Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध का वो हीरो जिसके नाम से थर-थर कांपते थे दुश्मन

punjabkesari.in Friday, Jul 26, 2024 - 12:17 PM (IST)

हिमाचल डैस्क: देश आज कारगिल विजय की रजत जयंती मना रहा है। कारगिल युद्ध भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज है। इस युद्ध में देश के कोने-कोने से जवानों ने अपनी बहादुरी और देशभक्ति का परिचय दिया और हिमाचल प्रदेश के जवानों की शहादत ने इस संघर्ष में एक विशेष स्थान बनाया। कारगिल युद्ध में हिमाचल के 52 जवानों ने देश की रक्षा करते हुए शहादत का जाम पिया था। उनकी वीरता की कहानियां आज भी हर भारतीय के दिल में जिन्दा हैं और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी। हिमाचल प्रदेश के लोग अपने वीर जवानों की शहादत पर गर्व महसूस करते हैं। कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों की याद में हर साल विभिन्न समारोह आयोजित किए जाते हैं, जिनमें उनकी बहादुरी को याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। कारगिल युद्ध में कांगड़ा जिले से सबसे अधिक 15 जवान शहीद हुए थे। इसके अतिरिक्त मंडी जिले से 11, हमीरपुर से 7, बिलासपुर से 7, शिमला से 4, ऊना से 2, सोलन से 2, सिरमौर से 2 और चम्बा व कुल्लू जिलों से 1-1 जवान शहीद हुए थे।
PunjabKesari

परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा
कारगिल युद्ध में शहीद होने वाले जवानाें में परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जाता है, जिनके शौर्य और बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। दुश्मन भी इनके नाम से थर-थर कांपते थे। उनकी बहादुरी के कारण दुश्मन उन्हें शेरशाह के नाम से जानते थे। परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा 7 जुलाई, 1999 को कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हो गए थे। 9 सितम्बर, 1974 को कांगड़ा जिले के पालमपुर में घुग्गर गांव में जन्मे विक्रम बत्रा ने 1996 में इंडियन मिलिटरी अकादमी में दाखिला लिया था। 6 दिसम्बर, 1997 को कैप्टन बत्रा जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में बतौर लैफ्टिनैंट शामिल हुए। कारगिल युद्ध में उन्होंने जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन का नेतृत्व किया।
PunjabKesari

ऐसे पड़ा था शेरशाह नाम
कारगिल युद्ध के दौरान 20 जून, 1999 को जब कैप्टन बत्रा को 5140 चोटी को कब्जे में लेने का ऑर्डर मिला तो वह अपने 5 साथियों को लेकर मिशन पर निकल पड़े। पाकिस्तानी सैनिक चोटी के शीर्ष पर थे और मशीन गन से भारतीय सैनिकों पर गोलियां बरसा रहे थे, लेकिन बत्रा ने हार नहीं मानी और एक के बाद एक पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर करते हुए इस चोटी पर कब्जा कर लिया। इस दौरान बत्रा खुद गंभीर रूप से घायल भी हुए थे। चोटी पर कब्जा करने के बाद कैप्टन बत्रा ने जीत का कोड बोला-ये दिल मांगे मोर। बत्रा के इस अदम्य वीरता और पराक्रम के लिए कमांडिंग ऑफिसर लैफ्टिनेंट कर्नल वायके जोशी ने उन्हें शेरशाह उपनाम से नवाजा था। 4875 प्वांइट पर कब्जे के दौरान भी बत्रा ने बेहद बहादुरी दिखाई। उन्होंने अपने सैनिकों को पीछे कर दिया और खुद आगे आकर दुश्मनों की गोलियां खाईं। उनके आखिरी शब्द थे 'जय माता दी'। विक्रम बत्रा की शहादत के बाद उनके सम्मान में प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप का नाम दिया गया है।
हिमाचल की खबरें Twitter पर पढ़ने के लिए हमें Join करें Click Here
अपने शहर की और खबरें जानने के लिए Like करें हमारा Facebook Page Click Here


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Vijay