चुनावों में दिग्गज नेताओं को भी करना पड़ा है हार का सामना

Thursday, Dec 14, 2017 - 12:42 AM (IST)

शिमला: हिमाचल प्रदेश की सियासत में दिग्गज नेताओं को भी हार का सामना करना पड़ा है। इसमें राज्य के 6 बार मुख्यमंत्री रह चुके वीरभद्र सिंह भी शामिल हैं। इसके अलावा पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार व प्रेम कुमार धूमल को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जगत प्रकाश नड्डा, पूर्व केंद्रीय मंत्री पंडित सुखराम व चंद्रेश कुमारी के अलावा सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री विद्या स्टोक्स और कौल सिंह ठाकुर जैसे नेता भी चुनाव हारे हैं। यानि सियासी रण में जनता ने बड़े-बड़े नेताओं को यदि पलकों पर बिठाया है तो उनसे नाराज होकर उनके खिलाफ भी मतदान किया है। 

कई नेता फिर से चुनाव जीतने में रहे सफल 
हालांकि बाद में कई नेता फिर से चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल, स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर और पूर्व मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर जैसे बड़े नेता फिर से चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें से कुछ नेताओं का यह अंतिम चुनाव हो सकता है। मंडी संसदीय सीट से कांग्रेस के कई दिग्गज हारे हैं। इसमें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार, स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर, विधायक महेश्वर सिंह और पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह को हार का सामना करना पड़ा है। 

आपातकाल में बना था वीरभद्र की हार का कारण
वीरभद्र सिंह को कांग्रेस टिकट पर भारतीय लोकदल के गंगा सिंह ने हराया था। इसी तरह वे पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल से भी चुनाव हार गए थे। संसदीय क्षेत्र में वीरभद्र सिंह की हार का मुख्य कारण तत्कालीन केंद्र सरकार के आपातकाल और परिवार नियोजन योजना के तहत जबरन नसबंदी करने जैसा निर्णय बना। 

सुखराम की जीत पर भारी पड़ी प्याज की कीमतें
वर्ष 1984 में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पंडित सुखराम तत्कालीन भाजपा प्रत्याशी महेश्वर सिंह से चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में सुखराम का हार का कारण महंगाई विशेषकर चीनी और प्याज की कीमतों में हुई वृद्धि रहा। महेश्वर सिंह ने कौल सिंह ठाकुर और प्रतिभा सिंह को चुनाव में हराया था। हालांकि महेश्वर सिंह एक चुनाव प्रतिभा सिंह से हार गए थे।

रिटायर मेजर से हार गए थे धूमल
पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल भी वर्ष 1996 के चुनाव में रिटायर मेजर जनरल विक्रम सिंह से चुनाव हार गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस ने सेना से रिटायर हुए व्यक्ति को टिकट थमाया। संसदीय क्षेत्र में सेना में काम करने वाले लोगों की संख्या अधिक है और कांग्रेस अपनी रणनीति के अनुसार प्रो. प्रेम कुमार धूमल को हराने में सफल रही। हालांकि विधानसभा चुनाव में प्रो. धूमल चुनाव कभी नहीं हारे और 2 बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

शांता कुमार को भी मिली हार
भाजपा के दिग्गज नेता शांता कुमार चंद्र कुमार से संसदीय चुनाव में हार गए थे। वे विधानसभा चुनाव भी मान चंद राणा से हार गए थे। शांता कुमार ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रेश कुमारी को वर्ष 1989 के लोकसभा चुनाव में पराजित किया था। हालांकि इसके बाद वह पिछले चुनाव में जोधपुर से सांसद बनने के बाद केंद्र में संस्कृति मंत्री बनी थीं।

जगदेव-खाची भी चुनाव हारे
भाजपा और कांग्रेस के 2 दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय जगदेव चंद और स्वर्गीय जय बिहारी लाल खाची भी चुनाव हारे थे। दोनों नेता एक समय शीर्ष पर थे और मुख्यमंत्री पद तक के दावेदार थे। ऐसे समय में इन दोनों नेताओं का आकस्मिक निधन हो गया।

महेंद्र-बाली अब तक अजेय
भाजपा और कांग्रेस के 2 बड़े नेता अभी भी अजेय हैं। इसमें पूर्व मंत्री एवं विधायक ठाकुर महेंद्र सिंह 5 बार अलग-अलग चुनाव चिन्ह पर जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। इस कारण एक अनूठा रिकार्ड गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में उनके नाम दर्ज है। परिवहन मंत्री जी.एस. बाली भी लगातार 4 बार चुनाव जीत चुके हैं। उनकी गणना भी मौजूदा वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं में की जाती है।

डा. वाई.एस. परमार और ठाकुर राम लाल के नाम अजेय रहने का रिकार्ड
प्रदेश के पहले 2 मुख्यमंत्री डा. यशवंत सिंह परमार और ठाकुर राम लाल के नाम अजेय रहने का रिकार्ड है। डा. परमार को प्रदेश निर्माता के नाम से जाना जाता है जबकि ठाकुर राम लाल के नाम विधानसभा में 9 चुनाव जीतने का रिकार्ड है। ठाकुर राम लाल कभी चुनाव नहीं हारे। इसके अलावा पूर्व शिक्षा मंत्री स्वर्गीय ईश्वर दास धीमान कभी भी चुनाव नहीं हारे। पूर्व मंत्री गुमान सिंह भी चुनाव नहीं हारे।