यहां गर्भ गृह की तरफ से मूर्ति देखी तो हो सकती है मौत!

Sunday, Aug 06, 2017 - 11:46 PM (IST)

कुल्लू: हजारों वर्षों के बाद आज भी धरती पर कोई चीज वैसी की वैसी देखने को मिले तो अचम्भा तो होगा ही। हिमाचल में आज भी कौतुहल का विषय बनी ऐसी इमारतें, मंदिर व उनमें विद्यमान कई चीजें मौजूद हैं। ऐसी अविश्वसनीय और अकल्पनीय बातें ही लोगों को पहाड़ों की ओर खींच लाती हैं। सात समुद्र पार से भी लोग इन चीजों की एक झलक पाने के लिए आते हैं। कई लोग इन बातों को महज कल्पनाओं से प्रेरित कहानियां व किस्से मानते होंगे लेकिन जब उनसे रहा नहीं जाता तो वे अपनी आंखों से इनके दीदार के लिए पहाड़ों पर कदमताल करते हुए यहां तक पहुंचते हैं। स्वयं अपनी आंखों से देखने, परखने, हाथों से छूने के बाद उनकी सोच ही बदल जाती है। क्या ऐसा हो सकता है कि सामने से शिव और पार्वती की मूर्ति के दर्शन करेंगे तो दर्शन करने वाले भक्त के मन को शांति मिलेगी। शिव का आशीर्वाद मिलेगा और मंदिर तक पहुंचने के बाद मुराद भी पूरी हो जाएगी लेकिन यदि इसी मूर्ति के दर्शन सामने की बजाय पिछली तरफ से किए जाएं तो दर्शन करने वाले की जिंदगी ही नहीं बचेगी या उसके साथ कोई अप्रिय घटना घट जाएगी, जिसकी सजा उसे ताउम्र भुगतनी पड़ेगी। 



हिमाचल के पहाड़ों में ऐसे मंदिर व मूर्तियां 
जी हां, हिमाचल के पहाड़ों में ऐसे मंदिर व मूर्तियां भी हैं। इनमें ममलेश्वर महादेव मंदिर भी एक है। कुल्लू और मंडी जिला के सीमांत क्षेत्र करसोग के ममेल गांव में ममलेश्वर महादेव मंदिर एक ऐसा शिवालय है जहां शिव-पार्वती की मूर्ति के दर्शन सिर्फ सामने की तरफ से ही करने की अनुमति है। इस मूर्ति के पीछे की तरफ अंधेरा गर्भगृह है। इस गर्भगृह की तरफ से अर्थात पीछे की तरफ से मूर्ति के दर्शन करने की मनाही है। स्थानीय लोगों की मानें तो मूर्ति के पिछले हिस्से में महाकाल विद्यमान हैं। यहां स्थित महाकाल के दर्शन मात्र से ही कुछ घंटों या कुछ दिनों में उस व्यक्ति की मौत भी हो सकती है। 



5 हजार वर्ष पूर्व पांडवों ने बिताया था कुछ समय
इतिहास बताता है कि 5 हजार वर्ष पूर्व पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय इस क्षेत्र में व्यतीत किया था। मंदिर में रखे भीमकाय ढोल के बारे में लोग बताते हैं कि यह महाबली भीम का ढोल है। उस दौर में पांडवों ने ममेल में खेती की थी और आज भी मंदिर में 150 ग्राम वजनी गेहूं का दाना मौजूद है। मंदिर के अग्निकुंड में 5000 साल पहले जलाया गया धूना आज भी जल रहा है। इस कुंड में सिर्फ लकडिय़ां डाली जा रही हैं और इससे राख कहां जाती है इसका किसी को अंदाजा नहीं। कुंड से आज तक राख निकाली ही नहीं गई। इस तरह की अद्भुत बातें सैलानियों को हिमाचल के ममेल ही नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य कई इलाकों में खींच रही हैं। 



....तो हो जाएगा अनिष्ट
करसोग से नितिन शर्मा, इतिहासकार डा. जगदीश शर्मा, रमेश कुमार ठाकुर, चेतन शर्मा और संतोष बताते हैं कि ममलेश्वर महादेव मंदिर में 5000 सालों से जल रहे अखंड धूने वाले कुंड से आज तक राख नहीं निकाली गई। लोग इस राख को विभूति के रूप में अपने घर भी ले जाते हैं। मंदिर में स्थित मूर्ति के गर्भगृह की तरफ से दर्शन करने की मनाही है। गर्भगृह की तरफ किसी को जाने की भी इजाजत नहीं है। गर्भगृह की तरफ से मूर्ति के दर्शन करने वाले व्यक्ति के साथ अनिष्ट होता है। रमेश ठाकुर बताते हैं कि महाकाल के दर्शन से मौत भी हो सकती है। 



