पत्तल में खाना खाने से कटती हैं कई बीमारियां

Saturday, Jul 07, 2018 - 02:38 PM (IST)

सुंदरनगर : सरकार द्वारा प्लास्टिक व पॉलीथीन के प्लेट इत्यादि के प्रयोग व बिक्री पर प्रतिबंध लगा देने से प्रदेश में पत्तल व डूना बनाने के काम को बहुत प्रोत्साहन मिला है जिससे पत्तल व डूना निर्माण में लगे लोगों की आर्थिकी भी सुदृढ़ हो रही है। मंडी जिला के बग्गी क्षेत्र के सुरेंद्र मोहन गुप्ता ने घरवासड़ा गांव में पत्तल निर्माण के कारोबार में पारंपरिकता व आधुनिकता का मिश्रण कर इसे सस्ता सुंदर व टिकाऊ बना दिया है। उन्होंने कहा कि प्रदेश की विवाह-शादियों व अन्य उत्सवों में धाम को परोसने के लिए पत्तल बनाने के लिए टोर पत्ता को पुराने समय से उपयोग में लाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पत्तलों को बनाने का कार्य पिछले कई दशकों से होता रहा है।

उन्होंने कहा कि पत्तल बनाने के लिए उन्होंने पत्तल बनाने की आधुनिक तकनीक से पत्तल को इतना मजबूत बना दिया है कि अब उसमें खड़े होकर भी खाना खाया जा सकता है, आधुनिक तकनीक से लीफ प्लांट में मशीन में बनी यह पत्तल 3 से 5 रुपए में उपलब्ध हो जाती है। गुप्ता ने कहा कि राजस्थान की वनस्थली यूनिवॢसटी के शोध में पता चला है कि टोर के पत्ते से बनी पत्तल व डूने पर परोसा खाना खाने से कई बीमारियां नहीं होती। उन्होंने कहा कि एंटी कैंसर, एंटी डायबटिक व एंटी माईक्रोबियल होने की वजह से यह पत्तल शरीर को कई रोगों से राहत दिलाती है तथा यह एंटी ऑक्सीडैंट का भी काम करती है। उन्होंने कहा कि इन गुणों के कारण टोर पत्ते की पत्तल किसी दवा से कम नहीं है।

एंटी फंगस है पत्तल
उन्होंने कहा कि इस पत्तल का एक फायदा यह भी है कि यह एंटी फंगस है तथा इसे काफी समय तक रखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि एक बार वह किसी काम से हैदराबाद गए हुए थे तो वहां उनको पर इस लीफ प्लांट बारे में जानकारी मिली, तब उनके दिमाग में विचार आया कि क्यों न वह भी अपने गांव में इस मशीन को लगाएं, तो इसी विचार को साकार रूप देते हुए उन्होंने पत्तल बनाने की यह लीफ प्लांट मशीन लगाई।

अब पत्तलों को आराम से खा लेते हैं पशु
मोहन गुप्ता ने कहा कि पुराने समय से पत्तों को जोड़कर पत्तल बनाने में बांस की छोटी-छोटी तीलियां लगाई जाती रही हैं, लेकिन लीफ प्लांट मशीन से बनाई आधुनिक पत्तल में बांस की छोटी-छोटी तीलियों की बजाय पत्तों को सिलाई मशीन से सिला जाता है। उन्होंने कहा कि बांस की तीलियां लगी होने से पहले पत्तलों को पशु नहीं खा पाते थे लेकिन अब खाना खाने के बाद प्रयोग हुए इन पत्तलों को पशु आराम से खा लेते हैं।

kirti