कांगड़ा हलके में काजल अब तक अजेय, कांग्रेस में मोंगरा का उदय, वर्मा किंगमेकर की भूमिका में
punjabkesari.in Thursday, Oct 30, 2025 - 11:47 AM (IST)
धर्मशाला, (सौरभ कुमार): प्रदेश की सियासत में 'सत्ता की कुंजी' माना गया जिला कांगड़ा हर चुनाव में नए राजनीतिक प्रयोगों का केंद्र बनता आ रहा है। ऐसे प्रयोग सबसे अधिक जिस विधानसभा क्षेत्र में हुए हैं, वह भी कांगड़ा ही है। अजब सियासी तानेबाने को समेटे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) बहुल (50-55 फीसदी) इस विधानसभा हलके की कहानी पिछले तीन दशकों में राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस की स्थापित विचारधारा से अधिक स्थानीय नेताओं के व्यक्तिगत प्रभाव को बयां करती है।
इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान विधायक पवन काजल हैं, जिनके नाम के अनुरूप उनकी सियासी हवाओं का रुख अप्रत्याशित रूप से बदलता रहा है। 2012 से कांगड़ा की राजनीति पूरी तरह से पवन कुमार काजल के इर्द-गिर्द घूम रही है। जिला परिषद का चुनाव जीतने के बाद राजनीति में उतरे काजल ने 2012 में निर्दलीय चुनाव (20,118 वोट) जीतने के बाद से हर चुनाव में अपनी व्यक्तिगत पकड़ बनाई और ओ.बी.सी. के मजबूत नेता के तौर पर छवि मजबूत की है। पहले कांग्रेस ने उन्हें सिर-आंखों पर बिठाया और 2022 से पहले वह भाजपा की आंखों का तारा बन गए।
2017 में काजल ने कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीता। उन्होंने 21,328 वोट प्राप्त किए। 2022 के चुनाव में काजल भाजपा में शामिल होकर लड़े व दल-बदल के बाद भी उनकी जीत का अंतर रिकॉर्ड तोड़ रहा, क्योंकि भाजपा का कोर वोटर भी उनके साथ मजबूती से जुड़ा। उन्होंने 55.64% यानी 35,239 वोट प्राप्त किए, जबकि कांग्रेस उम्मीदवार सुरेंद्र काकू को महज 15,405 वोट मिले। 19,834 वोटों के विशाल अंतर से जीतने वाले काजल लगातार लोगों में पैठ मजबूत रखे हुए हैं।
बीती हार के बाद कांग्रेस में ओ.बी.सी. समुदाय से ही नीशू मोंगरा का सियासी उदय हुआ, जिन्हें मुख्यमंत्री सुक्खू से करीबी के चलते ए.पी.एम.सी. कांगड़ा की कमान भी मिली है। मोंगरा भी पंचायतीराज से राजनीतिक मुख्यधारा में आए हैं व जनता के बीच लगातार पैठ मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़कर 2027 का चुनाव लड़ने की रेस में अग्रणी बन गए हैं। वहीं कांगड़ा से ही अजय वर्मा भी कांग्रेस के अन्य कद्दावर नेता के रूप में उभर चुके हैं जिन्हें एच.आर.टी.सी. उपाध्यक्ष की अहम कुर्सी मिली है।
पूर्व परिवहन मंत्री दिवंगत जी.एस. बाली के बाद अब उनके पुत्र रघुबीर सिंह बाली के निकट सहयोगियों में शुमार अजय वर्मा भी आम लोगों से जुड़ाव के चलते कांगड़ा में किंगमेकर के तौर पर उभरने की जुगत में हैं। वहीं पूर्व जयराम सरकार के समय भाजपा में गए पूर्व विधायक सुरेंद्र काकू दोबारा कांग्रेस में आने के बाद कहीं न कहीं पुराना जलवा खो चुके हैं व चुनावी रेस से लगभग बाहर हैं। ऐसे में कांग्रेस अगला चुनाव भी नए उम्मीदवार के भरोसे लड़ेगी, यह लगभग तय है।
1980 व 90 के दशक में भाजपा का चरम, बसपा व निर्दलीय भी थे चमके
