Himachal: मंडी के जंगल पर्यावरण के लिए जितने जरूरी..उतने ही खतरनाक, बस्तियों तक मंडराता है खतरा

punjabkesari.in Sunday, Feb 02, 2025 - 12:54 PM (IST)

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में फैले चीड़ के घने जंगल पर्यावरण के लिए जितने जरूरी हैं, उतने ही खतरनाक भी साबित हो रहे हैं। हर साल गर्मियों में इन जंगलों में फॉरेस्ट फायर की घटनाएं सामने आती हैं, जिससे लाखों की वन संपदा नष्ट होती है और पर्यावरण पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। आग से उठने वाला धुआं हवा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, जिससे इंसानी जीवन पर भी नकारात्मक असर पड़ता है।

विशेषज्ञों के अनुसार, चीड़ के जंगलों में आग लगने के कई कारण होते हैं। इन जंगलों में चीड़ के पेड़ों की सूखी टहनियां और पत्तियां जमीन पर गिरकर एक परत बना लेती हैं, जिसे स्थानीय भाषा में "चलारू" कहा जाता है। यह अत्यधिक ज्वलनशील होती है और गर्मियों में थोड़ी सी चिंगारी भी इस घास को भयंकर आग में बदल सकती है। कई बार बिजली गिरने से भी जंगलों में आग लग जाती है, जिसे रोक पाना लगभग नामुमकिन होता है।

पर्यावरण प्रेमी नरेंद्र सैनी के अनुसार, चीड़ के जंगल पर्यावरण के लिए अधिक लाभकारी नहीं होते, बल्कि कई बार नुकसानदायक साबित होते हैं। बिजली गिरने से लगने वाली आग को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इंसानी लापरवाही से लगने वाली आग को जरूर रोका जा सकता है। कई बार लोग जंगल में लापरवाही से बीड़ी-सिगरेट या जलती लकड़ी फेंक देते हैं, जिससे आग भड़क जाती है। इसके अलावा, कुछ शरारती तत्व भी जानबूझकर जंगलों में आग लगा देते हैं, जिससे भारी नुकसान होता है।

जंगलों में लगने वाली आग न केवल पेड़ों और वन्यजीवों के लिए खतरनाक होती है, बल्कि इंसानी बस्तियों के लिए भी गंभीर खतरा बन सकती है। हर साल इस आग में कई निर्दोष पक्षी और वन्यजीव जलकर मर जाते हैं। कुछ मामलों में आग पास की बस्तियों तक पहुंच जाती है, जिससे स्थानीय लोगों की जान-माल को भी खतरा होता है।

इस समस्या के समाधान के लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी है। सरकार को जंगलों में फायर ब्रेकिंग जोन बनाने और आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने पर जोर देना चाहिए, ताकि समय रहते आग पर काबू पाया जा सके। यदि लोग थोड़ी सतर्कता बरतें और वन विभाग के दिशा-निर्देशों का पालन करें, तो इस प्राकृतिक आपदा को काफी हद तक रोका जा सकता है।


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Content Editor

Jyoti M

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