हाल-ए-हिमाचल: सुधार से संकोच न करें जयराम, जनता को दें आराम

Friday, Oct 05, 2018 - 12:09 PM (IST)

शिमला (संकुश): मैं जयराम ठाकुर को तबसे जानता हूं जब वे पहली मर्तबा चुनाव में उतरे थे। पहला चुनाव हारने के बाद उन्होंने जीत का चौका लगाया और उसके बाद वे मुख्यमंत्री बने हैं। यानी पूरे 25 साल के सियासी सफर के बाद उनको यह मुकाम हासिल हुआ है। इतना अरसा कम नहीं होता। विज्ञान की भाषा में इसे जेनरेशन टाइम कहा जाता है। यानी 25 बरस में एक पीढ़ी का गैप पड़ जाता है। जयराम ठाकुर ने भी मुख्यमंत्री की सीट पर बैठकर उसी जेनेरेशन गैप को कम किया है, जिसे हिमाचल वीरभद्र और धूमल के नेतृत्व में महसूसने लगा था। लेकिन इतना लम्बा और गूढ़ अनुभव रखने वाले जयराम ठाकुर सीएम बनते ही क्यों जल्दी में पड़ गए, यह अभी भी मेरी समझ से बाहर है। जबकि यह तय है कि अब वे ही हिमाचल में बीजेपी हैं।

उन्होंने सीएम डेजिग्नेट होते ही बयान दिया था कि टायर्ड और रिटायर्ड लोग नहीं चलेंगे। लेकिन इससे पहले कि उनके इस महान संकल्प की हिमाचल का हर शख्स अनुभूति ले पाता। उन्होंने इसे रोल बैक कर दिया। इसके बाद उनके अपने चुणक्षेत्र में एसडीएम दफ्तर को लेकर जो फैसला उन्होंने लिया वो जल्दबाजी साबित हुआ। नौबत उनके पुतले जलाने तक पहुंच गई। जबकि कायदे से अभी सिराज पहुंचने पर उनका नागरिक अभिनन्दन तक नहीं हुआ था। इसी तरह उन्होंने जल्दबाजी में पुराने  दिग्गज नेताओं के चहेते अफसरों की टीम को अपनी टीम बनाया और फिर जैसा कि होना ही था उसे तीन माह बाद बदलना पड़ा।  

इस प्रकरण में मुख्य बदलाव पुलिस महकमे में हुए। सरकार बदलने के साथ चीफ सेक्रेटरी और डीजीपी को जाना ही है। इस परम्परा के चलते हुए बदलाव के बाद कानून व्यवस्था बेपटरी हो गई। यहां तक कि पूरे पुलिस दल के सामने एक अधिकारी और कर्मचारी की हत्या हो गई और पुलिस वाले हाथ में बंदूक लिए खुद की जान बचाते देखे गए। जिस कानून व्यवस्था को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस को हराया था वही अब बीजेपी के लिए पड़ गया। फिर जल्दबाजी या यूं कह लें कि जोश-जोश में सरकार ने एक साथ इतने तबादले कर दिए कि बुरी तरह नकारे गए विपक्ष को डूबते डूबते तिनके का सहारा मिल गया और वो किनारे पहुंच कर सरकार पर चढ़ बैठा। कुल मिलाकर नौ माह में एक के बाद एक ऐसे फैसले जयराम सरकार से हो गए जो जल्दबाजी के उदाहरण बन गए।  और स्थिति यह आ गई कि जो बीजेपी काडर नए निजाम और नए बादशाह को लेकर  उम्मीदज़दा था वही काडर हतोत्साहित दिख रहा है।  

