बिलासपुर का यह शख्स बेसहारा गौवंश के लिए बना मसीहा, छोड़ दी सरकारी नौकरी

Wednesday, Feb 07, 2018 - 02:47 PM (IST)

बिलासपुर: वैसे तो हिंदू धर्म के अनुसार गाय को माता का दर्जा देकर उसकी पूजा की जाती है, लेकिन फिर भी इन पर अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। कहीं तो इन्हें बेसहारा छोड़ दिया जा रहा है। परंतु बिलासपुर के निवासी सुनील शर्मा एक ऐसे शख्स हैं जो आज भी इनकी सेवा नि:स्वार्थ कर रहे हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी का भी त्याग कर दिया है जोकि गौवंश पर अत्याचारियों के लिए एक मिसाल बन गए हैं। बता दें कि गौवंश की सेवा के लिए सुनील शर्मा ने वर्ष, 2009 को प्रगति समाज सेवा समिति गठित कर सड़क हादसों में घायल होने वाले बेसहारा पशुओं का इलाज करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने वर्ष, 2010 में शिमला-हमीरपुर राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर भगेड़ में करीब पौने 2 बीघा जमीन पर अपाहिज गौवंश के उपचार सेवार्थ केंद्र शुरू किया। 


इस बारे में बात करने पर शर्मा ने बताया कि शुरू-शुरू में बहुत समस्याएं आईं लेकिन बाद में लोग भी गौवंश की सहायता के लिए आगे आने लगे हैं और लोगों को गौवंश की सहायता के लिए जोड़ने के लिए इसे आस्था से जोड़ दिया है। प्रदेश व जिला की सड़कों पर घूम रहे इस बेसहारा गौवंश को सुनील लोगों द्वारा खड़ी की गई समस्या मानते हैं। उन्होंने बताया कि जब गाय दूध देना बंद कर देती है या गाय को बछड़ा पैदा हो तो उसे छोड़ दिया जाता है। प्रतिदिन सड़कों पर बढ़ रही गौवंश की तादाद के कारण न केवल किसानों की फसलें तबाह हो रही हैं बल्कि सड़क दुर्घटनाएं भी हो रही हैं। वहीं, लोगों को जागरूक करने के लिए अभी तक 42 गौ कथाओं का आयोजन करवा चुके हैं। धार्मिक दृष्टि से भी गौवंश पूजनीय माना जाता है। 

यहां चढ़ाता है एक पुल्ला घास का
भगेड़ में स्थापित अपाहिज गौवंश उपचार सेवार्थ केंद्र में अब भगवान शिव का मंदिर बनाया गया है तथा यहां पर राधा-कृष्ण, हनुमान और शनिदेव की मूॢतयां भी स्थापित की गई हैं। सुनील ने बताया कि इस मंदिर में कोई चढ़ावा नहीं चढ़ाता बल्कि एक पूला घास का चढ़ाया जाता है। उन्होंने बताया कि इस एक पूला घास की वजह से सेवार्थ केंद्र में लोग दिल खोलकर घास लाने लगे हैं, जिस कारण इस केंद्र में उपचाराधीन गौवंश की चारे की समस्या समाप्त हो गई है। इस केंद्र में मौजूदा समय 6 बैल उपचाराधीन हैं जबकि 8 बैल जिला के विभिन्न स्थानों सुंगल, घुमारवीं, पनोह व कुलारू में रखे गए हैं, जिनका इलाज किया जा रहा है। सुनील के अनुसार अभी तक वह 500 के करीब घायल बैलों व गायों का उपचार कर चुके हैं तथा 200 बेसहारा पशुओं को गौशाला में पहुंचा चुके हैं, वहीं पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए इसके इर्द-गिर्द विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधे लगाए गए हैं।


सुनील की नजर में यह है बेसहारा पशुओं से मुक्ति का समाधान
बेसहार पशुओं की सेवा में जुटे सुनील ने प्रदेश सरकार को इससे निजात पाने के लिए मंत्र देते हुए गौसदन की जगह मुक्त गौ वन बनाने को प्रेरित किया है यही एक मात्र ऐसा साधन है जिसमें सरकार को करोड़ों रुपए की भी बजत होगी वहीं बेसहारा पशुओं से भी निजात मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार आम जन को इन पशुओं से राहत दिलाने के लिए करोड़ों खर्च कर गौसदन तो बनवा रही है पर वे नाकाम साबित हो रहे हैं। क्योंकि इन गौसदनों में सीमित जगह होती है और यहां पर गौ वंश की संख्या बढ़ जाए तो यह लोग यहां पर मौजूद बैलों को सड़कों पर छोड़ देते हैं। सुनील के मुताबिक जिला में करीब 2244 गौ वंश सड़कों पर घूम रहे हैं जबकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में बेसहारा पशुओं की तादाद 32,160 है।  


सुनील ने बताया कि गौ सदन बनाने से बेसहारा पशुओं की तादाद में कमी नहीं आएगी क्योंकि गौ सदन में क्षमता से अधिक गौ वंश हो जाने के बाद संबंधित गौ सदन संचालक बैलों को खुले में छोड़ देते हैं। इसके लिए मुक्त गौ वन बनाए जाने चाहिए जिससे प्रदेश के किसी कोने में भी कोई बेसहारा पशु नहीं दिखेगा। उन्होंने बताया कि मुक्त गौ वन बनाने संबंधी एक ज्ञापन पिछले दिनों बिलासपुर आए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा व मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर को दिया है। सुनील के मुताबिक गौ वन में प्रदेश सरकार को केवल बाड़बंदी पर ही पैसा खर्च करना पड़ेगा तथा जहां पर पानी की स्त्रोत नहीं होगा वहां पर तालाब बनाने होंगे।


शहर में चलाई एक मुट्ठी आटे की योजना
सुनील ने बताया कि उन्होंने शहर के बेसहारा गौवंश के लिए एक मुट्ठी आटा योजना भी चलाई है, जिसके लिए प्रत्येक वार्ड में कन्टेनर दिए गए हैं, जिनमें लोग आटे से निकलने वाली चोकर को डाल देते हैं और फिर हर 15 दिन के बाद इसके पेड़े बनाकर शहर के बेसहारा पशुओं को खिलाए जाते हैं। इसी प्रकार शहर में कुछ जगह खुॢलयों का निर्माण भी किया गया है, जिनमें हरी सब्जियों से निकलने वाली व्यर्थ सब्जी को लोग डाल सकें और बेसहारा पशु इसे खा सकें।