अस्तित्व की जंग लड़ने पर मजबूर कांगड़ा चाय उद्योग, जानिए क्या है वजह

Monday, Apr 23, 2018 - 02:12 AM (IST)

पालमपुर: विदेश में भी जिस चाय की चुस्कियों से सुबह हुआ करती थी वह चाय आज अपने ही घर में अस्तित्व की जंग लड़ रही है। घटते चाय बागान के साथ उत्पादन को 10 लाख किलोग्राम प्रतिवर्ष बनाए रखने की कसरत ही कांगड़ा चाय का परिदृश्य बनकर रह गया है। स्थिति यह है इस बार तो अप्रैल तोड़ ने भी उत्पादकों को तोड़ कर रख दिया है। पूर्व में कई योजनाएं बनी परंतु धरातल पर ये योजनाएं अभी पूरी ही नहीं हो पाईं। कभी कांगड़ा के साथ सटे चम्बा के कुछ क्षेत्रों में भी कांगड़ा चाय के उत्पादन की योजना बनी। वर्ष 2008-09 में योजना तैयार कर चम्बा में इसके लिए लगभग 3200 हैक्टेयर भूमि भी चिन्हित की गई परंतु इस योजना को पंख नहीं लग सके। कृषि मंत्री रामलाल मार्कंडेय अपने पालमपुर प्रवास के दौरान चाय को लेकर अधिकारियों के साथ बैठक कर धरातल पर कांगड़ा चाय उद्योग की स्थिति की समीक्षा करेंगे। 


क्या हैं समस्याएं
कांगड़ा चाय उत्पादन से लगभग वर्तमान में 400 लोग ही बागान मालिक हैं। इनमें से भी अधिकांश उत्पादन क्षेत्र चुनिंदा बागान मालिकों के पास है जबकि अन्य छोटे व मध्यम चाय उत्पादकों के पास छोटे-छोटे टुकड़े चाय बागान के हंै जिस कारण ऐसे चाय बागान मालिकों के लिए वर्तमान में चाय उत्पादन आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं रहा है। रही सही कसर श्रमिकों की समस्या ने पूरी कर दी। प्रदेश में उत्पादित की जाने वाली चाय पत्ती का आंकड़ा देश में उत्पादित की जाने वाली कुल चाय उत्पादन का 1 प्रतिशत से भी कम है।  


स्वर्णिम रहा है इतिहास
1850 में लगभग 4500 हैक्टेयर क्षेत्र में कांगड़ा चाय का उत्पादन आरंभ हुआ। अभी 2 दशक भी नहीं बीते थे कि कांगड़ा चाय ने अपनी महक व गुणवत्ता का ऐसा जादू बिखेरा कि लदन में सभी चाय उत्पादक क्षेत्रों को पछाड़ते हुए स्वर्ण पदक प्राप्त किया परंतु वर्ष 1905 के विनाशकारी भूकंप का ऐसा झटका इस चाय उद्योग को लगा कि बुलंदियों पर पहुंच चुकी कांगड़ा चाय रसातल की ओर चल पड़ी, तो वर्ष 1947 में देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद अफगानिस्तान का रास्ता बंद हो गया, वहीं सोवियत संघ को चाय भेजने की योजना बनी तो सही परंतु कागजों से बाहर नहीं निकल पाई। कभी 4500 हैक्टेयर में उगाई जाने वाली कांगड़ा चाय का क्षेत्र कम होने लगा तथा लगभग 2200 हैक्टेयर क्षेत्र में ही बागान शेष रह गए। 


वर्ष 1998-99 में पार किया था 17 लाख किलोग्राम का आंकड़ा
वर्ष 1998-99 एक बार फिर आशा की किरण बनकर उभरा तथा उत्पादन 17 लाख किलोग्राम के आंकड़े को पार कर गया परंतु इसके पश्चात इस आंकड़े को पुन: छूना कशमकश में ही उलझा हुआ है। 2004-05 में यह आंकड़ा सिमट कर लगभग साढ़े 6 लाख किलोग्राम तक रह गया। वर्ष 2011-12 में कांगड़ा चाय का उत्पादन 9 लाख 80 हजार 044 किलोग्राम रहा तो 2012-13 में 8 लाख 47 हजार 621 किलोग्राम उत्पादन प्राप्त हुआ जबकि वर्ष 2013-14 में उत्पादन का आंकड़ा 9 लाख 13 हजार 073 किलोग्राम जा पहुंचा। वर्ष 2014-15 में उत्पादन फिर लुढ़क कर 8 लाख 42 हजार 447 किलोग्राम रह गया जबकि वर्ष 2015-16 में 8 लाख 49 हजार 963 किलोग्राम चाय उत्पादित हुई। वर्ष 2016-17 में 9 लाख 21 हजार 902 किलोग्राम चाय उत्पादित हुई। 

Vijay