आस्था के आगे विज्ञान भी फेल, यहां आसानी से कोई भी उठा सकता है सवा क्विंटल का पत्थर

Tuesday, Jun 22, 2021 - 11:37 PM (IST)

कुल्लू (संजीव): लाहौल-स्पीति जिले की वादियां जहां पर्यटकों को आकर्षित करती हैं तो वहीं यहां के धार्मिक स्थलों के रहस्य भी देश-दुनिया के लोगों को अचंभित करते हैं। लाहौल घाटी के उदयपुर में माता मृकुला का मंदिर भी देश-दुनिया के पर्यटकों के लिए रोमांच का केंद्र है। यहां मंदिर के बाहर भीम का पत्थर रखा हुआ है जोकि एक उंगली से हवा में उठ जाता है। इसमें वैज्ञानिक चाहें लाख तर्क दें, लेकिन श्रद्धा और विश्वास की बात सामने आती है तो उनका विज्ञान धरा का धरा रह जाता है।

माता मृकुला मंदिर के प्रांगण में है 128 किलो का पत्थर

लाहौल-स्पीति के उदयपुर स्थित मृकुला माता मंदिर के प्रांगण में आज भी महाभारत कालीन एक पांडु पत्थर है। इस 128 किलो के पत्थर को 5 लोग मध्यम उंगली से भी माता के जयकारे के साथ उठा सकते हैं लेकिन शर्त श्रद्धा एवं आस्था की है। अगर कोई शर्त पर खरा नहीं उतरता है तो मजाल कि यह पत्थर अपनी जगह से हिल भी जाए। उपमंडल उदयपुर में स्थित माता मृकुला के दरबार में रखा यह पत्थर धर्म के मार्ग पर चलने वालों की परीक्षा लेता है। महाभारत के योद्धा व पांडु पुत्र भीम द्वारा रखा गया यह ऐतिहासिक पत्थर आज भी भक्तों को पाप व धर्म का एहसास करवा रहा है।

चम्बा के राजा उधम सिंह के नाम पर पड़ा उदयपुर नाम

माता के कुल पुरोहित व पुजारी परिवार से बुजुर्ग हीरा दास शर्मा व राम लाल का कहना है कि आज भी मंदिर के प्रति घाटी के लोगों की अपार आस्था है। 8वीं सदी में मां काली की स्थापना के बाद 16वीं शताब्दी में चम्बा के राजा उधम सिंह लाहौल आए। उस दौरान उन्होंने उदयपुर में माता मृकुला देवी की मूर्ति की स्थापना की। कहा जाता है कि पहले इस जगह का नाम मरगुल था, लेकिन चम्बा के राजा उधम सिंह के आगमन के बाद इस जगह का नाम उदयपुर पड़ा।

यह है मान्यता

मान्यता है कि पांडु पुत्र भीम जब अज्ञातवास में लाहौल के उदयपुर में आए तो उन्होंने इस पत्थर को मंदिर के प्रांगण में रखा। भीम इस पत्थर के वजन के बराबर एक समय में भोजन करते थे। अज्ञातवास के दौरान माता कुंती जब पांडवों के लिए भोजन पकाती थी तो भीम अपने भाइयों के हिस्से का सारा भोजन खा जाता था, तब माता कुंती इस पत्थर के भार के बराबर भीम को भोजन देती थी। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि उदयपुर में 8वीं सदी के दौरान माता काली का मंदिर हुआ करता था, जिसकी मूर्ति आज भी मृकुला मंदिर में है। इसे काली का खप्पर कहा जाता है तथा यह हर वक्त कपड़े से ढकी रहती है। यह मूर्ति साल में एक बार फागड़ी उत्सव पर निकाली जाती है तथा मंदिर से पुजारी के घर तक ही लाई जाती है।

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Vijay