कानून की पहुंच प्रत्येक व्यक्ति तक होनी चाहिए : खानविलकर

Sunday, Dec 11, 2016 - 01:29 AM (IST)

शिमला: प्रदेश उच्च न्यायालय में शनिवार को हिमाचल प्रदेश राज्य विविध सेवा प्राधिकरण द्वारा आयोजित किए गए भारतीय संविधान के विभिन्न पहलु विषय पर एकदिवसीय सम्मेलन में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने कहा कि कानून की पहुंच समाज में प्रत्येक व्यक्ति तक होनी चाहिए। कानून के समक्ष सभी बराबर हैं और कानून छोटे-बड़े, जाति, लिंग अथवा धर्म के नाम पर कभी भेदभाव नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने कहा कि अंतिम छोर पर बसे गरीब से गरीब व्यक्ति तक न्याय की पहुंच को सुनिश्चित बनाना बेशक चुनौतीपूर्ण है लेकिन अत्यावश्यक है। व्यक्ति कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो, गलती के लिए सजा मिलनी चाहिए। थोड़ी भी ढील अथवा छूट न्याय प्रदान करने में बाधा उत्पन्न करती है। उन्होंने कहा कि न्याय प्राप्त करने के लिए न्यायालय सर्वाधिक विश्वसनीय है तथा लोगों के पास आखिरी विकल्प भी। लोगों की न्याय की उम्मीदों को पूरा करना पूरे संस्थान की जिम्मेदारी है। 

न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने कहा कि आज के युग में भी 80 से 90 प्रतिशत लोग न्याय की पहुंच से बाहर हैं जोकि चिंताजनक है और इस दिशा में सूचना प्रौद्योगिकी का भरपूर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इससे न केवल पारदर्शिता आएगी बल्कि जिम्मेदारी भी निश्चित होगी। उन्होंने कहा कि 10 से 15 प्रतिशत विवादों का ही समय पर निपटारा हो पाता है, शेष 80 प्रतिशत तक के मामलों में न्याय प्रदान करने में देरी से असंतोष की भावना पनपती है।

न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर ने कहा कि न्यायालयों में बड़ी संख्या में लंबित मामले तथा अनावश्यक दस्तावेज न्यायिक प्रणाली को प्रभावित करते हैं। न्यायाधीश की कार्यप्रणाली तथा व्यक्तित्व का भी न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि न्याय के स्थानीय विकल्पों जैसे लोक अदालतों, सामाजिक समूहों व पंचायतों द्वारा समझौते इत्यादि को विशेष तरजीह प्रदान करनी चाहिए। इससे विवादों का निपटारा सस्ता व शीघ्र होता है।