आस्था और विश्वास का प्रतीक होला मोहल्ला मेला प्रारंभ, यहां पढ़ें इतिहास

Tuesday, Mar 03, 2020 - 12:21 PM (IST)

ऊना (अमित शर्मा) : हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले में स्थित प्रसिद्ध धार्मिक स्थल डेरा बाबा बड़भाग सिंह में विश्वविख्यात होला मोहल्ला मेला मंगलवार से शुरू हो गया। मेले के मद्देनजर डेरे सहित पूरे इलाके को दुल्हन की तरह सजाया गया है। होला मोहल्ला मेला हर बर्ष फाल्गुन के विक्रमी महीने में पुर्णिमा के दिन आयोजित किया जाता है। दस दिनों तक मनाए जाने वाला यह मेला देश ही नहीं अपितु विदेश में भी खासा प्रसिद्ध है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल तथा देश के अन्यों हिस्सों से लाखों की तादाद में श्रद्धालु इस मेले में शरीक होने के लिए आते है।

डेरा बाबा बड़भाग सिंह जी के मंजी साहिब के संत स्वर्णजीत सिंह ने होला मोहल्ला पर संगतों को बधाई दी और कहा कि इस स्थान पर बाबा बड़भाग सिंह ने तप किया था। वही स्वर्णजीत सिंह ने युवा पीढ़ी को कुरीतियों से दूर रहकर गुरू के बताये मार्ग पर चलने का आह्वान किया। मेले में देश विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद को देखते हुए पुलिस प्रशासन द्वारा सुरक्षा चाक चैबंद की गई है। मेला क्षेत्र को दस सैक्टरों में बांटा गया है तथा प्रत्येक सैक्टर में एक-एक सैक्टर मैजिस्ट्रेट तथा एक-एक पुलिस अधिकारी की नियुक्ति की गई है तथा मेले में 1200 के करीब पुलिस और होमगार्ड के जवानों की तैनाती की गई है।

असामाजिक तत्वों पर नजर रखने के लिए मेला क्षेत्र में जगह जगह पर सीसीटीवी कैमरा भी स्थापित किए गए है। एसपी ऊना कार्तिकेयन गोकुलचंद्रन ने मेला के श्रद्धालुओं से मालवाहक वाहनों में सफर न करने की अपील की। मेला अधिकारी एडीसी ऊना अरिंदम चैधरी ने बताया कि मेले के दौरान साफ-सफाई व्यवस्था बनाए रखने के लिए पहले के मुकाबले अधिक प्रयास किये गए है। एडीसी ने कहा कि सफाई व्यवस्था सुचारु रखने के लिए अस्थाई शौचालयों का निर्माण किया गया है इसके साथ ही अस्थाई सफाई कर्मचारियों की तैनाती भी गई है। वहीँ श्रद्धालुओं की मूलभूत सुविधाओं का ध्यान रखा जा रहा है। 

यह है मेले का इतिहास
डेरा बाबा बड़भाग सिंह के इतिहास पर नजर डाली जाए तो बर्ष 1761 में सिख गुरू अर्जुन देव जी के बंशज बाबा राम सिंह सोढ़ी और उनकी धर्मपत्नी माता राजकौर के घर में बड़भाग सिंह जी का जन्म हुआ। बाबा बड़भाग सिंह बाल्याकाल से ही आध्यातम को समर्पित होकर पीड़ित मानवता की सेवा को ही अपना लक्ष्य मानने लगे थे। कहते है कि एक दिन वो घूमते हुए आज के मैड़ी गांव स्थित दर्शनी खड्ड जिसे अब चरण गंगा कहा जाता है, में पहुंचे और यहां के पवित्र जल में स्नान करने के बाद मैड़ी स्थित एक बेरी के पेड़ के नीचे ध्यानमग्न हो गए। उस समय मैड़ी का यह क्षेत्र बिल्कुल वीरान था और दूर दूर तक कोई आबादी नहीं थी। कहते है कि यह क्षेत्र वीर नाहर सिंह नामक एक पिशाच के प्रभाव में था।

नाहर सिंह द्वारा परेशान किए जाने के बाबजूद बाबा बड़भाग सिंह ने इस स्थान पर घोर तपस्या की तथा एक दिन दोनों का आमना सामना हो गया तथा बाबा बड़भाग सिंह ने दिव्य शक्ति से नाहरसिंह पर काबू पाकर उसे बेरी के पेड़ के नीचे ही एक पिंजरे में कैद कर लिया। कहते है कि बाबा बड़भाग सिंह ने नाहर सिंह को इस शर्त पर आजाद किया था कि नाहर सिंह अब इसी स्थान पर मानसिक रूप से बीमार और बुरी आत्माओं के शिंकजे में जकड़े लोगों को स्वस्थ करेंगे और साथ ही निःसंतान लोगों को फलने का आशीर्वाद भी देंगे। यह बेरी का पेड़ आज भी इसी स्थान पर मौजूद है तथा हर बर्ष लाखों की तादाद में देश विदेश से श्रद्धालु आकर माथा टेककर आशीर्वाद प्राप्त करते है। ऐसी मान्यता है कि अगर प्रेत आत्माओं से ग्रसित व्यक्ति को इस कुछ देर के लिए इस बेरी के पेड़ के नीचे बिठाया जाए तो वो व्यक्ति प्रेत आत्मायों के चंगुल से आजाद हो जाता है। 

चरणगंगा में स्नान से मिलती है मानसिक रोगों से मुक्ति
वही बाबा बड़भाग सिंह जी मैडी में तप के दौरान चरणगंगा में ही स्नान करते थे। मान्यता है कि बाणगंगा में स्नान करने से मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है। वहीँ निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है और कई बीमारियां भी ठीक हो जाती है। चरणगंगा के महंत शादीलाल गोस्वामी ने बताया कि पौराणिक मान्यता है कि द्वापर युग में पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने इस स्थान पर स्नान किया था जिससे इस स्थान का विशेष महत्व है। 

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