1980 व 90 के दशक में कांगड़ा विधानसभा हलका भाजपा का गढ़ रहा। 1993 को छोड़ दें तो भगवा दल के दिग्गज नेता विद्यासागर चौधरी ने 1982 से 1998 तक यह सीट चार बार जीती। 1993 में कांग्रेस के दौलत राम व 2003 में सुरेंद्र काकू एक-एक बार चुनाव जीते। 2007 में बहुजन समाज पार्टी के संजय चौधरी ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी जो बाद में भाजपाई हो गए और इन दिनों हाशिये में हैं। 2022 में काजल ने भाजपा टिकट पर जीतकर पार्टी का 25 साल का सूखा खत्म किया। काजल अब पार्टी के एकछत्र नेता हैं। दूसरी कतार के सभी नेता भी उनके समर्थन में हैं।
बागियों की भूमिका
कांगड़ा हलके के चुनावी इतिहास में अक्सर असंतुष्ट कार्यकर्ता निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े होते रहे हैं। 2012 में काजल ने भाजपा टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा था। 2017 में टिकट न मिलने पर पूर्व विधायक सुरेंद्र काकू ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा था व 2022 में फिर कांग्रेस में आ गए। वहीं, 2022 में ही दो निर्दलीय उम्मीदवारों कुलभाष चंद व अमित वर्मा ने मिलकर लगभग 11,000 वोट खींच लिए थे, जिसने कांग्रेस की वापसी की संभावनाओं को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। यह दिखाता है कि राजनीतिक दल यहां अपने स्थानीय नेताओं को एकजुट रखने में विफल रहे हैं।
कांग्रेस में भी ओ.बी.सी. लीडर ही चलेगा
लगातार राजनीतिक प्रयोग कर नाकामी झेल चुकी कांग्रेस भी कांगड़ा में अब ओ.बी.सी. लीडर नीशू मोंगरा के साथ ही अजय वर्मा को तवज्जो देकर अपनी खोई जमीन को हासिल करने को आतुर है। मोंगरा को पंचायतीराज स्तर पर चुनाव लड़ने का अनुभव है तो एन.एस.यू.आई. व युवा कांग्रेस से निकले अजय वर्मा ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू से सियासी गुर सीखे हैं। दोनों नेता लोगों के बीच लगातार सक्रिय रहकर सरकार से जनहित के काम करवा रहे हैं।
कांगड़ा के प्रमुख मुद्दे
कांगड़ा हलके की जनता बार-बार यह संदेश देती है कि वह मूलभूत आवश्यकताओं और विकास की उपेक्षा से त्रस्त है। नगरकोट धाम माता बज्रेश्वरी मंदिर होने की वजह से कांगड़ा ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन का केंद्र है। स्थानीय लोगों की शिकायत रहती है कि साथ लगते धर्मशाला विधानसभा क्षेत्र को अधिक ध्यान मिलता है, जबकि कांगड़ा शहर को अपेक्षित पर्यटन और आधारभूत ढांचा विकास नहीं मिला है। जबकि कांगड़ा बड़े व्यापारिक हब के रूप में उभर चुका है। नालियों में सीवरेज, सफाई व्यवस्था व पार्किंग का अभाव प्रमुख मसले हैं।
जनता ही मेरी ताकत है
पवन काजल, कांगड़ा के विधायक का कहना है कि मैंने अपनी मूल पार्टी भाजपा में वापसी कर पिछले चुनाव में जीत दर्ज की क्योंकि कांगड़ा की जनता मेरे साथ है। लोगों के हित मेरे लिए पार्टी लाइन से बढ़कर हैं व उनकी आवाज हर स्तर पर उठाना मेरा फर्ज है। जनता ही मेरी ताकत है व 2027 में जनता ही मेरा जीत का चौका लगाएगी।
कांगड़ा में कांग्रेस मजबूत हुई
नीशू मोंगरा, अध्यक्ष, ए.पी.एम.सी. कांगड़ा का कहना है कि कांगड़ा विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस और मजबूत हुई है। पार्टी ने मुझे जो 7 जिम्मेदारी दी है, उसे निभाने का लगातार भरसक प्रयास कर रहा हूं। पार्टी जो भी आगे भूमिका देगी, उसका पालन करता रहूंगा।
अजय वर्मा, उपाध्यक्ष, एच. आर.टी.सी. का कहना है कि मेरा चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है। मुख्यमंत्री सुक्खू व पार्टी ने जो दायित्व दिया है, उसे पूरी लगन से निभाकर पूरे कांगड़ा जिले में पार्टी को मजबूत बना रहा हूं। अगले चुनाव में कांगड़ा हलके में पार्टी को जिताने में पूरा योगदान दूंगा।

