कारगिल युद्ध: भारतीय सेना ने आज ही के दिन तोलोलिंग पर की थी फतह

Wednesday, Jun 13, 2018 - 03:12 PM (IST)

कांगड़ा: भारतीय सेना के लिए आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण है। कारगिल युद्ध के दौरान 1999 में 13 जून को ही युद्ध का एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट आज साबित हुआ था, जब भारत के वीर जवानों ने तोलोलिंग चोटी पर कब्जा किया था। इस युद्ध के हीरो रहे ब्रिगेडियर खुशहाल ठाकुर ने अपनी यादें ताजा करते हुए इस कामयाबी की 19वीं वर्षगांठ के मौके पर बताया कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने धोखेबाज चरित्र से द्रास-कारगिल की पहाड़ियों पर कब्जा करने की नापाक कोशिश की थी। भारतीय सेना ने अपनी मातृभूमि में घुस आए घुसपैठियों को बाहर खदेड़ने को एक बड़ा अभियान चलाया जिसमें भारतीय सेना के 527 रणबांकुरों ने अपने बलिदान से मातृभूमि को दुश्मनों के नापाक कदमों से मुक्त किया। 


1363 जांबाजों ने घायल होकर भी न केवल लड़ाई लड़ी बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाने में अपना योगदान दिया। कारगिल की यह लड़ाई दुनिया के इतिहास में सबसे ऊंचे क्षेत्र में लड़ी गई लड़ाई थी। करीब 2 महीने तक चली इस लड़ाई में अंतत: भारतीय सेना ने अपने गौरवशाली अतीत की याद दिलाते हुए पाकिस्तानी सेना को मार भगाया। 26 जुलाई, 1999 को आखिरी चोटी पर जीत के साथ रक्तरंजित किंतु गौरवशाली वीरता का इतिहास लिखा गया। जब हम कारगिल विजय दिवस को याद कर रहे हैं तो महत्वपूर्ण हो जाता है कि कारगिल की लड़ाई की उन महत्वपूर्ण कडिय़ों को पिरोया जाए जिन्होंने एक के बाद एक मोर्चा फ तह कर कारगिल विजय की गाथा लिखी। 


बात 1999 की है जब पाकिस्तानी सेना घुसपैठिया बन भारतीय क्षेत्र में घुसी व कारगिल की ऊंची-ऊंची चोटियों पर कब्जा जमा लिया। यह अपने आप में पूरे विश्व में अनूठा युद्ध था जब एक ओर घुसपैठिए सैनिक पहाडिय़ों की चोटी पर कब्जा जमाए बैठे थे, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना नीचे सपाट मैदानों में थी। या यूं कहें कि भारतीय सेना पाकिस्तानी घुसपैठियों के लिए बहुत ही आसान टारगेट थी लेकिन यहीं भारतीय सेना ने अपने शौर्य गाथा लिखी। भारतीय रणबांकुरों ने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए उन पहाड़ों पर चढ़ाई की, पहाड़ रणबांकुरों के रक्त से रंजित होते रहे परंतु अभियान नहीं रुका। रुका तो सिर्फ चोटियों पर कब्जा करने के बाद। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण चोटी थी तोलोलिंग, यह वही पहली चोटी थी जिस पर भारतीय सेना ने सबसे पहले कब्जा जमाया और यहीं से कारगिल की लड़ाई में एक नया मोड़ आया। 


इस युद्ध का अभियान 20 मई, 1999 को शुरू हुआ इसका जिम्मा 18 ग्रेनेडियर्ज को दिया गया। ब्रिगेडियर अपनी स्मृतियों के पन्नों को पलटते हुए आज भी उस अभियान को नहीं भूल पाए हैं। वह भूल नहीं पाए हैं कि किस प्रकार इस लड़ाई में उनके नेतृत्व में 18 ग्रेनेडियर्ज के बहादुरों ने कैसे अपना लोहा मनवाया था। कैसे 18 ग्रनेडियर के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर कर्नल खुशहाल ठाकुर की कमान के सर्वाधिक सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। तोलोलिंग पर कब्जा करने की कोशिश में 18 ग्रेनेडियर्ज के 25 जवान शहीद हो चुके थे, यह एक अपने आप में बहुत बड़ी क्षति थी। कारण स्पष्ट था कि ऊपर चोटी पर बैठा दुश्मन सेना की हर हरकत पर नजर रखे हुए था और बड़ी आसानी से इस अभियान को नुक्सान पहुंचाता रहा। सबसे पहले मेजर राजेश अधिकारी शहीद हुए। एक बड़े नुक्सान के बाद कर्नल खुशहाल ठाकुर ने स्वयं मोर्चा संभालने की ठानी और अभियान को सफ ल बनाया। 


13 जून, 1999 को 18 ग्रेनेडियर्ज व 2 राजपूताना राइफ ल्ज ने तोलोलिंग पर कब्जा किया परंतु इसकी सफलता बहुत महंगी साबित हुई। इस संघर्ष में लैफ्टिनैंट कर्नल विश्वनाथन बुरी तरह घायल हुए और अंतत: कर्नल खुशहाल ठाकुर की गोद में प्राण त्याग कर वीरगति को प्राप्त हुए। पहली चोटी तोलोलिंग व सबसे ऊंची चोटी टाइगर हिल पर विजय पताका फहराने का सौभाग्य कर्नल खुशहाल ठाकुर व उनकी यूनिट 18 ग्रेनेडियर्ज को प्राप्त हुआ था। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस विजय व ऐतिहासिक अभियान के लिए 18 ग्रेनेडियर्ज को 52 वीरता सम्मानों से नवाजा जोकि भारत के सैन्य इतिहास में एक रिकॉर्ड है। हवलदार योगेंद्र यादव को देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2 महावीर चक्र, 6 वीर चक्र, 1 शौर्य चक्र, 19 सेना पदक व दूसरे वीरता पुरस्कारों से नवाजा गया। साथ ही साथ कारगिल थिएटर ऑनर व टाइगर हिल व तोलोलिंग बैटल ऑनर 18 ग्रेनेडियर्ज को दिए गए जिसकी कमान कर्नल खुशहाल ठाकुर के पास थी और इसी लिए उन्हें युद्ध सेवा मैडल से नवाजा गया।

Ekta