लाहौल-स्पीति से लेकर कुल्लू तक खनन बना नासूर

Saturday, Jul 21, 2018 - 02:18 PM (IST)

उदयपुर : विकास की अंधी दौड़ में विनाश की नई इबारतें लिखी जा रही हैं। लाहौल-स्पीति से लेकर कुल्लू-मनाली तक सड़क मार्गों की उथल-पुथल में बदहवास मानवीय हसरतें डर रही हैं कि सदियों से जड़वत पहाड़ आखिर क्यों ढहने लगे हैं। सुविधाओं के नए सृजन में गलतियों का हिसाब प्रकृति कदम-कदम पर मांगने लगी है। कम बरसात में ही पहाड़ रौद्र हुए हैं। पर्यावरण के विनाश से सहमे लोगों का मत है कि समय रहते पूरी सजगता से विकास की आंधी का मूल्यांकन कर लेना चाहिए।

पूर्व की प्राकृतिक आपदाएं साक्षी हैं कि जब-जब भी प्रकृति का नाश हुआ है, मानवता को उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। जानकार बताते हैं कि पर्यावरण से जब-जब भी खिलवाड़ हुआ है, कुदरत ने उसका हिसाब लिया है। निर्जीव सी बैठी धरती में अगर प्राण न होते तो क्या नन्हे बीज कभी विशाल पेड़ बन सकते थे। समस्त जीवों का पोषण करने वाली धरती की कोख फाड़ने का अंतहीन सिलसिला जो विकास ने तबाही के मुहाने पर ला खड़ा किया है, प्रकृति कब तक बर्दाश्त करती रहेगी। प्रकृति करवट बदलने लगी है और नतीजे भी सामने हैं।

महत्वाकांक्षी प्रोजैक्ट कीरतपुर-मनाली फोरलेन की जद्द में किया धरा सब मटियामेट हो रहा है। बाढ़ व भू-स्खलन के तांडव कई स्थानों पर तबाही मचाने लगे हैं। भू-स्खलन रोकने की एवज में सुरक्षा दीवारें बरसात के पहले ही झटके में ढह गई हैं। तबाही के नए मंजर में लोग अप्रत्याशित खौफ  के साए में और गाड़ियों की भागमभाग शिथिल हो रही है। इधर, विकास ने ऊंची उड़ान भरी और कुल्लू-मनाली से लाहौल-स्पीति तक स्थिर पहाड़ दरक पड़े हैं। 
 

kirti