दशहरा उत्सव में तीसरी बार काहिका उत्सव का आयोजन, पश्चाताप के लिए देवी-देवताओं ने किया काहिका

punjabkesari.in Sunday, Oct 17, 2021 - 05:45 PM (IST)

कुल्लू (दिलीप) : देवमहाकुंभ दशहरा पर्व में इस बार अनूठी परंपरा काहिका का आयोजन किया गया। भगवान विजली महादेव की अध्यक्षता में कुल 11 देवी-देवताओं ने इस पर्व में भाग लिया। यह काहिका उत्सव पश्चाताप के रूप में किया गया ताकि आज तक देव संस्कृति में जो भी भूल हुई है उनको समाप्त किया जा सके और खंडित देव परंपरा को बहाल किया जा सके। गौर रहे कि काहिका उत्सव में नड़ जाति के प्रमुख की अहम भूमिका रहती है। उक्त व्यक्ति देवताओं द्वारा पहले मूर्छित किया जाता है और बाद में जिंदा किया जाता है। लेकिन इस काहिका में नड़ को मूर्छित नहीं किया गया बल्कि नड़ द्वारा परिक्रमा की गई। साथ ही काहिका में अश्लील जुमलों का भी बोलबाला रहा। गौर रहे कि गत वर्ष दशहरा पर्व में देव परंपरा खंडित हुई थी और मात्र आठ देवी-देवताओं को ही दशहरा पर्व में बुलाया था। जिस कारण देवी-देवता रुष्ट थे। इसके अलावा दो वर्ष पहले देव धुन का आयोजन किया गया था जिसमें भी देव परंपरा खंडित हुई थी और देवी-देवता रुष्ट थे। जिस कारण इस उत्सव का आयोजन करना पड़ा। 

रघुनाथ जी के प्रमुख छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि जो देव परंपरा खंडित हुई थी और देवी-देवता जो रुष्ट थे उसके निवारण के लिए काहिका का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम का सारा खर्चा देवलुओं ने किया। इससे पहले जब दशहरा पर्व में 1971 में गोलीकांड हुआ था तो उसके शुद्धिकरण के लिए 1972 में काहिका का आयोजन किया था। जबकि पहला काहिका 1957 में हुआ था जब साम्प्रदायक दंगे में एक सम्प्रदाय के बहुत सारे लोग मारे गए थे और ढालपुर अशुद्ध हुआ था तब शुद्धिकरण के लिए काहिका मनाया गया था।वही विशेष जाति के नड़ दौलत सिंह ने बताया कि इससे पहले यहां पर काहिके का आयोजन किया गया, जब कुल्लू में गोली कांड हुआ था। उन्होंने कहा कि उस कार्यक्रम में मेरे पूर्वजों ने भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि कोहिका शुद्धिकरण के लिए आयोजित किया जाता है और दुनिया की भलाई के लिए इस कार्य का आयोजन किया जाता है। जिसका विशेष महत्व यही है।

उन्होंने कहा कि देवी-देवताओं के आह्वान पर इस कार्य का आयोजन किया जाता है। इस बार दूसरी बार ढापुर में काहिके का आयोजन किया गया। इससे पहले देश आजाद होने के बाद काहिका का आयोजन किया गया था। उसमें भी छोटे-छोटे बच्चे थे। उनके पूर्वजों ने ढालपुर में कार्य का आयोजन किया गया था। सीता माता के साथ सभी देवताओं ने परिक्रमा की। जिसको हम सीता कहते हैं उन्होंने देवताओं के साथ पूरे कुरुक्षेत्र में परिक्रमा की। जिसमें देवी देवता और रघुनाथ के छड़ीवदार महेश महेश्वर सिंह ने भी भाग लिया। माता सीता ने भी परिक्रमा देवी देवताओं के साथ की और अंत में इसका समापन बिजली महादेव के अस्थाई शिविर में किया गया। परिक्रमा के तुरंत बाद बारिश का होना शुभ माना जाता है जो कि सृष्टि के लिए अच्छे संकेत माने जाते हैं। 
 


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Content Writer

prashant sharma

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