ऐतिहासिक मिंजर को लगी बॉलीवुड की बीमारी चौगान के वजूद पर पड़ रही भारी

Monday, Jul 09, 2018 - 03:19 PM (IST)

चम्बा (विनोद): ऐतिहासिक मिंजर मेला हर वर्ष की भांति सावन माह के दूसरे रविवार से तीसरे रविवार तक आयोजन होगा। इसके लिए जिला प्रशासन व मिंजर मेला आयोजन समिति ने कमर कस ली है। यह बात ओर है कि अभी तक इस मेले में ऐतिहासिक चम्बा चौगान के सभी भागों का व्यापारिक परिसर के रूप में प्रयोग करने की माननीय अदालत अनुमति देती है या नहीं इसके बारे में संशय बना हुआ है,क्योंकि अभी तक अदालत के पूर्व आदेश ही लागू है, जिसमें की चौगान के किसी भी भाग में व्यापारिक गतिविधि को प्रतिबंधित किया गया है। बावजूद इसके प्रशासन व मेला आयोजन समिति ने अपने स्तर पर पूर्व की भांति इसकी तैयारियों को अंजाम देने की कवायद शुरू कर दी है। इस स्थिति को लेकर अभी से क्यासों को दौर भी शुरू हो गया है जोकि निश्चित तौर पर मिंजर मेला के समीप आते-आते और तेज हो जाएगा। प्रत्येक जिलावासी में इस ऐतिहासिक मिंजर मेला के आयोजन को लेकर उत्साह का माहौल बना हुआ है।


मिंजर मेले के आयोजन का सबसे बड़ा आय स्रोत
प्राचीन मिंजर मेला के आयोजन के लिए सरकार की ओर से महज 1 लाख रुपए हर वर्ष आयोजन समिति को दिया जाता है जबकि इसके आयोजन पर हर वर्ष कम से कम 1 करोड़ रुपए का खर्चा होता है। ऐसे में यह सरकारी मदद ऊंट में जीरे के समान है, इसमें चौगान की नीलामी की जाती है, जिससे विगत वर्ष मिंजर मेला कमेटी को सवा करोड़ के करीब आय हुई थी। बावजूद लोगों की सहभागिता के नाम पर महज उपसमितियों के सदस्यों की सूची ही तैयार होती है क्योंकि होता तो वहीं है जोकि सरकार या फिर प्रशासन को मंजूर होता है। इसको लेकर आयोजित होने वाली बैठकों में चौगान को बचाने के लिए बड़े-बड़े अधिकारी अपने कद के अनुरूप बड़े-बड़े वायदे करते हैं लेकिन जैसे ही मिंजर मेला समाप्त होता है तो मैं कौन तू कौंन की स्थिति पैदा हो जाती है। 15 अप्रैल को यह चौगान फिर से लोगों की आवाजाही के लिए खोल दिया जाता है, ऐसे में प्रशासन से अगर कोई मुरम्मत कार्य के नाम पर खर्च हुए पैसे की जानकारी मांगें तो हैरान करने वाला आंकड़ा सामने आता है।


अबकी बार तो पैसे का भी नहीं दिया हिसाब
हर वर्ष मिंजर मेला आयोजन की तैयारियों को लेकर जो आम बैठक बुलाई जाती है उसमें पिछले मिंजर के दौरान किस-किस स्रोत के माध्यम से कितनी आय अर्जित हुई और उसमें से कितना-कितना पैसा किस-किस गतिविधि के लिए खर्च किया गया उसका पूरा ब्यौरा सार्वजनिक किया जाता है। अबकी बार भी आम बैठक बचत भवन में बुलाई गई लेकिन पिछली मिंजर का कोई भी हिसाब किताब नहीं दिया गया है। हालांकि प्रश्न के रूप में यह जानकारी हासिल करने का प्रयास किया गया लेकिन कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया, ऐसे में पिछले वर्ष कितनी आय हुई और उसे किस गतिविधि पर कितना खर्च किया गया यह जानकारी भी अब तक रहस्यमयी बनी हुई है। 


हर वर्ष बढ़ रहा चौगान पर बोझ
ऐतिहासिक चम्बा चौगान रियासतकाल की ऐसी देन है जो आज भी प्राचीन चम्बा शहर की खूबसूरती को चार चांद लगाने का काम करता है। शहर के बीचोंबीच एक बड़ा सा ऐसा भू-भाग जिस पर हरी घास की मौजूदगी इसे कुदरत के हाथों बने मखमल के गलीचे का रूप देता है। यही वजह है कि जैसे ही शहर में कोई प्रवेश करता है तो सबसे पहले उनकी नजर चौगान पर पड़ती है। जिसे देखकर हर किसी के मुंह से इसकी तारीफ के लिए शब्द निकल आते हैं, ऐसे में पूर्व की भांति अगर चौगान का बेरहमी के साथ अबकी बार भी प्रयोग किया गया तो निश्चित तौर पर 29 जुलाई के बाद यह चौगान अगले कई माह के लिए पूरी तरह से बदसूरत नजर आएगा। यही वजह है कि अभी से लोग चौगान की सुरक्षा को लेकर प्रश्न उठाने लगे हैं। चौगान जिस पर हर वर्ष बोझ बढ़ता जा रहा है और दूसरी तरह इसकी मुरम्मत का कार्य महज औपचारिकता तक ही सीमित नजर आता है। ऐसी स्थिति में कही ऐसा न हो कि एक धरोहर को बचाने के नाम पर दूसरी धरोहर का वजूद ही समाप्त हो जाए।

Ekta