर पाबंदी लगाने जैसे निर्णय लिए जा रहे हैं, जिससे देश की सेवा में तत्पर जवानों को हताश होना पड़ रहा है। सरकार अगर सेना के खर्चों तक का वहन नहीं कर सकती तो सीधा-सीधा जवानों से कह दे। जवान सीमा पर देश की आन तिरंगे झंडे को ऊंचा रखने के लिए जान की बाजी लगाते हैं लेकिन उन्हीं जवानों पर मुकद्दमा चलाना देश के लिए शर्मनाक है। इस तरह के निर्णयों से सेना का कोई भी जवान खुश नहीं है।

उन्होंने कहा कि पूर्व सैन्य अधिकारी का पत्र के अंत में यह लिखना कि सेना का हरेक जवान उनकी तरह बनने के सपने देखता है लेकिन उसी सेना का भरोसा खोकर तरक्की करना एक पैसे की भी तरक्की नहीं है। इससे स्पष्ट है कि पूर्व सैन्य अधिकारी भी सरकार के निर्णयों से विचलित हैं तथा सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं। ऐसी परिस्थिति में केंद्र सरकार को भी चाहिए कि दूरदर्शी सोच का परिचय देते हुए जवानों व उनके परिजनों की समस्याओं को समझे तथा ऐसे निर्णय न लिए जाएं जिससे कि सैनिकों का मनोबल गिरे। अगर ऐसे ही निर्णय लिए जाते रहे तो देश का युवा वर्ग भी सेना में भर्ती होने के सपने नहीं देखेगा।

Vijay