भाजपा-कांग्रेस के कई नेता कर चुके हैं घर वापसी, दूसरे दल में सफल नहीं रही हरेक की एंट्री

Wednesday, Apr 24, 2019 - 09:43 AM (IST)

धर्मशाला (सौरभ सूद): न खुदा मिला न विसाले सनम...। यह कहावत उन नेताओं पर सटीक बैठती है जो अपने सियासी फायदे के लिए एक दल से दूसरे दल में पलटी मारते रहे हैं लेकिन इस दांव ने उनके सियासी भविष्य पर ही ग्रहण लगा दिया। पहले पहल पंडित सुखराम व उनके परिवार ने दल-बदल के खेल को अपने तरीके से खेलकर विरोधियों को चित्त किया था। 1998 में हिमाचल विकास कांग्रेस बनाने के बाद 5 विधायकों के दम पर सुखराम ने भाजपा के साथ 5 साल तक सत्ता में भागीदारी का आनंद लिया लेकिन बाद में बढ़ती सियासी महत्वाकांक्षाओं के चलते पार्टी में दरार पड़ गई। 

2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान सुखराम ने वीरभद्र से मतभेद दूर कर हिविकां का विलय कांग्रेस में कर दिया। उनके पुत्र अनिल शर्मा ने 2007 व 2012 के चुनाव में मंडी सदर से लगातार जीत दर्ज की और मंत्री भी बने। 2017 में विस चुनाव से पहले सुखराम ने फिर सियासी ट्विस्ट लिया व पोते और बेटे संग भाजपा में शामिल हो गए। कभी सुखराम के सियासी शिष्य रहे महेंद्र सिंह ठाकुर भी इससे अलहदा नहीं हैं और दल बदलने के बाद भी धर्मपुर से लगातार जीतते आ रहे हैं। राजेंद्र राणा व पवन काजल भाजपा से कांग्रेस में जाकर अपने सियासी सफर को गति दे चुके हैं। इसके विपरीत भाजपा छोड़ अपनी पार्टी बनाने वाले महेश्वर सिंह को कामयाबी नहीं मिली तो 2017 में उन्होंने घर वापसी कर ली। उनके साथ गए खुशी राम बालनाटाह भी भाजपा में लौट आए। दल बदल की फेहरिस्त में पूर्व मंत्री गुलाब सिंह, मनसा राम, प्रकाश चौधरी, रामलाल मारकंडा व नरेंद्र ठाकुर का नाम भी शुमार है।

कांगड़ा से बसपा विधायक रहे संजय चौधरी ने भाजपा का दामन थामा लेकिन लगातार 2 चुनाव में जीत से वंचित रहे हैं। मेजर विजय मनकोटिया का सियासी भविष्य भी दल बदल की राजनीति में धूमिल हो गया। अब 2019 में पूर्व सांसद सुरेश चंदेल भी इस लिस्ट में शामिल हो गए हैं। उधर, पूर्व सांसद सुरेश चंदेल के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में पूर्व कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि हाईकमान जो निर्णय लेता है, वह सोच समझ कर ही लिया जाता है। उन्होंने कहा कि पूर्व सांसद चंदेल ने कांग्रेस का दामन थामा है और पार्टी में उनका स्वागत है।

कांग्रेस में आसान नहीं चंदेल की राह

पूर्व सांसद सुरेश चंदेल ने बेशक कांग्रेस में बिना शर्त एंट्री कर ली हो लेकिन यहां भी उनकी राह आसान नहीं लगती है। चंदेल के सामने सबसे बड़ी चुनौती लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी को जीत दिलाने की होगी। कांग्रेस में चंदेल को शामिल करने का शुरू से विरोध करते रहे बिलासपुर के पूर्व विधायक बंबर ठाकुर ने भी अब कह दिया है कि चंदेल को कांग्रेस में अपनी भूमिका साबित करनी होगी। वहीं, जिस विचारधारा के खिलाफ चंदेल बीते 3 दशक से मुखर रहे हैं, अब उसी विचारधारा को आत्मसात करना उनके लिए आसान नहीं होगा।

वरिष्ठ नेता आहत, नया नेतृत्व बेफिक्र

भाजपा के प्रदेश में पहले संगठन मंत्री रहे सुरेश चंदेल के कांग्रेस में शामिल होने पर भाजपा में ही अलग-अलग राय है। वरिष्ठ नेता इसे दुखद बता रहे हैं तो वर्तमान नेतृत्व पूरी तरह बेफिक्र है। चर्चा यह भी है कि वरिष्ठ नेताओं ने चंदेल को मनाने के लिए अंतिम समय तक प्रयास भी किए थे। पूर्व मुख्यमंत्री धूमल व शांता कुमार, महेंद्र सोफत तथा गणेश दत्त आदि वरिष्ठ नेता चंदेल के पार्टी छोड़ने से आहत हैं तो वहीं खुद सी.एम. जयराम व चुनाव प्रभारी तीर्थ रावत सहित नई पीढ़ी के कई नेताओं की नजर में चंदेल के जाने से पार्टी को कोई नुक्सान नहीं है।

जब जरूरत थी तो छोड़ा चंदेल ने साथ: भाजपा

भाजपा प्रदेश प्रवक्ता गणेश दत्त ने कहा कि पुराने साथी चंदेल के पार्टी छोड़ जाने का दुख तो है लेकिन चंदेल का उपेक्षा का आरोप गलत है। जब चंदेल ऑप्रेशन दुर्योधन में फंसे थे तो पार्टी ने उनका पूरा साथ दिया था लेकिन अब जब लोकसभा चुनाव में पार्टी को उनकी जरूरत थी तो वह अपने स्वार्थ के लिए पार्टी को ही छोड़ गए। दत्त ने कहा कि दल-बदल का यह खेल अब रुकना ही चाहिए।

चंदेल मजबूत नेता, साजिश में फंसे थे: कांग्रेस

बीते विस चुनाव में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सुरेश चंदेल को घेरने वाली कांग्रेस की राय अब सियासी लाभ के चक्कर में बदल गई लगती है। प्रदेशाध्यक्ष कुलदीप राठौर कहते हैं कि चंदेल के आने से पार्टी मजबूत होगी, वहीं राष्ट्रीय सचिव सुधीर शर्मा ने कहा कि चंदेल पर साजिश के तहत आरोप लगे थे।

Ekta