धार्मिक नगरी मणिकर्ण पर अभी भी मंडरा रहा खतरा, गिर सकती हैं चट्टानें

Wednesday, May 24, 2017 - 12:11 PM (IST)

कुल्लू: धार्मिक पर्यटन नगरी मणिकर्ण के ऊपर से अभी भी खतरा नहीं टला है। भू-गर्भ वैज्ञानिकों के सुझाव के अनुसार अभी तक यहां की गाड़गी की पहाड़ियों में कार्य शुरू नहीं हुआ है। लोग आज भी यहां खौफ के साए में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं। बताया जाता है कि 2 साल पहले बरसात के दिनों में यहां की पहाड़ियों से भीमकाय चट्टानें लुढ़कती हुई मणिकर्ण गुरुद्वारा पर गिरने से हादसे में 7 श्रद्धालु मारे गए थे। इस दर्दनाक हादसे में 11 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे। करीब 2 किलोमीटर ऊपर ठीक इन पहाड़ियों से गिरी इन चट्टानों ने मणिकर्ण में तबाही मचा दी थी। हादसा इतना भयानक था कि चट्टानें गुरुद्वारा पर गिरने के बाद 5 मंजिलों के लैंटर को तोड़ती हुईं पार्वती नदी में जा गिरी थीं। इसके बाद शिमला से आए भू-गर्भ वैज्ञानिकों के दल ने खनन विभाग के निरीक्षकों के एक दल के साथ गाड़गी की पहाड़ियों का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया था। उस दौरान कुल्लू जिला प्रशासन को सौंपी रिपोर्ट में कई सुझाव देते हुए आने वाले खतरे से बचने की तरकीब बताई थी। हालांकि अभी तक उन सुझावों के अनुसार कार्य ही नहीं हुआ है। 


अभी भी गिर सकती हैं चट्टानें
भू-गर्भ वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार पहाड़ी में अभी भी कई चट्टानें हैं जो कभी भी गिर कर तबाही मचा सकती हैं। जिस जगह से हादसे के दौरान चट्टानें गिरी थीं, उस जगह पेड़ भी थे। वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया था कि हवा से पेड़ हिले होंगे और उसी से चट्टानें पहाड़ी से अलग होकर नीचे की ओर लुढ़क गईं होंगी। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया था कि सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे के मुताबिक मणिकर्ण में राम मंदिर सहित कुछ मिलकीयत भूमि पाई गई थी। यह भी पता चला था कि गाडग़ी की जिन पहाड़ियों से चट्टानें गिरी थीं, उस जगह से पहले भी चट्टानें गिरती रही हैं। 


एन.डी.आर.एफ. की टीम ने प्रशासन को किया था आगाह
मणिकर्ण में लाखों की संख्या में सैर-सपाटा करने सैलानी पहुंचते हैं। हिंदू और सिख समुदाय के लिए धार्मिक आस्था का केंद्र मणिकर्ण श्रद्धालुओं के जमावड़े से पैक रहता है। राम मंदिर और गुरुद्वारा में भारी संख्या में लोग पहुंचते हैं। दर्दनाक हादसे के तुरंत बाद एन.डी.आर.एफ. की टीम ने भी यहां की पहाड़ियों का दौरा कर प्रशासन को आगाह किया था कि अभी खतरा टला नहीं है।