NGT की सख्ती के चलते कई स्टोन क्रेशरों पर लटक जाएंगे ताले, हड़कंप

Tuesday, Dec 18, 2018 - 02:01 PM (IST)

कुल्लू (ब्यूरो): नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सख्ती के चलते कई स्टोन क्रेशरों पर ताले लटक जाएंगे। कुल्लू सहित हिमाचल प्रदेश के तमाम इलाकों में इनपर डंडा चलेगा। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने अक्तूबर में दो टूक कहा है कि नदी-नालों से 100 मीटर के दायरे में कोई भी स्टोन क्रशर नहीं चलेगा। यदि वर्षों से बंद पड़े किसी पुराने नाले के आसपास भी स्टोन क्रशर है तो उसे भी बंद किया जाए। इसके पीछे तर्क दिया है कि यदि कभी पुराने सूखे नाले में बाढ़ आई तो सारा मलबा आदि किसी नदी या नाले में चला जाएगा। इससे नदी-नालों के प्रदूषित होने का खतरा है। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 29 दिसम्बर तक इस संदर्भ में पूरी रिपोर्ट मांगी है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला खनन विभाग ने इनके निरीक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। अभी तक जिला के 70 फीसदी से अधिक स्टोन क्रेशरों का निरीक्षण किया गया है। जिला में चल रहे 13 स्टोन क्रेशरों में से इक्का-दुक्का ही बच पाएंगे जबकि अन्य पर ताले लटक जाएंगे। ऐसे में स्टोन क्रेशर संचालकों में हड़कंप मच गया है। कई नदी-नालों के बिल्कुल करीब हैं। कई ऐसे हैं जो नदी-नालों से ही पत्थर आदि उठाकर उन्हें ही बेच रहे हैं। पूरे प्रकरण में बड़े पैमाने पर मिलीभगत से काम चल रहा है। इसके अलावा नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने और भी कई नियमों से संबंधित नियमावली जारी करते हुए खनन माफिया के होश उड़ा दिए हैं।

कई स्टोन क्रेशरों ने 10 या 15 साल पहले जमीन व पहाड़ लीज पर लिए और अभी तक उन जगहों पर खनन हो रहा है। इसके पीछे बड़ा खेल है। 15 वर्ष पहले लीज पर लिए गए पहाड़ को नापा गया और उससे क्रशर के लिए रॉ मैटीरियल निकालने की इजाजत मिली तो काम शुरू हुआ। निर्धारित दूरी तक नापा गया वह पहाड़ आज तक खत्म ही नहीं हुआ। इसके पीछे जानकार तर्क दे रहे हैं कि जितना पहाड़ खनन के लिए लिया था वह पहाड़ तो काफी समय पहले खत्म हो गया लेकिन आपसी मिलीभगत से उस पहाड़ को ऐसा दर्शाया गया कि अभी तक आधे हिस्से में ही खनन हुआ है।

Ekta