लोगों को लग रहा है कि इससे तो शायद पहले वाली व्यवस्था ही ठीक थी और यहीं बस न हुई। जयराम सरकार ने निजी बस ऑपरेटरों की हड़ताल के आगे जिस तरह घुटने टेके उसने कोढ़ में खाज का काम कर दिया। सरकार ने निजी बस ऑपरेटरों की हड़ताल से घबराकर एकदम से बस किराया बढ़ाने का फैसला ले लिया। दिलचस्प ढंग से जिस कैबिनेट में यह फैसला हुआ उसमें परिवहन मंत्री गोबिंद ठाकुर खुद मौजूद नहीं थे। दिलचस्प ढंग से वे खुद ट्रांसपोर्टर रहे हैं तो उनके होने से शायद सही फैसला करने में  आसानी रहती। अब उनकी यह गैरमौजूदगी रणनीति थी या संयोग यह तो सरकार जाने। हमें यह भी मालूम है कि इसका कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। लेकिन आम जनता में यह चीजें एक अलग ढंग से जाती हैं और यही हुआ भी। एकमुश्त न्यूनतम किराया दोगुना कर देने और कुल 24 फीसदी बढ़ाने का फैसला हुआ जो किसी भी सूरत में सही नहीं था। इस मामले में भी जयराम सरकार ने जल्दबाजी की। 

पहले उसे हड़ताल तुड़वानी चाहिए थी। फिर कोई फैसला आराम से लिया जाना चाहिए था। लेकिन जल्दबाजी में फैसला हुआ। जैसे ही यह फैसला हुआ ट्रक यूनियन ने अपने स्तर पर ही ढुलान के रेट बढ़ा दिए। जनता इस दोहरी मार से त्रस्त है। जिस नई सरकार को लेकर नौ माह पहले लोगों में जोश था आज उसी के प्रति आक्रोश है। हालांकि नई नई सरकार को यह आक्रोश दिख नहीं रहा और अब जब सरकार ने पांच रुपये  प्रति लीटर पेट्रोल डीजल में राहत दी है तो बड़ा सवाल सामने है। सवाल यह कि अब किराये कम होंगे क्या ??? जनता अब एक स्वर से  यह मांग आकर रही है कि किराया बढ़ोतरी वापस हो क्योंकि दाम काम हुए हैं। जाहिर है अगर बस किराया बढ़ोतरी का फैसला जरा सा डेफेर किया गया होता तो इस स्थिति से बचा जा सकता था। खैर देर तो अब भी नहीं हुई है। मसला सिर्फ दम दिखाने का है।   

जयराम ठाकुर को यही करना चाहिए। उन्हें बस किराए में बढ़ोतरी वापस ले लेनी  चाहिए। ट्रांसपोर्टरों को टैक्स आदि में थोड़ी छूट देकर हल निकाला जा सकता है। तय यह करना है कि चंद ट्रांसपोर्टरों की नाराजगी झेलनी है या लाखों लोगों की? लेकिन इतना तय है कि किराए वापस न हुए तो लोकसभा चुनाव में जनता नहीं बख्शेगी। अब एक बार फिर वही बात कि अगर या रणनीति है कि जयराम चाहते हैं कि सारे वरिष्ठ सांसद हार कर किनारे हो लें तो फिर यह बेहतर रणनीति है। लेकिन अगर उनको लगता है कि लोकसभा चुनाव की परफॉर्मेंस का उनकी एसीआर पर फर्क पड़ेगा तो फिर उनको किराया वापस ले लेना चाहिए। यकीन मानिए ऐसा करने से हार रहा सांसद भी जीत जाएगा क्योंकि यह एक दमदार फैसला होगा जिसकी जनता जयराम से अपेक्षा कर रही है। नौ माह में जो-जो गलतियां इस सरकार ने की हैं। उन्हें यह एक भूल सुधार पूरी तरह मिटा देगी और जयराम जनता के हीरो बन जाएंगे। वैसे भी यह इतिहास ही होगा कि बढे किराए वापस होंगे। जयराम के सामने यह इतिहास बनाने का मौका है। चार रुपए में चार सीटें किसी भी तरह से घाटे का सौदा नहीं है कर लेना चाहिए।  

Ekta