2016 में अग्निकांड से कुल्लू को मिले कई जख्म, सैंकड़ों परिवार हुए बेघर

Tuesday, Dec 20, 2016 - 02:43 PM (IST)

कुल्लू: कुल्लू जिले में वर्ष 2016 में आग से 100 से ज्यादा जख्म मिले हैं। जिला के कुल्लू-मनाली व बंजार उपमंडलों में जनवरी 2016 से अब तक 108 आग की घटनाएं हो चुकी हैं जिनमें सैंकड़ों लोग बेघर हुए हैं तथा 7.59 करोड़ रुपए  की सम्पत्ति जल कर स्वाह हुई है। इनमें कुल्लू में 54 आग की घटनाएं हुईं जिनमें 4.90 करोड़ रुपए की सम्पत्ति स्वाह हुई। मनाली में 41 आग की घटनाएं हुईं जिसमें 1.71 करोड़ रुपए की सम्पत्ति व बंजार में 13 अग्निकांड हुए जिनमें 97.46 लाख रुपए की सम्पत्ति स्वाह हुई है। अकेले दिसम्बर माह के 20 दिनों में ही 3 अग्निकांड 132 लोगों को बेघर कर चुके हैं। गांवों में बढ़ती घटनाएं आपदा प्रबंधन पर भी सवाल खड़ी कर रही हैं।


यहां पर काम करना जरूरी
कुल्लू जिला भौगोलिक दृष्टि से अन्य कई जिलों से बिल्कुल भिन्न है। सरकार द्वारा जिला कुल्लू में मनाली, कुल्लू व लारजी में अग्रिशमन केंद्र व अग्रिशमन चौकी की व्यवस्था की गई है। क्षेत्र कई किलोमीटर तक फैला है और सड़क की सुविधाएं दुर्गम क्षेत्रों में पर्याप्त नहीं हैं। इस स्थिति में जब आग की घटनाएं होती हैं तो जब तक कि अग्रिशमन कर्मियों का दल घटना स्थल पर पहुंचता है तब तक आग विराट रूप धारण कर चुकी होती है। लोगों की मानें तो सरकार को अनेक स्थानों पर अग्निशमन चौकियां खोलनी चाहिए जिससे आग की घटना होने पर तुरंत आग पर काबू पाया जा सके।


सिर्फ 25 फीसदी ही भरपाई
अग्निकांड से प्रभावितों का कहना है कि आग से लाखों रुपए की सम्पत्ति स्वाह हो जाती है लेकिन प्रशासन द्वारा जितनी मदद मिलती है उससे 25 प्रतिशत भी नुक्सान की भरपाई नहीं हो पाती है। सरकार व प्रशासन द्वारा प्रभावित लोगों को इतनी मदद दी जानी चाहिए कि वे पुन: अपने घरों का जल्द से जल्द निर्माण कर पाएं। 


ये रहे आग के कारण
*घरों के पास किया गया सूखे घास का भंडारण।
*घरों से होकर गुजरती बिजली की पुरानी तारें।
*बच्चों के पास ज्वलनशील चीजों का होना।
*अग्रिशमन केंद्रों का दुर्गम क्षेत्रों की पहुंच से दूर होना।
*गैस रिसाव का होना।
*मानवीय भूल।
*ग्रामीण क्षेत्रों तक सड़क की उचित व्यवस्था नहीं।
*गांव में पानी का उचित भंडारण नहीं।
*सूखे घास को घरों से दूर नहीं रखा।
*लकड़ी का भंडारण घर से दूर नहीं।
*मकान में उचित दूरी नहीं।


लुप्त हो रही पहाड़ों की शैली
जिला कुल्लू सहित मनाली, बंजार, मणिकर्ण के ग्रामीण व दुर्गम क्षेत्रों में आग की घटनाओं से पहाड़ों का वास्तुशिल्प भी खतरे में पड़ गया है। चाहे मलाणा हो, कोटला हो, शांघड़ हो या फिर मोहनी ऐसे कई प्रमाण हैं जहां पहाड़ का पुरातन वास्तुशिल्प राख के ढेर में बदल गया है। अग्रिकांड से कई मंदिर भी अछूते नहीं रहे। प्रतिवर्ष आग की बढ़ती घटनाओं से पहाड़ की भौगोलिक परिस्थतियों के अनुरूप बने काष्ठकुणी शैली के मकान अब लुप्त होने की कगार पर हैं। 


आपदा प्रबंधन पर भी सवाल
ग्रामीण लोगों में जागरूकता लाने को प्रशासन द्वारा हर वर्ष लाखों रुपए खर्च कर आपदा प्रबंधन की बड़ी-बड़ी कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आग की घटनाओं से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन के प्रयास दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। दुर्गम क्षेत्रों की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए ग्रामीण लोगों को अग्रिकांड के समय आपदा प्रबंधन के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए ताकि जानमाल का कम से कम नुक्सान हो सके। उधर, जब गांवों में आपदा प्रबंधन का जिक्र किया तो ग्रामीण हैरान होकर पूछते हैं कि यह क्या होता है। यानी उन्हें आपदा प्रबंधन की जानकारी तक नहीं। फिर क्या यह सिर्फ शहरों के लिए? जबकि ज्यादातर घटनाएं ग्रामीण क्षेत्रों में हो रही हैं।