शिवलिंग का खंडित होना व जुडऩा चमत्कार से कम नहीं
इतना ही नहीं कुल्लू के बिजली महादेव और ममलेश्वर महादेव मंदिर ऐसे शिवालय हैं जहां आसमानी बिजली गिरने से शिवलिंग खंडित हो जाते हैं। सुबह-शाम की पूजा-अर्चना के दौरान जब पुजारी शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं तो उन्हें ही शिवलिंग के खंडित होने का पता चलता है। हारयान क्षेत्र से एकत्रित किए गए मक्खन से खंडित शिवलिंग को जोड़ा जाता है। जब तक खंडित शिवलिंग जुड़ न जाए तब तक इन देवताओं के हारयान क्षेत्र में महिलाएं शृंगार करना छोड़ देती हैं और घरों में भी सात्विक भोजन पकता है। शिवलिंग के खंडित होने से लेकर उसके जुडऩे तक के बीच की अवधि को इलाके में शोक की तरह माना जाता है। कहा जाता ह ैकि जब मानव जाति पर कोई बड़ी विपदा आने वाली हो तो यह देवता उसे बिजली के रूप में अपने ऊपर ले लेते हैं। बताया जा रहा है कि ममलेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग पर करीब 9 वर्ष पहले बिजली गिरी थी।



उलटे पेड़ भी कौतुहल का विषय
कुल्लू के धरोहर गांव नग्गर के समीप मशाड़ा गांव में देवदार के उलटे पेड़ आज भी मौजूद हैं। माता कैलाशिनी मंदिर परिसर में लगे इन पेड़ों की टहनियां पेड़ की चोटी की तरफ मोटी और जड़ों की तरफ वाले हिस्से की ओर से बारीक हैं। देव कारकून बताते हैं यह उलटा पेड़ है और दैवीय शक्ति से आज भी हरा-भरा ज्यों का त्यों खड़ा है। रतोचा पंचायत के शौरन में भी देवदार का एक ऐसा ही पेड़ है। नग्गर के शिव दुवाला मंदिर के शिखर पर लगा त्रिशूलनुमा यंत्र आसपास के इलाकों में आसमानी बिजली गिरने से रोकता है। 



और भी कई अद्भुत बातें
हिमाचल प्रदेश के ऊना जिला के गगरेट स्थित शिवबाड़ी मंदिर की बात करें तो यह शिवालय चारों ओर से घने जंगलों से घिरा है। जंगल के चारों ओर बाहर कोने पर मरघट हैं। इस जंगल से लकडिय़ां काटने की मनाही है। सिर्फ किसी की मृत्यु पर शव जलाने के लिए ही इस शिवबाड़ी के जंगल से लकड़ी काटी जाती है। यदि कोई इस जंगल से अपने घर में इस्तेमाल के लिए लकड़ी ले जाए तो उसके साथ अनिष्ट होता है। करीब 16 वर्ष पूर्व सेना के कुछ जवान इस जंगल से लकडिय़ां काट कर ले जा रहे थे लेकिन लोगों ने उन्हें रोका भी। यह भी बताया कि इस जंगल से खाना पकाने या घरों में इस्तेमाल के लिए लकड़ी काटने की मनाही है। लकडिय़ों से भरा ट्रक कुछ दूर जाकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसमें कुछ जवानों की मौत हो गई थी। 

पुरानी चीजों पर चोरों की नजर 
कुल्लू सहित प्रदेश के प्राचीन मंदिरों में हजारों वर्ष पुरानी पुरातात्विक महत्व की कई चीजें मौजूद हैं। लोगों का कहना है कि इनके चोरी होने का भी डर है। पूर्व में भी चोरी की कई वारदातें हुईं। कुल्लू के रघुनाथपुर मंदिर से रघुनाथ जी की त्रेता युग कालीन मूॢत को भी चोरों ने निशाना बनाया था। सराहन में भीमाकाली मंदिर से भी चोरी हुई थी। हाल ही में सिरमौर के मंदिर में चोरी की घटना हुई। चोर मंदिरों में रखी बेश कीमती पुरातात्विक महत्व की चीजों को निशाना भी बना रहे हैं। इनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने होंगे। 

क्या कहते हैं ए.एस.पी. कुल्लू
ए.एस.पी. कुल्लू निश्चिंत नेगी ने बताया कि कई बड़े मंदिरों में सुरक्षा का जिम्मा ट्रस्ट संभाले हुए हैं। पुलिस की भी मदद ली जाती है। कई मंदिरों की सुरक्षा मंदिर कमेटियों के जिम्मे है और कमेटियों ने चौकीदार तैनात किए हुए हैं। पुलिस भी मंदिर कमेटियों के पदाधिकारियों के साथ विभिन्न बैठकों में मंदिरों में सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाने की सलाह देती है। सुरक्षा के लिहाज से कैमरे जरूरी हैं।