मणिपुर में शहीद राइफल मेन भीम सेन को सम्मान, हिमाचल भूला शहादत

punjabkesari.in Sunday, Sep 12, 2021 - 11:15 AM (IST)

धर्मशाला/नूरपुर (जिनेश/रूशांत) : मणिपुर में 2002 में आतंकी हमले में शहीद हुए ज्वाली उपमंडल की रजोल पंचायत के लटेर गांव के शहीद राइफल मेन भीम सेन (सेना मेडल मरणोपरांत) को मणिपुर सरकार ने तो सम्मान दे दिया लेकिन गृह राज्य हिमाचल शहीद की शहादत को ही भूल गया है। आलम यह है कि शहीद के गांव लटेर में शहीद के घर तक न तो पक्की सड़क बन पाई और न ही उसकी शहादत में गेट का निर्माण हो पाया है। यही नहीं शहीद के गांव के लोग आज भी खड्ड पार कर अपनी रोजमर्रा की जरूरत की खरीददारी के लिए आवाजाही करने को मजबूर है। हालांकि इस खड्ड पर पुल निर्माण का आश्वासन दिया गया था, लेकिन आज दिन तक कुछ नहीं हो पाया है। वहीं मणिपुर में शहीद के नाम पर बकायदा मणिपुर की सरकार ने शहीद राइफलमेन भीम सेन (सेना मेडल मरणोपरांत) के नाम पर सड़क में चोक बनाया है। 

शहीद के परिवार पर 2002 में टूटा दुखों का पहाड़ आज भी बरकरार है। शहीद का बेटा आशीष जब 18 साल का हो गया तो 33 असम राइफल यूनिट में भर्ती के लिए आवेदन दिया जोकि उच्चाधिकारों ने स्वीकार करते हुए उसे कॉल लेटर भेज दिया।  8 जून 2018 को जब शहीद का बेटा भर्ती के लिए जा रहा था उससे पहले ही कोटला में ही रास्ते में उसकी दुर्घटना हो गई। इस दुर्घटना में आशीष 60 प्रतिशत तक दिव्यांग हो गया तथा 2019 में जब दोबारा से 33 असम राइफल यूनिट के लिए सिविल सेवाओं में नौकरी के लिए आवेदन दिया गया तो उक्त यूनिट के उच्च अधिकारियों ने हिमाचल प्रदेश सरकार को सरकार द्वारा प्रचलित कानून पैरा मिल्ट्री में शहीद हुए जवानों के आश्रितों के लिए नौकरी की व्यवस्था का प्रावधान के तहत सिफारिश की थी। लेकिन असम राइफल की सिफारिश के बाद भी 3 साल बीत जाने तक सरकार शहीद के बेटे को नौकरी नहीं दे सकी है।

बेटे की नौकरी के लिए 2019 से कई बार लिख चुके है प्रदेश सरकार को पत्र

शहीद की पत्नी रेखा देवी का कहना है कि दुखों का पहाड़ टूटने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी है। उनका कहना है कि 2019 से अब तक वह प्रदेश सरकार व जिला प्रशासन को 8 बार बेटे की नौकरी के लिए पत्र लिख चुके है। इसके अलावा वह खुद भी मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर से इस बारे में मिल चुके है, लेकिन अभी तक इस मामले में कुछ नहीं हुआ है। सिर्फ विभाग एक दूसरे को पत्र पर पत्र लिखते रहते है।

19 साल पहले हुए थे राईफल मेन भीम सेन शहीद

10 जुलाई 2002 को आतंकवादियों से लोहा लेते हुए राइफल मेन भीम सेन शहीद हो गए थे। भीम सेन 33 असम राइफल मणिपुर (आर्मी के साथ ऑपरेशन डियूटी) में तैनात थे तथा इम्फाल के मोर्य शहर के निकट आतंकवादियों द्वारा की गई फायरिंग व आई.ई.डी. विस्फोट हमले में अपने सहयोगियों को तो बचा लिया लेकिन खुद शहीद हो गए। इस शहादत को लेकर वर्ष 2004 में रेखा देवी को शहीद भीम सेन की बहादुरी के लिए सेना मेडल से सम्मानित भी किया गया था।

भीम सेन की शहादत पर मिले राज नेताओं से आश्वासन

राइफल मेन भीम सेन की शहादत के बाद उनकी पत्नी को राजनेताओं से आश्वासन मिले कि शहीद के नाम पर उनके गांव में गेट बनाया जाएगा और गांव को सड़क से जोड़ा जाएगा तथा बेटे को सरकारी नौकरी दी जाएगी। लेकिन इन में से 19 साल बीत जाने के बाद भी एक भी आश्वासन पूरा नहीं हुआ है। शहीद भीम सेन की पत्नी रेखा देवी का कहना है कि दिव्यांग बेटे की नौकरी के लिए दर-दर भटकी हूं। प्रशासनिक अधिकारियों से लेकर नेताओं और मुख्यमंत्री तक गुहार लगाई गई है, लेकिन अभी तक बेटे को नौकरी नहीं मिली है और न ही अन्य आश्वासन नेताओं ने पूरे किए है। सैनिक की पत्नी हूं, इतनी जल्दी हिम्मत हारने वालों में से नहीं हूं। ज्वाली विधायक अर्जुन ठाकुर का कहना है कि मामला हमारे ध्यान में है, शहीद के घर तक पक्की सड़क का निर्माण और शहीद के गांव में शहीद के नाम का गेट जल्द बना दिया जाएगा। रही बात बेटे की नौकरी की तो मुख्यमंत्री के समक्ष दोबार इस मुद्दे को उठाउंगा। कंग्रेस जिलाध्यक्ष अजय महाजन ने कहा कि सरकार को शहीद का सम्मान करना चाहिए था और जो आश्वासन प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए थे उनको भी सरकार को पूरा करना चाहिए था। बेटे की नौकरी का मामला जो सरकार के समक्ष लटका हुआ है उसको सरकार प्राथमिकता के आधार पर जल्द से जल्द पूरा करें। कांगड़ा चंबा सांसद किशर कपूर का कहना है कि उक्त मामला मेरे ध्यान में लाया जाएगा तो उक्त मामले को सरकार को भेजूंगा। जो कुछ भी इस में बन पाएगा वह किया जाएगा। 


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Content Writer

prashant sharma

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